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जम्मू-कश्मीरः ‘दरबार’ सज गया, सुरक्षा व्यवस्था मुस्तैद, चहल पहल और राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ी

By सुरेश एस डुग्गर | Updated: November 9, 2020 18:00 IST

छह महीने के लिए नागरिक सचिवालय व अन्य मूव कार्यालय जम्मू में ही काम करेंगे। दरबार के साथ ही आतंक के भी जम्मूू आ जाने की खबरों के बीच सुरक्षा व्यवस्था को बढ़ाया गया है।

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ठळक मुद्देसिविल सचिवालय आज सुबह जम्मू में खुल गया। कश्मीर में गत माह 25 अक्तूबर को सचिवालय बंद हुआ था। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा को गॉर्ड ऑफ ऑनर देने के बाद सचिवालय में कामकाज शुरू हो गया। पंचायती, जिला विकास कमेटी के चुनावों समेत अन्य सुरक्षा व्यवस्था पर चर्चा की जा रही है।

जम्मूः दो राजधानियों वाले केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर की शीतकालीन राजधानी जम्मू में आज सोमवार सुबह ‘दरबार’ सज गया। अब छह महीने के लिए नागरिक सचिवालय व अन्य मूव कार्यालय जम्मू में ही काम करेंगे। दरबार के साथ ही आतंक के भी जम्मूू आ जाने की खबरों के बीच सुरक्षा व्यवस्था को बढ़ाया गया है।

सिविल सचिवालय आज सुबह जम्मू में खुल गया। कश्मीर में गत माह 25 अक्तूबर को सचिवालय बंद हुआ था। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा को गॉर्ड ऑफ ऑनर देने के बाद सचिवालय में कामकाज शुरू हो गया। वहीं उपराज्यपाल ने भी जम्मू में पदभार संभालते ही प्रशासनिक अधिकारियों की बैठक बुलाई है। प्रशासनिक सूत्रों का कहना है कि बैठक में प्रदेश में होने जा रहे पंचायती, जिला विकास कमेटी के चुनावों समेत अन्य सुरक्षा व्यवस्था पर चर्चा की जा रही है।

सचिवालय के जम्मू में कामकाज शुरू करने के साथ हीं शहर में चहल पहल और राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ गई हैं। सचिवालय के सामने का शालामार और डोगरा हाल को जोडऩे वाला रास्ता पर सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त कर दिए गए हैं। पहले यह रास्ता नागरिक सचिवालय खुलने के साथ बंद होता था। लेकिन इस बार कोरोना काल के चलते हैं दरबार मूव के कुछ कार्यालय जम्मू से भी चल रहे थे जिस कारण से यह रास्ता इस बार पूरे वर्ष ही बंद रहा है।

जम्मू कश्मीर में दरबार मूव की प्रक्रिया वर्ष 1872 में महाराजा रणबीर सिंह के शासनकाल में शुरू हुई थी। महाराजा रणबीर सिंह ने बेहतर प्रशासनिक व्यवस्था के लिए दरबार को छह महीने श्रीनगर और छह महीने जम्मू में रखने की प्रथा शुरू की थी। महाराजा का काफिला अप्रैल माह में श्रीनगर के लिए रवाना हो जाता था व वापसी अक्टूबर महीने में होती थी। कश्मीर की दूरी को देखते हुए बेहतर शासन की इस व्यवस्था को डोगरा शासकों ने वर्ष 1947 तक बदस्तूर जारी रखा। कश्मीर केंद्रित सरकारोंने इस व्यवस्था को जारी रखने का फैसला किया था।

इस बीच जो सूचनाएं मिल रही हैं वे कहती हैं कि आतंकवादी ‘दरबार’ के साथ ही जम्मू की ओर ‘मूव’ कर गए हैं। ऐसी सच्चाई से सुरक्षाधिकारी भी वाकिफ हैं जो ऐसे रहस्योदघाटन भी कर रहे हैं और साथ ही सुरक्षा प्रबंध मजबूत करने की बात भी करते हैं। मगर जम्मू शहर तथा आसपास के इलाकों में किए जा रहे सुरक्षा प्रबंधों से आम नागरिक खुश नहीं हैं। कारण पूरी तरह से स्पष्ट है कि अगर पूर्व अनुभवों के चलते नागरिकों के लिए ऐसे सुरक्षा प्रबंधों पर विश्वास कर पाना संभव नहीं है तो दूसरा ऐसे सभी प्रकार के सुरक्षा प्रबंधों का केंद्र हमेशा ही वीआईपी कालोनियां तथा क्ष्ोत्र रहे हैं। अर्थात आम नागरिक की किसी को कोई चिंता नहीं है।

टॅग्स :जम्मू कश्मीरमनोज सिन्हागृह मंत्रालयभारतीय सेनासीआरपीएफ
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