दिल्ली : श्मशान घाट से सटे शहीद भगत सिंह कैम्प के लोग धुएं और गंध में रहने को मजबूर

By भाषा | Updated: April 25, 2021 18:25 IST2021-04-25T18:25:55+5:302021-04-25T18:25:55+5:30

Delhi: People of the Shaheed Bhagat Singh Camp adjacent to the crematorium ghat are forced to live in smoke and smell | दिल्ली : श्मशान घाट से सटे शहीद भगत सिंह कैम्प के लोग धुएं और गंध में रहने को मजबूर

दिल्ली : श्मशान घाट से सटे शहीद भगत सिंह कैम्प के लोग धुएं और गंध में रहने को मजबूर

(उज्मी अतहर)

नयी दिल्ली, 25 अप्रैल पश्चिम दिल्ली के शहीद भगत सिंह कैम्प में रहने वाले लोग अपने घर-बार छोड़कर गांव वापस जाने की तैयारी कर रहे हैं और इसकी वजह नजदीक के श्मशान घाट पर बड़े स्तर पर शवों का अंतिम संस्कार का होना है जिससे इलाके में धुआं छा जाता है और बदबू का माहौल होता है। झुग्गी कॉलोनी के निवासियों को इससे कोविड-19 महामारी के फैलने का भी खतरा सता रहा है।

लोगों का कहना है कि श्मशान घाट के इतने नजदीक रहना कभी भी आसान नहीं था, जहां पहले एक दिन में तीन-चार शवों का दाह संस्कार किया जाता था वहीं अब करीब 200-250 शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है।

इलाके में रहने वाली सरोज कहती हैं कि उनकी आंख शवों के जलने की गंध से खुलती है और वे रात में इसी स्थिति में सोती हैं।

झुग्गी कॉलोनी में करीब 900 झुग्गियां हैं जिनमें 1500 लोग रहते हैं जो पश्चिम पुरी श्मशान घाट से चंद मीटर की दूरी पर स्थित है।

38 वर्षीय कूड़ा उठाने वाली सरोज ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “ यह बहुत डरावनी स्थिति है। हम एम्बुलेंसों को आते जाते देखते रहते हैं और रात हो या दिन हो, गंध और धुआं लगातार बना रहता है। ”

वह कहती हैं कि कोरोना वायरस से संक्रमित होने का खतरा भी रहता है और 24 घंटे तथा सातो दिन श्मशान घाट पर चिताओं के जलने से न दिमागी सुकून मिलता है और न नींद आती है।

14 अप्रैल की रात को स्लम कॉलोनी में आग लग गई थी जिसमें कोई हताहत तो नहीं हुआ था लेकिन 30 झुग्गियां जल गई थीं। इससे सरोज तथा उनके पड़ोसी उबरने की कोशिश कर रहे हैं।

सरोज का आधा घर भी इस आग में जल गया था और वह इस दर्द से उबर ही रही थी कि कोविड-19 को नियंत्रित करने के लिए लॉकडाउन लगा दिया गया।

सरोज की पड़ोसी ककोली देवी कहती हैं कि बृहस्पतिवार को करीब 300 शवों का दाह संस्कार किया गया है। बीते दो दिनों में 200-250 शवों का अंतिम संस्कार किया गया है। हालांकि इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है।

वह कहती हैं, “ हमने एक ट्रक किया है और हम यह स्थान छोड़ कर (उत्तर प्रदेश के) महाराजगंज में स्थित अपने गांव लौट जाएंगे। कम से कम हम मौत के हर वक्त के एहसास से तो बच जाएंगे।”

उन्होंने कहा, “ हर कोई घर में बंद है। हम पंखे भी नहीं चला सकते हैं, क्योंकि हमें डर है कि कहीं हवा से कोरोना वायरस न लग जाए। माहौल खासकर बच्चों के लिए भयावह है। ”

उत्तर प्रदेश और बिहार के कई अन्य लोग भी अपने गांव वापस जाने का मन बना रहे हैं। कई लोग तो पहले ही जा चुके हैं।

कई निवासियों ने कहा कि पहले इतनी बुरी हालत नहीं थी, क्योंकि पहले अंतिम संस्कार श्मशान घाट के अंतिम छोर पर होता था लेकिन दिल्ली में कोरोना वायरस के कारण मृतकों की संख्या बढ़ने के पूरे परिसर का इस्तेमाल किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि जब लोगों ने इसका विरोध किया तो अधिकारियों ने बताया कि ऐसा करने का सरकार का आदेश है।

सरोज तीन बच्चों समेत सात सदस्यीय परिवार के साथ रहती हैं और वह भी उत्तर प्रदेश के अपने गांव वापस जाने का मन बना रही हैं।

संक्रमण के मामले बढ़ने के कारण उनका कूड़ा उठाने का काम छूट गया है।

उन्होंने कहा,“ कुछ दिन तो हम सिर्फ पानी पीते हैं तो कुछ दिन एनजीओ के जरिए खाना मिल जाता है। स्थिति बहुत डरावनी है।”

श्मशान घाट के नजदीक रहने की वजह से कुछ लोगों का घरेलू सहायिका का काम भी छूट गया है जो वे नजदीक के पश्चिम विहार कॉलोनी में करती थीं।

घरेलू सहायिका के तौर पर काम करने वाली 16 वर्षीय लड़की ने बताया कि उनके नियोक्ता ने उनसे काम पर नहीं आने को कहा है, क्योंकि वह श्मशान घाट के पास रहती हैं और उन्हें डर है कि ‘हम कोरोना वायरस ला सकते हैं।

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