बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में देरी का असर, 421 परियोजनाओं की लागत 4.40 लाख करोड़ रुपये से अधिक बढ़ गई
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: December 24, 2023 14:12 IST2023-12-24T14:10:24+5:302023-12-24T14:12:26+5:30
देरी से चल रही 845 परियोजनाओं का समय औसतन 36.64 महीने बढ़ गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, विभिन्न कार्यान्वयन एजेंसियों ने इस देरी के लिए भूमि अधिग्रहण में देरी, वन और पर्यावरण मंजूरी हासिल करने में विलंब और बुनियादी ढांचे के समर्थन की कमी को जिम्मेदार बताया है।

(फाइल फोटो)
नई दिल्ली: बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के समय से न पूरा हो पाने का खामियाजा भुगतना पड़ा है। नवंबर में 150 करोड़ रुपये से अधिक निवेश वाली 421 बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की लागत 4.40 लाख करोड़ रुपये से अधिक बढ़ गई। एक आधिकारिक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है।
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की इस रिपोर्ट के मुताबिक, उसकी निगरानी में शामिल 150 करोड़ रुपये और उससे अधिक निवेश की 1,831 बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में से 421 परियोजनाओं की लागत बढ़ गई है जबकि 845 परियोजनाएं विलंब से चल रही है। मंत्रालय की नवीनतम मासिक रिपोर्ट के मुताबिक, "निगरानी में रखी गई 1,831 परियोजनाओं की कुल मूल लागत 25,10,577.59 करोड़ रुपये थी लेकिन उनके पूरा होने की अनुमानित लागत 29,50,997.33 करोड़ रुपये हो गई। इस तरह कुल लागत में 4,40,419.74 करोड़ रुपये यानी 17.54 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाती है।"
रिपोर्ट कहती है कि नवंबर, 2023 तक इन परियोजनाओं पर 15,58,038.07 करोड़ रुपये का खर्च आया, जो परियोजनाओं की अनुमानित लागत का 52.80 प्रतिशत है। हालांकि इस रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि देरी की गणना समापन की नवीनतम अनुसूची के आधार पर की जाती है तो विलंबित परियोजनाओं की संख्या घटकर 629 हो जाती है।
इसमें कहा गया है कि 308 परियोजनाओं के लिए न तो उसकी मंजूरी का वर्ष और न ही संभावित निर्माण अवधि की सूचना दी गई है। देरी से चल रही 845 परियोजनाओं में से 204 में एक से 12 महीने की देरी है जबकि 198 परियोजनाएं 13-24 महीने की देरी से चल रही हैं। वहीं 322 परियोजनाओं में 25-60 महीने की देरी है और 121 परियोजनाएं पांच साल से अधिक विलंब से चल रही हैं।
देरी से चल रही 845 परियोजनाओं का समय औसतन 36.64 महीने बढ़ गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, विभिन्न कार्यान्वयन एजेंसियों ने इस देरी के लिए भूमि अधिग्रहण में देरी, वन और पर्यावरण मंजूरी हासिल करने में विलंब और बुनियादी ढांचे के समर्थन की कमी को जिम्मेदार बताया है।