जम्मू कश्मीर: 14 साल पूरे कर चुकी कारवां-ए-अमन 7 हफ्तों से है बंद
By सौरव गांगुली | Published: April 15, 2019 05:14 PM2019-04-15T17:14:14+5:302019-04-15T17:14:14+5:30
जम्मू कश्मीर: 14 साल की इस अवधि में कुल गैर सरकारी तौर पर 25 हजार के करीब लोगों ने इस सेवा का लाभ उठाया पर अभी भी 38 हजार से अधिक लोग अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं जिस कारण आम कश्मीरी यह कहने को मजबूर हुआ है कि यह बस सेवा उनके अरमान पूरे नहीं कर पाई है।
एलओसी के आर-पार बसे राज्य के परिवारों को आपस में मिलाने वाली कारवां-ए-अमन बस सेवा सोमवार को लगातार सातवें सप्ताह भी बंद रही। कश्मीर के दोनों हिस्सों में रह रहे बिछुड़े परिवारों को मिलाने की खातिर आरंभ हुई कारवां-ए-अमन यात्री बस सेवा ने इस माह की 7 तारीख को अपने परिचालन के 14 साल पूरे कर चुकी है पर कश्मीरियों के अरमान अभी भी अधूरे ही हैं।
दरअसल अमन कमान सेतु की मरम्मत का काम चल रहा है। इसलिए बस सेवा को स्थगित रखा गया है। मरम्मत कार्य पूरा होने पर संबधित प्रशासन की अनुमति मिलते ही कारवां-ए-अमन बस सेवा को फिर से बहाल कर दिया जाएगा।
आज जिन लोगों ने इस बस सेवा का लाभ लेना था, उन्हें गत रोज समय रहते ही सूचित कर दिया गया था कि वे आज उस कश्मीर नहीं जा पाएंगे। इन लोगों को अगले सप्ताह कारवां-ए-अमन बस सेवा में समायोजित किया जाएगा। अमन कमान सेतु ही जम्मू कश्मीर को उस कश्मीर से जोड़ता है।
कश्मीर के दोनों हिस्सों में रह रहे बिछुड़े परिवारों को मिलाने की खातिर आरंभ हुई कारवां-ए-अमन यात्री बस सेवा ने इस माह की 7 तारीख को अपने परिचालन के 14 साल पूरे कर चुकी है पर कश्मीरियों के अरमान अभी भी अधूरे ही हैं।
14 साल की इस अवधि में कुल गैर सरकारी तौर पर 25 हजार के करीब लोगों ने इस सेवा का लाभ उठाया पर अभी भी 38 हजार से अधिक लोग अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं जिस कारण आम कश्मीरी यह कहने को मजबूर हुआ है कि यह बस सेवा उनके अरमान पूरे नहीं कर पाई है। अभी भी इस कश्मीर के लोगों को इस यात्री बस सेवा पर नाराजगी इसलिए है क्योंकि वे बाबूगिरी के चलते इसका सफर नहीं कर पा रहे हैं जबकि अगले कुछ दिनों में इसके फेरों को बढ़ाने की कवायद भी आरंभ हो गई है। पहले यह माह में दो बार चलती थी अब चार बार चल रही है जबकि कश्मीरी इसे प्रतिदिन चलाने की मांग कर रहे हैं।
सबसे अहम बात इस मार्ग के प्रति यह है कि कश्मीरी चाहते हैं कि इस सड़क मार्ग को सिर्फ चहेतों के लिए ही नहीं बल्कि आम कश्मीरी के लिए खोला जाना चाहिए ताकि वे उस कश्मीर मेें रहने वाले अपने बिछुड़े परिवारों से बेरोकटोक मिल सकें । यही कारण है कि अभी भी कश्मीरियों को शिकायत है कि इस सड़क मार्ग का इस्तेमाल सिर्फ ऊंची पहुंच रखने वालों द्वारा ही किया जा रहा है और आम कश्मीरी इससे कोसों दूर है।
श्रीनगर के लाल चौक में दुकान चलाने वाला मसूद अहमद कहता था कि 14 साल हो गए वह उस कश्मीर में रहने वाली अपनी बहन से मिलने की इजाजत नहीं पा सका है। ‘हर बार मेरे आवेदन को कोई न कोई टिप्पणी लगा कर लौटा दिया जाता है और मेरा पड़ौसी दो बार उस पार हो आया ऊंची पहंुच के कारण जबकि उसका कोई रिश्तेदार भी उस पार नहीं रहता है,’मसूद कहता था।