फेसबुक ने दिल्ली हाईकोर्ट में कहा, 'उसके खिलाफ अनुच्छेद 19 नहीं लागू किया जा सकता है'
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: May 6, 2022 04:13 PM2022-05-06T16:13:29+5:302022-05-06T16:17:40+5:30
फेसबुक ने दिल्ली हाईकोर्ट में एफिडेविट दाखिल करते हुए कहा कि वह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति) के तहत वर्णित अधिकारों के दायरे में नहीं आता है।
दिल्ली: सोशल प्लेटफॉर्म फेसबुक ने दिल्ली हाईकोर्ट में कहा है कि वह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति) के तहत वर्णित अधिकारों के दायरे में नहीं आता है।
चूंकि फेसबुक उपयोगकर्ता इसे व्यक्तिगत तौर पर उपयोग करते हैं इसलिए उनके द्वारा फेसबुक पर किये गये व्यवहार को सार्वजनिक कार्य की परिधि में नहीं रखा जा सकता है।
अमेरिकी कंपनी मेटा, जो फेसबुक की पैरेंटल कंपनी है। उसने दिल्ली हाईकोर्ट में एक इंस्टाग्राम अकाउंट पर कथित रूप से बंद करने के खिलाफ दायर की गई एक रिट याचिका के जवाबी हलफनामे में कहा कि इंस्टाग्राम एक स्वतंत्र और स्वैच्छिक सामाजिक मंच है, जो कंपनी के प्राइवेट कांट्रेक्ट के जरिये गवर्नर होता है। इसलिए याचिकाकर्ता के पास याचिकाकर्ता को इसके इस्तेमाल का कोई मौलिक अधिकार नहीं है।
मेटा की ओर से दिल्ली हाईकोर्ट में फाइल किये गये एफिडेविट में कहा गया है, “याचिकाकर्ताओं का अकाउंट को सस्पेंड या हटाने से संबंधित रिट याचिका दायर करना अनुचित कदम है क्योंकि याचिकाकर्ता और मेटा के बीच संबंध एक प्राइवेट कांट्रेक्ट होता है। ऐसे में अनुच्छेद-19 के तहत दिये गये भारतीय संविधान प्रदत्त शक्तियां मेटा जैसी निजी संस्थाओं पर नहीं लागू होते हैं।”
इसमें आगे मेटा की ओर से गया है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत यह मामल हाईकोर्ट के रिट क्षेत्राधिकार में नहीं आता है।
मालूम हो कि बीते मार्च में दिल्ली हाईकोर्ट में फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर समेत कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों द्वारा कई यूजर्स के अकाउंट को सस्पेंड करने और हटाने संबंधी कई याचिकाएं डाली गई हैं।
इसके साथ ही याचिका में कहा गया था कि देश में चल रहे सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकार और संविधान प्रदत्त अनुच्छेद 19 (स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति) के अनुरूप व्यवहार करना चाहिए।
मार्च में दाखिल याचिका में कहा गया था कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म चलाने वाली कंपनियों को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों के दमन के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए अन्यथा किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए इसके गंभीर परिणाम होंगे। (समाचार एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)