चेन्नई में वायु प्रदूषण का स्तर WHO के मानदंडों से पांच गुना अधिक, लॉकडाउन नहीं है समाधान : रिपोर्ट
By मनाली रस्तोगी | Published: February 3, 2022 02:26 PM2022-02-03T14:26:38+5:302022-02-03T14:28:13+5:30
ग्रीनपीस इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, चेन्नई में वायु प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानदंडों से पांच गुना अधिक हो गया।
चेन्नई: ग्रीनपीस इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2021 में तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में वायु प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानदंडों से पांच गुना अधिक हो गया। ग्रीनपीस ने 27 जनवरी 2022 को जारी अपनी रिपोर्ट में कहा कि नवंबर 2020 और नवंबर 2021 के बीच चेन्नई के वार्षिक औसत पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5) का विश्लेषण 27 माइक्रोग्राम/ एम 3 था, जोकि डब्ल्यूएचओ की 5 माइक्रोग्राम/ एम 3 की वार्षिक सीमा से पांच गुना अधिक है।
ग्रीनपीस ने 10 शहरों के आंकड़ों का विश्लेषण किया
बता दें कि ग्रीनपीस इंटरनेशनल ने 10 प्रमुख दक्षिण भारतीय शहरों के केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों का विश्लेषण किया और पाया कि इन शहरों में औसत प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन के नए दिशानिर्देशों से कहीं अधिक है। इसी क्रम में एनजीओ ने अपनी रिपोर्ट में कहा, "दस शहरों में बेंगलुरु, हैदराबाद, चेन्नई, अमरावती, विशाखापत्तनम, कोच्चि, मैंगलोर, पुडुचेरी, कोयंबटूर और मैसूर जैसे शहरों को शामिल किया गया और यहां से वायु प्रदूषण के आंकड़ों का चयन व विश्लेषण डेटा जनसंख्या और निगरानी स्टेशन नेटवर्क की उपलब्धता के आधार पर किया गया था।"
यही नहीं, ग्रीनपीस के अध्ययन में पाया गया कि कोरोना संक्रमण के कारण हुए लॉकडाउन और बाद में आर्थिक गतिविधियों में कमी के बावजूद, PM2.5 और PM10 के वार्षिक औसत मूल्य WHO के संशोधित मानकों से कई गुना अधिक हो गए। ऐसे में कोयंबटूर, बेंगलुरु, मैंगलोर और अमरावती में वार्षिक PM2।5 का स्तर WHO के 5 माइक्रोग्राम / m3 के दिशानिर्देशों से 6 से 7 गुना अधिक देखा गया। वहीं, मैसूर, कोच्चि, चेन्नई और पुडुचेरी में PM2.5 का स्तर दिशानिर्देशों से 4 से 5 गुना अधिक है।
जीवाश्म ईंधन है वायु गुणवत्ता बिगड़ने का मुख्य कारण
रिपोर्ट के अनुसार, वायु गुणवत्ता बिगड़ने में सबसे ज्यादा योगदान जीवाश्म ईंधन का है। इससे चलने वाले उद्योग और परिवहन वायु गुणवत्ता को और बिगाड़ने का काम कर रहे हैं। बताते चलें कि वायु प्रदूषण के लगातार संपर्क में रहने से अस्थमा, जन्म के समय कम वजन, अवसाद, सिज़ोफ्रेनिया, मधुमेह, स्ट्रोक, फेफड़ों के कैंसर की संभावना बढ़ जाती है और इससे समय से पहले मौत भी हो सकती है।
वहीं, ग्रीनपीस के अधिकारी अविनाश चंचल ने कहा कि आंकड़े बताते हैं कि लॉकडाउन वायु प्रदूषण का समाधान नहीं है। अपेक्षाकृत कम आर्थिक गतिविधियां और वाहन भी हमें खतरनाक स्थिति में डाल रहे हैं। हमें अधिक नुकसान को रोकने के लिए स्वच्छ ऊर्जा और स्वच्छ परिवहन के लिए तत्काल बदलाव को प्राथमिकता देनी होगी।