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यौनकर्मियों ने एचआईवी संक्रमण में कमी लाने में अदा किया अहम किरदार, अब कोविड-19 से निपटने में भी ली जाए मदद: एचआईवी विशेषज्ञ

By भाषा | Updated: April 17, 2020 21:51 IST

एचआईवी विशेषज्ञ डॉक्टर ने सरकार से अपील की है कि यौनकर्मियों को भी जमीनी स्तर पर काम करने के लिए तैनात किया जाए।

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ठळक मुद्देडॉक्टर ने कहा कि कोविड-19 के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए भी यौनकर्मियों की सेवाएं ली जा सकती हैं। डॉक्टर का कहना है कि एचआईवी संक्रमण के मामलों में कमी लाने में यौनकर्मियों ने अहम किरदार अदा किया है।

बेंगलुरु। एचआईवी के क्षेत्र में पिछले करीब 30 वर्षों से सक्रिय डॉक्टर एस सुंदररमण का कहना है कि भारत में एचआईवी संक्रमण के मामलों में कमी लाने में यौनकर्मियों ने अहम किरदार अदा किया है और अब कोविड-19 के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए भी इनकी सेवाएं ली जा सकती हैं।

डॉक्टर सुंदररमण ने सरकार से अपील की है कि आशा (मान्यताप्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) और आंगनवाड़ी कर्मियों की तरह ही यौनकर्मियों को भी जमीनी स्तर पर काम करने के लिए तैनात किया जाए। स्वतंत्र परामर्शदाता ने पीटीआई-भाषा से कहा, ''क्या यौनकर्मियों के सहयोग के बिना एचआईवी के मामलों में कमी लाना संभव था?

आज हम कोविड-19 के योद्धाओं की बात कर रहे हैं। हम एचआईवी के योद्धाओं और हीरो को क्यों भूल रहे हैं? एचआईवी संक्रमण को कम करने में यौनकर्मी ही अग्रिम पंक्ति की योद्धा थीं।'' सुंदररमण ने कहा कि वर्तमान लॉकडाउन के दौरान सामाजिक दूरी के नियमों के कारण यौनकर्मियों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।

उन्होंने कहा कि आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की तरह ही यौनकर्मियों में भी सूचना एकत्र करने और उनका प्रसार करने की क्षमता है और कोविड-19 के प्रसार की रोकथाम के लिए उनकी सेवाएं ली जा सकती हैं। सुंदररमण ने कहा कि यौनकर्मियों को समाज के साथ जोड़ने का यह बहुत ही अच्छा अवसर है।

मैसूर में यौनकर्मियों के समूह अशोदया समिति की सचिव भाग्यलक्ष्मी ने कहा कि लॉकडाउन के कारण यौनकर्मियों को दैनिक जरूरतों का सामान जुटाने में भी परेशानी उठानी पड़ रही है। उन्होंने कहा कि कुछ के पास बैंक में खाता है, कुछ के पास नहीं हैं क्योंकि उनके पास रहने का कोई ठिकाना नहीं है और वह सड़कों के किनारे ही रहती हैं। भाग्यलक्ष्मी ने सरकार से अपील की कि ऐसी यौनकर्मियों को कम से कम 1000 से 1500 रुपये तक की मदद दी जाए ताकि वह दैनिक जरूरतों का सामान खरीद सकें।

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