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कोटा से बिहार लौटे छात्र-छात्राओं का छलका दर्द, कहा- जिंदा रहने का सहारा बना मैगी, घर पहुंचे, खुशी के आंसू छलके

By एस पी सिन्हा | Updated: May 4, 2020 16:46 IST

वापस लौटे छात्र-छात्राओं ने एक स्वर में यही कहा कि उनके हॉस्टल ले मेस बंद होने पर भूखों मरने की नौबत आन पड़ी थी. लेकिन इस दौरान मौगी ही उनके जिन्दा रहने का सहारा बना.

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ठळक मुद्देकोटा में मेडिकल और इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहे छात्र-छात्राओं और उनके अभिभावकों ने राहत की सांस ली है. मेस बंद हो जाने, कोरोना संक्रमित मरीज बढ़ने के कारण पढ़ाई में मन नहीं लग रहा था.

पटना: स्पेशल ट्रेन से कोटा से आज बिहार लौटे छात्र-छात्राओं के चेहरे पर खुशी तो दिखी लेकिन इस दौरान कई छात्र-छात्राएं काफी भावुक भी नजर आईं. उनके दर्द को सुनकर सभी के रोंगटे खडे हो गये. उनकी व्यथा सुनकर सभी द्रवित हो गये. वापस लौटे छात्र-छात्राओं ने एक स्वर में यही कहा कि उनके हॉस्टल ले मेस बंद होने पर भूखों मरने की नौबत आन पड़ी थी. लेकिन इस दौरान मौगी ही उनके जिन्दा रहने का सहारा बना. सभी केवल मैगी खाकर कई दिनों से वापसी की बाट जोहते रहे. वहीं, कोटा में मेडिकल और इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहे छात्र-छात्राओं और उनके अभिभावकों ने राहत की सांस ली है. कोरोना के कारण लॉकडाउन लागू होने के बाद, कोटा में मेस बंद होने और बच्चों के पैसे खत्म हो जाने के बीच कोरोना संक्रमित मरीजों की बढती संख्या के साथ भूख ने उन्हें मौत के करीब ले जा रहा था. लेकिन मैगी के सहारे वे लोग अपनी जिन्दगी बचाते रहे. गया जिला के बाराचट्टी के पंकज कुमार ने कहा कि पिछले कई दिनों से वो मैगी खाकर जीवन काट रह थे, क्योकि उनके हॉस्टल के अधिकांश छात्र-छात्रायें निकल गये थे और मेस बंद हो गया था.

मेस बंद हो जाने, कोरोना संक्रमित मरीज बढने के कारण पढ़ाई में मन नहीं लग रहा था. तनाव के कारण नींद नहीं आने से डिप्रेशन के शिकार होने लगे थे. बच्चे घर पहुंचे तो उनकी आंखों में आंसू आ गये. बच्चों का कहना है कि वहां काफी परेशानी हो रही थी. 

सरकार ने कुछ नहीं किया, सिर्फ कहानी कहती रही. दो महीने से पढाई ठप, कोचिंग वाले भी मनमानी कर रहे थे. रास्ते में कोई व्यवस्था नहीं, दो-दो किलोमीटर समान लेकर पैदल चलना पडा. छात्रों का कहना है कि रास्ते में ट्रेन में खाने पानी की कोई व्यवस्था नहीं थी. यहां बरौनी उतरे तो प्रशासन द्वारा नाश्ता-पानी दिया गया. इधर, अभिभावकों ने बच्चों को अपने पास देखकर राहत की सांस ली है. हालांकि, उनके चेहरे पर खुशी के साथ चिंता भी थी कि परीक्षा की तैयारी कैसे हो सकेगी?

छात्रा साजिया रहमानी ने कहा कि वे लोग बिहार एवं केन्द्र सरकार के साथ ही कोटा के डीएम के शुक्रगुजार हैं जिन्हौने उऩ्हें अपने घर तक पहुंचाने में मदद की. सरकार का प्रयास पहले होता तो ज्यादा अच्छा होता पर देर आये दुरूस्त आये वाली कहावत को सरकार ने चरितार्थ किया है. उनके हॉस्टल में सिर्फ बिहार की दो छात्रायें बच गई थीं और खाना भी बहुत घटिया मिलने लगा था. इस वजह से उन्हें वहां काफी परेशानी हो रही थी. 

मजबूरन मैगी वगैरह खाकर जीना पड रहा था. एक दूसरे छात्र सूरज सिंह ने कहा कि वो उन सभी लोगों आभारी हैं जिन्होंने छात्र-छात्राओं का बाहर निकालने का निर्णय लिया. रेल किराया के सवाल पर इन छात्र-छात्राओं ने कहा कि उन्हें किसी तरह का किराया नहीं देना पडा है. सरकार ने ही किराया की राशी वहन किया है.

यहां बता दें कि गया में जहां 994 छात्र-छात्रा विशेष ट्रेन से आये हैं. वहीं बरौनी में दोनों ट्रेन से मुंगेर और भागलपुर प्रमंडल के 8 जिले के 2400 से ज्यादा छात्र-छात्राएं आए हैं. इनलोगों को स्टेशन परिसर से प्रखंड मुख्यालय बस से भेजा गया है. इस बीच सभी होम क्वॉरेंटीन पर जिला प्रशासन द्वारा नजर रखी जायेगी और जरूरत पडने पर इनका सैंपल लेकर जांच भी कराया जायेगा. गया के डीएम अभिषक सिंह ने बताया कि अधिकांश छात्र-छात्राओं में जांच के दौरान किसी तरह के सिम्पटम नहीं मिले हैं. इसलिए इन्हें होम क्वॉरेंटीन किया गया है. 

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