Delhi Assembly Elections: 1993 में हुआ था पहला चुनाव, जानें मदनलाल, शीला और केजरीवाल को जनता ने कितनी सीटें दी थी
By स्वाति सिंह | Published: January 23, 2020 12:56 PM2020-01-23T12:56:29+5:302020-01-23T14:24:27+5:30
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 के लिए घमासान मचा हुआ है और प्रदेश के सभी दलों के उम्मीदवार अपना-अपना पर्चा भर चुके हैं। दिल्ली में मुख्य रूप से आम आदमी पार्टी (AAP), भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस के बीच मुकाबला है।
दिल्ली में 8 फरवरी को होने वाले विधानसभा चुनावों में करीब 600 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इस बार विधानसभा चुनाव में 1.46 करोड़ से अधिक मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर सरकार चुनेंगे। आखिरी मतदाता सूची में के मुताबिक यहां कुल 1,46,92,136 मतदाता हैं, जिनमें 80,55,686 पुरूष और 66,35,635 लाख महिलाएं तथा 815 थर्ड जेंडर के मतदाता शामिल हैं।
मालूम हो कि दिल्ली के 70 सीटों में 58 सामान्य श्रेणी और 12 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। इसके साथ ही दिल्ली विधानसभा में इस कुल मतदान केंद्रों की संख्या 13,750 है। साल 2015 में मतदान केंद्रों की संख्या 11,763 थी। इस प्रकार से इनमें 16.89 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 के लिए घमासान मचा हुआ है और प्रदेश के सभी दलों के उम्मीदवार अपना-अपना पर्चा भर चुके हैं। दिल्ली में मुख्य रूप से आम आदमी पार्टी (AAP), भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस के बीच मुकाबला है। तीनों पार्टियां एक-दूसरे को टक्कर देने के लिए मतदाताओं के बीच पसीना बहा रही हैं। बीजेपी ने दिल्ली में जेडीयू और एलजेपी के साथ गठबंधन किया है, जबकि कांग्रेस ने आरजेडी से हाथ मिलाया। वहीं, आम आदमी पार्टी अकेले दम पर चुनाव लड़ रही है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप, भाजपा और कांग्रेस में त्रिकोणीय मुकाबला होने के आसार हैं। मतदान आठ फरवरी को होगा जबकि मतगणना 11 फरवरी को की जाएगी।
1993 में दिल्ली में पहली बार हुए थे विधानसभा चुनाव
दिल्ली की पहली विधानसभा का गठन नवंबर, साल 1993 में हुआ था। इससे पहले दिल्ली मंत्री परिषद् हुआ करती थी। तब दिल्ली में कुल छह राष्ट्रीय दलों, तीन राज्य दलों, 41 पंजीकृत (गैर मान्यता प्राप्त) दलों और अन्य स्वतंत्र उम्मीदवारों ने 70 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव लड़ा था। दिल्ली विधानसभा चुनाव उस वक्त 49 सीटों के साथ भाजपा को बहुमत मिला और मदन लाल खुराना मुख्यमंत्री बने थे। वहीं, कांग्रेस को 14, जनता दल को चार सीटें मिली थी। साथ ही तीन निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी जीत हासिल की थी।
सन 1998 से दिल्ली में चला था शीला दीक्षित का जादू
सन 1998 में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जीत हासिल कर शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त किया था। सन 1998 में दिल्ली की सियासत में पैर रखने वाली शीला दीक्षित ने दिल्ली वालों का दिल इस कदर जीता कि इसके बाद साल 2003 और 2008 के विधानसभा चुनाव में भी उनका ही जादू चलता गया। 1998 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी महज 15 सीट पर सिमट गई। जबकि कांग्रेस ने 52 विधानसभा सीटें जीतकर प्रदेश में सरकार बनाई। वहीं, जेडीयू के हिस्से में एक सीट आई थी। उस वक्त दिल्ली में कुल 8420141 मतदाता थे जबकि केवल 4124986 (48.99 फीसदी) वोट पड़े थे।
दिल्ली में तीसरा विधानसभा चुनाव साल 2003 में कुल 70 सीटों के लिए वोटिंग हुई थी। इस दौरान भी राज्य में कांग्रेस ने चुनाव जीता और शीला दीक्षित को ही मुख्यमंत्री बनाया गया। दिल्ली विधानसभा चुनाव 2003 में कांग्रेस को 47, बीजेपी को 20, जदयू-एनसीपी और आईएनडी एक-एक सीट हासिल हुई थी। तब राज्य में कुल मतदाताओं की संख्या 84,48,324 थी।
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2008 में भी राजधानी में कांग्रेस का जादू बरकरार रहा और 43 जीतकर एक बार फिर शीला दीक्षित मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज रहीं। इसके अलावा दिल्ली विधानसभा चुनाव 2003 में बीजेपी को 23, बसपा को 2, निर्दलीय-लोक जनशक्ति पार्टी एक-एक हासिल हुई।
2013 के विधानसभा में बदला दिल्ली का मिजाज
लेकिन इसके बाद दिल्ली विधानसभा चुनाव 2013 में दिल्ली की राजनीती का रूख बदला। इस दौरान दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने अपना भाग्य आजमाते हुए एंट्री की थी। इस चुनाव में बीजेपी को 31, आम आदमी पार्टी को 28, कांग्रेस को 8 और आईएनडी-जदयू-एसएडी एक-एक सीट हासिल हुई थी। चुनावी नतीजों के बाद आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने गठबंधन की सरकार बनाई। हालांकि यह सरकार केवल 49 दिनों तक ही चल पाई।
2015 में दिल्ली चुनाव में AAP को मिली थी ऐतिहासिक जीत
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2015 में आए नतीजों ने सभी को चौंका दिया था। अरविंद केजरीवाल की नेतृत्व वाली आम आमदी पार्टी (AAP) ने रिकॉर्ड 67 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी। अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे। आम आदमी पार्टी ने तब विधानसभा की 70 सीटों में से 67 सीटों पर कब्जा जमा लिया था। बीजेपी महज 3 सीटों पर ही विजय पताका फहराने में कामयाब हो सकी थी। लेकिन सबसे बुरी गत कांग्रेस की हुई जो अपना खाता तक नहीं खोल पाई थी।