जयंती विशेष: हरिशंकर परसाई के 11 व्यंग्य बाण जो आज भी करते हैं गहरी मार

By रंगनाथ | Published: August 22, 2018 05:19 PM2018-08-22T17:19:45+5:302018-08-22T17:19:45+5:30

हरिशंकर परसाई को उनके व्यंग्य संग्रह "विकलांग श्रद्धा का दौर" के लिए 1982 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

Harishankar Parsai quotes oneliner satire and comment on social political issue | जयंती विशेष: हरिशंकर परसाई के 11 व्यंग्य बाण जो आज भी करते हैं गहरी मार

Harishankar Parsai

हरिशंकर परसाई (22 अगस्त 1924 - 10 अगस्त 1995) निर्विवाद रूप से हिन्दी के सबसे बड़े व्यंग्यकार माने जाते हैं।

मध्य प्रदेश के होशांगाबाद में जन्मे परसाई ने अध्यापक के तौर पर कुछ साल तक नौकरी करने के बाद पूर्णकालिक लेखन करने लगे थे।

परसाई को उनके व्यंग्य संग्रह "विकलांग श्रद्धा का दौर" के लिए 1982 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

वैष्णव की फिसलन, विकलांग श्रद्धा का दौर, प्रेमचंद के फटे जूते, आवारा भीड़ के खतरे, तुलसीदास चंदन घिसैं (निबंध संग्रह), जैसे उसके दिन फिरे, दो नाकवाले लोग, हँसते हैं रोते हैं, भोलाराम का जीव (कहानी संग्रह), तट की खोज, रानी नागफनी की कहानी, ज्वाला और जल (उपन्यास) और तिरछी रेखाएँ (संस्मरण) उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं। 

परसाई ने वसुधा पत्रिका के संस्थापक संपादक थे। हालाँकि आर्थिक अभाव के कारण पत्रिका को बन्द करना पड़ा।

10 अगस्त 1995 को परसाई का जबलपुर में निधन हो गया। नीचे पढ़ें हरिशंकर परसाई के चुटीले व्यंग्य की बानगी-

1- दिशाहीन, बेकार, हताश, नकारवादी, विध्वंसवादी बेकार युवकों की यह भीड़ खतरनाक होती है. इसका प्रयोग महत्वाकांक्षी खतरनाक विचारधारा वाले व्यक्ति और समूह कर सकते हैं. इस भीड़ का उपयोग नेपोलियन, हिटलर और मुसोलिनी ने किया था.

2- मध्य वर्ग का व्यक्ति एक अजीब जीव होता है. एक ओर इसमें उच्च वर्ग की आकांक्षा और दूसरी तरफ निम्नवर्ग की दीनता होती है. अहंकार और दीनता से मिलकर बना हुआ उसका व्यक्तित्व बड़ा विचित्र होता है. बड़े साहब के सामने दुम हिलाता है और चपरासी के सामने शेर बन जाता है.

3- मेरी एक नयी मुसीबत पैदा हो गयी है. जब मैं ऐसी बात करता हूं जिस पर शर्म आनी चाहिए, तब उस पर लोग हंसकर ताली पीटने लगते हैं.

4- ‘जूते खा गये’ अजब मुहावरा है. जूते तो मारे जाते हैं। वे खाये कैसे जाते हैं? मगर भारतवासी इतना भुखमरा है कि जूते भी खा जाता है.

5- हममें से अधिकांश ने अपनी लेखनी को रंडी बना दिया है, जो पैसे के लिए किसी के भी साथ सो जाती है. सत्ता इस लेखनी से बलात्कार कर लेती है और हम रिपोर्ट तक नहीं करते.

6- अर्थशास्त्र जब धर्मशास्त्र के ऊपर चढ़ बैठता है तब गोरक्षा आंदोलन के नेता जूतों की दुकान खोल लेते हैं. 

7- सरकार कहती है कि हमने चूहे पकड़ने के लिये चूहेदानियां रखी हैं. एकाध चूहेदानी की हमने भी जांच की. उसमें घुसने के छेद से बड़ा छेद पीछे से निकलने के लिये है. चूहा इधर फंसता है और उधर से निकल जाता है.

8- अच्छी आत्मा फोल्डिंग कुर्सी की तरह होनी चाहिए. जरूरत पड़ी तब फैलाकर बैठ गए, नहीं तो मोड़कर कोने से टिका दिया। 

9- इस देश के बुद्धिजीवी शेर हैं पर वे सियारों की बारात में बैंड बजाते हैं। 

10- दूसरे देशों में गाय दूध के उपयोग के लिए होती है, हमारे यहाँ दँगा करने, आंदोलन करने के लिए होती है. हमारी गाय और गायों से भिन्न है.

11- आत्मविश्वास धन का होता है, विद्या का भी और बल का भी, पर सबसे बड़ा आत्मविश्वास नासमझी का होता है.

Web Title: Harishankar Parsai quotes oneliner satire and comment on social political issue

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