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ईरान: इस्लामिक क्रांति के जनक आयतुल्ला रूहुल्लाह खुमैनी का भारत से है खास रिश्ता, उत्तर प्रदेश के इस गांव से है संबंध

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: January 7, 2020 17:11 IST

ईरानी क्रांति (1979) के जनक आयतुल्ला रूहुल्लाह खुमैनी का संबंध भारत से भी है।

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ठळक मुद्देइस्लामी क्रांति के दस साल बाद जून 1989 में खुमैनी का निधन हुआ।80 साल के आयतुल्ला अली खामनेई 1981 से 1989 तक ईरान के राष्ट्रपति रह चुके हैं।

ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्ला अली खामनेई शीर्ष सैन्य कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी के अमेरिकी हमले में मौत के बाद सुर्खियों में हैं। सोमवार (6 जनवरी) को खामनेई ने बगदाद में अमेरिकी ड्रोन हमले में मारे गए सुलेमानी के जनाजे की नमाज पढ़ी। वहां एकत्र लाखों लोग अपने जनरल के लिए मातम कर रहे थे। खुद खामनेई भी रो पड़े।

खामनेई ईरान के पहले सुप्रीम नेता आयतुल्ला रूहुल्लाह खुमैनी के उत्तराधिकारी हैं। ईरानी क्रांति (1979) के जनक खुमैनी का संबंध भारत से भी है। खुमैनी के परिवार का संबंध उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के किन्तूर गांव से है। खुमैनी के दादा सैय्यद अहमद मूसवी हिंदी 1790 में यूपी के किन्तूर गांव में जन्म थे। सन 1790 में, बाराबंकी के इसी छोटे से गाँव किन्तूर में ही जन्मे थे। 1830 के दशक में खुमैनी के दादा अवध के नवाब के साथ इराक में धार्मिक यात्रा पर गए थे।

जनरल कासिम सुलेमानी (फाइल फोटो)

इसी दौरान खुमैनी के दादा ईरान के धार्मिक स्थलों पर पहुंचे और ईरान के खुमैन गांव में जा बसे। खुमैनी के पिता आयतुल्लाह मुस्तफा इस्लामी धर्मशास्त्र प्रसिद्ध जानकार थे। खुमैनी का जन्म 1902 में हुआ और वह अपने पिता के छोटे बेटे थे। खुमैनी के जन्म के बाद ही उनके पिता मुस्तफा की हत्या हो गई। इसके बाद उनका पालन-पोषण मां ने किया।

खुमैनी को शुरू से ही इस्लामी विधिशास्त्र और शरिया में विशेष रुचि थी। बीबीसी में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने पश्चिमी दर्शनशास्त्र का भी अध्ययन किया और वो अरस्तू को तर्कशास्त्र का जनक मानते थे।

ईरान में अराक और कोम शहर स्थित इस्लामी शिक्षा केंद्रों में पठनपाठन और शिक्षण के दौरान खुमैनी शहंशाही राजनीतिक प्रणाली का पुरजोर विरोध करने लगे। उस समय ईरान में पहलवी वंश का शासन था। ईरान में इस्लामिक क्रांति के समय मोहम्मद रजा पहलवी शासक थे।

पहलवी शासन की जगह खुमैनी जगह विलायत-ए-फकीह (धार्मिक गुरु की संप्रभुता) जैसी पद्धति की वकालत करने लगे। इस वजह से उन्हें ईरान से निकाल दिया गया। विदेश में भी रहते हुए खुमैनी ने राजशाही का विरोध जारी रखा। इस दौरान उनका प्रभाव ईरान में बढ़ता गया। 

मोहम्मद रजा पहलवी के शासनकाल में ब्रिटिश और भारतीय एजेंट के रूप में भी खुमैनी को चित्रित किया गया और उन्हें भारतीय 'मुल्ला' भी कहा गया। कहा जाता है कि 7 जनवरी, 1978 इत्तेलात अखबार खुमैनी के खिलाफ खबर छपने पर ही ईरानी क्रांति की शुरुआत हुई। इसी लेख में उन्हें भारतीय मुल्ला और ब्रितानी-भारतीय उपनिवेश का मोहरा कहा गया था।

आयतुल्ला अली खामनेई

आयतुल्ला अली खामनेई (एएफपी फोटो)

ईरान में लोगों को आंदोलन को देखते हुए मोहम्मद रजा पहलवी ने 16 जनवरी 1979 को देश छोड़ दिया। पहलवी के देश छोड़ने के बाद 15 दिन बाद खुमैनी करीब 14 साल अपने वतन लौटे। खुमैनी को ईरान में राजशाही की जगह इस्लामी गणराज्य की स्थापना का श्रेय जाता है। इस्लामी क्रांति के दस साल बाद जून 1989 में खुमैनी का निधन हुआ। उनकी जगह आयतुल्ला अली खामनेई ने ली। 80 साल के खामनेई 1981 से 1989 तक ईरान के राष्ट्रपति रह चुके हैं।

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