Google Doodle: डॉ कमल रणदिवे पर गूगल ने बनाया है आज का डूडल, कैंसर पर किया था अभूतपूर्व रिसर्च, जानिए
By विनीत कुमार | Published: November 8, 2021 07:48 AM2021-11-08T07:48:16+5:302021-11-08T07:51:02+5:30
Google Doodle: डॉ कमल रणदिवे का जन्म 1917 में पुणे में हुआ था। वे कैंसर जैसी बीमारी पर अभूतपूर्व अनुसंधान के लिए जानी जाती हैं।
नई दिल्ली: गूगल का आज डूडल (Google Doodle) भारत की कोशिका जीवविज्ञानी (cell biologist) डॉ कमल रणदिवे पर आधारित है। आज इनकी 104वीं जयंती है। कैंसर जैसी बीमारी पर अभूतपूर्व अनुसंधान और विज्ञान और शिक्षा के माध्यम से एक बेहतर समाज बनाने के लिए समर्पण के लिए जानी जाने वाली डॉ कमल रणदिवे पर ये डूडल भारत के ही आर्टिस्ट इब्राहिम राइनटाकठ (Ibrahim Rayintakath) द्वारा तैयार किया है।
कमल रणदिवे का जन्म 8 नवंबर, 1917 को महाराष्ट्र के पुण में हुआ था। उनके पिता ने उन्हें मेडिकल शिक्षा के लिए प्रेरित किया लेकिन कमल का मन जीवविज्ञान में लगा रहा।
1949 में भारतीय कैंसर अनुसंधान केंद्र (ICRC) में शोधकर्ता के तौर पर काम करते हुए उन्होंने साइटोलॉजी (कोशिका विज्ञान, कोशिकाओं पर अध्ययन) में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
अमेरिका के मैरीलैंड के बाल्टीमोर के जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय में फेलोशिप के बाद वह मुंबई (तब बॉम्बे) लौट आईं और आईसीआरसी में उन्होंने देश के पहले टीशू कल्चर लेबोरेट्री की स्थापना की।
विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं के लिए IWSA की स्थापना
कमल रणदिवे ICRC की निदेशक भी रहीं। वे भारत के उन कुछ पहले शोधकर्ताओं में से थी जिन्होंने स्तन कैंसर (Breast Cancer) और आनुवंशिकता के बीच संबंध की बात कही। साथ ही उन्होंने कैंसर के कुछ वायरस से संबंध की भी पहचान की।
अपने अभूतपूर्व कार्य को जारी रखते हुए रणदिवे ने माइकोबैक्टीरियम लेप्राई का अध्ययन किया। यह वो जीवाणु है कुष्ठ रोग का कारण बनता है। साथ ही टीका विकसित करने में भी उनका सहयोग रहा।
साल 1973 में डॉ. रणदिवे और 11 सहयोगियों ने विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं का समर्थन देने के लिए भारतीय महिला वैज्ञानिक संघ (IWSA) की स्थापना की।
विदेश गए छात्रों को भारत लौटने के लिए किया प्रेरित
रणदिवे ने पढ़ने के लिए विदेश गए छात्रों और भारतीय स्कॉलर्स को भारत लौटने और अपने ज्ञान को देश के लिए उपयोग करने के लिए भी प्रोत्साहित किया। 1989 में सेवानिवृत्त होने के बाद डॉ रणदिवे ने महाराष्ट्र में ग्रामीण समुदायों के लिए भी काम किया। उन्होंने गांव में महिलाओं को स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के रूप में प्रशिक्षित किया स्वास्थ्य और पोषण संबंधी बुनियादी शिक्षा उन्हें दी।