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प्लाज्मा थेरेपी पर कुछ कहना जल्दबाजी, जिनके शरीर में पहले से एंटीबॉडी मौजूद उन्हें प्लाज्मा थेरेपी से बहुत फायदा नहीं होता: गुलेरिया

By एसके गुप्ता | Updated: October 24, 2020 17:47 IST

प्लाज्मा थेरेपी को लेकर इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) कह रहा है कि वैज्ञानिक इस थेरेपी को कारगार नहीं मान रहे हैं। ऐसे में एक बहस शुरू हो गई है कि जिस थेरेपी को रामबाण मानकार दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन सहित सैकड़ों लोग ठीक हुए हैं।

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ठळक मुद्देकैसे नकारा जा सकता है वह भी तब जब वैक्सीन इजात में अभी पांच से छह माह का समय लगेगा।एम्स के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया ने कहा है कि अभी प्लाज्मा थेरेपी पर कुछ कहना जल्दबाजी होगी।अगर शरीर में पहले से ही एंटीबॉडीज हों उन्हें बाहर से एंटीबॉडी देने पर ज्यादा फायदा नहीं होता है।

नई दिल्लीः कोरोना से जंग में वैक्सीन का इंतजार अभी बाकी है। स्वदेश निर्मित वैक्सीन के फेज-3 ट्रायल नतीजे अप्रैल तक आएंगे। ऐसे में दूसरे देशों से वैक्सीन खरीद की बातें भी चल रही हैं।

इधर प्लाज्मा थेरेपी को लेकर इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) कह रहा है कि वैज्ञानिक इस थेरेपी को कारगार नहीं मान रहे हैं। ऐसे में एक बहस शुरू हो गई है कि जिस थेरेपी को रामबाण मानकार दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन सहित सैकड़ों लोग ठीक हुए हैं। उसे कैसे नकारा जा सकता है वह भी तब जब वैक्सीन इजात में अभी पांच से छह माह का समय लगेगा।

एम्स के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया ने कहा है कि अभी प्लाज्मा थेरेपी पर कुछ कहना जल्दबाजी होगी। इसमें और डेटा देखने की जरूरत है। आईसीएमआर अध्ययन में बड़ी संख्या में जिन रोगियों को प्लाज्मा दिया गया था। उनमें पहले से ही एंटीबॉडी थी। अगर शरीर में पहले से ही एंटीबॉडीज हों उन्हें बाहर से एंटीबॉडी देने पर ज्यादा फायदा नहीं होता है।

उन्होंने यह भी कहा कि प्लाज्मा थेरेपी कोई जादू की गोली नहीं है। इस थेरेपी का इस्तेमाल तभी कारगार होता है जब जरूरत के मुताबिक इसे दिया जाए। क्योंकि प्लाज्मा थेरेपी से 7 दिन बाद सांस लेने में दिक्कतें या बेचैनी की शिकायतें कम होने की बातें भी कही गई हैं।

कोरोना रोगियों के लिए प्लाज्मा थेरेपी पहले काफी कारगर होने के बाद अब सवालियां निशान पर है। वैज्ञानिकों ने कहा है कि कोरोना की रोकथाम और मौतों की रोकथाम में प्लाज्मा थेरेपी का सीमित असर देखने को मिला है। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (बीएमजे) में प्रकाशित अध्ययन में अप्रैल और जुलाई के बीच भारत के अस्पतालों में भर्ती कोरोना के हल्के लक्षण वाले 464 वयस्कों को शामिल किया गया था। 

एक महीने बाद सामान्य उपचार वाले 41 मरीजों (18 प्रतिशत मरीजों) की तुलना में प्लाज्मा दिए गए 44 मरीजों (19 प्रतिशत मरीजों) की बीमारी बढ़ गई या किसी अन्य कारण से उनकी मौत हो गई। इस अध्ययन के आधार पर प्लाज्मा थेरेपी पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। 

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