दिल्ली दंगा: पुलिस पर बंदूक तानने वाले शख्स पर कोर्ट ने दंगा और हत्या के प्रयास का आरोप तय किया

By विशाल कुमार | Published: December 8, 2021 01:10 PM2021-12-08T13:10:52+5:302021-12-08T13:14:14+5:30

दिल्ली की एक अदालत ने कहा कि यह बिल्कुल साफ है कि शाहरुख पठान ने दंगाइयों के एक समूह का नेतृत्व किया, हेड कांस्टेबल दीपक दहिया को जान से मारने का प्रयास किया और 24 फरवरी, 2020 को एक लोक सेवक पर आपराधिक बल का इस्तेमाल किया और बाधा डाली।

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दिल्ली दंगों के दौरान पुलिस पर गोली तानने वाला आरोपी शाहरुख पठान.

Highlightsपूर्वोत्तर दिल्ली दंगों के दौरान शाहरुख पठान ने एक पुलिस अधिकारी पर बंदूक तानी थी।अदालत ने पठान के खिलाफ दंगा और हत्या के प्रयास से संबंधित आरोप तय किए हैं।अदालत ने पठान के अलावा चार अन्य आरोपियों के खिलाफ भी आरोप तय किए।

नई दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने पूर्वोत्तर दिल्ली दंगों के दौरान एक पुलिस अधिकारी पर कथित तौर पर बंदूक तानने वाले शाहरुख पठान के खिलाफ दंगा और हत्या के प्रयास से संबंधित आरोप तय किए हैं।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने पठान के खिलाफ आरोप तय करते हुए कहा कि हेड कांस्टेबल दीपक दहिया ने आरोपी के इस तरह के हमले का डटकर मुकाबला किया और बंदूक चलाने वाले आरोपी के सामने अपना डंडा भी दिखाया और कर्तव्य और काम के प्रति समर्पण दिखाया। जो शायद आरोपी शाहरुख पठान के दिमाग में बैठ गया होगा।

पठान के वकील ने आरोपमुक्त करने का तर्क देते हुए कहा था कि उसने मौका मिलने पर भी पुलिसकर्मी को नहीं मारा, बल्कि हवा में फायरिंग की।

इस पर कोर्ट ने कहा कि किसी भी सूरत में यह घटना पल भर में घटी और एक बहादुर पुलिसकर्मी की वीरता को कम करने के लिए इसे आरोपी शाहरुख पठान द्वारा पुलिसकर्मी की हत्या न करने की उदारता का कृत्य बताकर कम करना, न तो सुखद है और न ही कानूनी रूप से सही।

अदालत ने कहा कि यह बिल्कुल साफ है कि पठान ने दंगाइयों के एक समूह का नेतृत्व किया, दहिया को जान से मारने का प्रयास किया और 24 फरवरी, 2020 को एक लोक सेवक पर आपराधिक बल का इस्तेमाल किया और बाधा डाली।

पठान के अलावा अदालत ने चार अन्य आरोपियों - कलीम अहमद, इश्तियाक मलिक, शमीम और अब्दुल शहजाद के खिलाफ भी आरोप तय किए।

किसी भी राहत से इनकार करते हुए अदालत ने यह भी कहा कि यह गैर-कानूनी कृत्य करने वाले समूहों का एक सामान्य मामला नहीं था, बल्कि यह इस तरह के दंगे थे, जैसा कि 1984 के सिख विरोधी दंगों के बाद से नहीं देखा गया है।

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