PM बनने के बाद नरेंद्र मोदी का ऐसा रहा सफर, पढ़ें-कांग्रेस का प्रदर्शन उनके लिए कितना बड़ा झटका?
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: December 12, 2018 05:11 AM2018-12-12T05:11:09+5:302018-12-12T05:11:09+5:30
चुनाव प्रचार में 'कांग्रेस मुक्त भारत' का नारा देने वाले नरेंद्र मोदी ने 26 मई 2014 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. जम्मू-कश्मीर का विधानसभा चुनाव 2014 लोकसभा चुनाव के साथ हुआ था.
13 सितंबर 2013 को भाजपा ने संसदीय बोर्ड की मीटिंग के बाद नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया. मोदी उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री थे और उनके नाम का ऐलान तब के पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने किया था. संगठन के चोटी के नेता और दशकभर 'पीएम इन वेटिंग' रहे लालकृष्ण आडवाणी इस मीटिंग में शामिल नहीं हुए थे. मोदी के नाम की घोषणा के बाद उनका एक खत मीडिया में आया, जिसमें उन्होंने पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह के कामकाज पर असंतोष जताया था.
चुनाव प्रचार में 'कांग्रेस मुक्त भारत' का नारा देने वाले नरेंद्र मोदी ने 26 मई 2014 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. जम्मू-कश्मीर का विधानसभा चुनाव 2014 लोकसभा चुनाव के साथ हुआ था. जम्मू-कश्मीर में भाजपा ने चुनाव के बाद पीडीपी के साथ गठबंधन करके सरकार बनाई थी. मोदी के शपथ लेते समय देश के 4 राज्यों- राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार थी, जबकि 3 राज्यों- नगालैंड, पंजाब और आंध्र प्रदेश में वह सहयोगी पार्टी थी.
मोदी के पीएम बनते समय कांग्रेस किस स्थिति में थी नरेंद्र मोदी के शपथ लेते समय कांग्रेस देश के 11 राज्यों-अरुणाचल प्रदेश, असम, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम और उत्तराखंड में सत्ता में थी. बीते एक साल में वह दिल्ली, राजस्थान और आंध्र प्रदेश में सत्ता गंवा चुकी थी. मोदी के पीएम बनने के पांच महीने बाद सितंबर 2014 में महाराष्ट्र और हरियाणा में चुनाव हुए. इन दोनों राज्यों में कांग्रेस सत्ता में थी और वह दोनों राज्यों में हार गई. महाराष्ट्र के सियासी इतिहास में यह कांग्रेस की दूसरी हार थी.
दिसंबर 2014 में झारखंड चुनाव के नतीजे आए, यह चुनाव भी भाजपा ने जीता. मई 2014 से दिसंबर 2018 तक क्या बदल चुका है मोदी के पीएम बनने के बाद से अब तक देश के 21 राज्यों में चुनाव हो चुके हैं. इनमें दिसंबर 2018 के पांच राज्यों के चुनाव शामिल नहीं हैं. इन 21 में से 6 राज्यों में कांग्रेस अपने बूते सत्ता में थी और भाजपा ने उसे सीधी टक्कर में मात दी. वहीं कांग्रेस मई 2014 के बाद से किसी भी राज्य में भाजपा को सीधी टक्कर में नहीं हरा पाई थी. कुछ राज्यों में कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की, लेकिन ये ऐसे राज्य थे, जहां कांग्रेस या तो पहले से सत्ता में थी या भाजपा किसी स्थानीय पार्टी की सहयोगी पार्टी के तौर पर सत्ता में थी.
ये रहा कांग्रेस-बीजेपी का ब्योरा
मई-2014 के बाद के विधानसभा चुनावों का ब्यौरा 2014 महाराष्ट्र और हरियाणा: भाजपा ने कांग्रेस को हराया. झारखंड: भाजपा ने अपनी सहयोगी पार्टियों के साथ कांग्रेस, राजद और झारखंड मुक्ति मोर्चा के गठबंधन को हराया. 2015 दिल्ली: 'आप' की दूसरी बार सरकार बनी. कांग्रेस-भाजपा दोनों बुरी तरह हारीं. बिहार: सितंबर-2013 में मोदी के पीएम उम्मीदवार बनते समय नीतीश कुमार ने भाजपा से गठबंधन तोड़ा. 2015 में विधानसभा चुनाव हुए, जिसमें नीतीश ने लालू और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा और जीते. हालांकि, जुलाई 2017 में वह फिर लालू-कांग्रेस का साथ छोड़कर भाजपा के साथ आ गए, जिससे भाजपा सत्ता में वापस आ गई.
2016 असम: कांग्रेस 15 साल से सत्ता में थी, जिसे हराकर भाजपा सत्ता में आई. केरल: वाम मोर्चे ने सत्ता में वापसी की. पुड्डुचेरी: कांग्रेस सत्ता में लौटी. तमिलनाडु: अन्नाद्रमुक ने सत्ता में वापसी की. पश्चिम बंगाल: ममता बनर्जी सत्ता में लौटीं. 2017 गुजरात: भाजपा ने चौथी बार सत्ता में वापसी की. कांग्रेस को कड़े मुकाबले में हराया. हिमाचल प्रदेश: कांग्रेस को हराकर भाजपा ने सरकार बनाई. गोवा: भाजपा सीटों के मामले में दूसरे नंबर पर रही, लेकिन सरकार बनाई. मणिपुर: भाजपा ने कांग्रेस को सीधी टक्कर में हराया. पंजाब: कांग्रेस ने अकाली दल-भाजपा के गठबंधन को हराया. उत्तर प्रदेश: भाजपा ने अखिलेश यादव की सपा को हराया. उत्तराखंड: भाजपा ने कांग्रेस को सीधी टक्कर में हराया. 2018 कर्नाटक: कांग्रेस ने जद (एस) के साथ चुनाव बाद गठबंधन करके सत्ता में वापसी की. त्रिपुरा: भाजपा ने माकपा को हराकर सत्ता हासिल की. मेघालय: एनपीपी ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई और कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई. नगालैंड: विपक्षी पार्टियों के गठबंधन ने कांग्रेस को हराया. भाजपा भी गठबंधन का हिस्सा थी.
2018 के विधानसभा चुनाव सेमीफाइनल क्यों माने जा रहे थे क्योंकि चार महीनों के अंदर ही 2019 में लोकसभा चुनाव होना है. 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 543 में से 282 सीटें अकेले जीती थीं और उसके नेतृत्व वाले गठबंधन राजग ने सरकार बनाई. वहीं कांग्रेस महज 44 सीटों पर सिमट गई, जो कुल सीटों का 10% भी नहीं थीं. 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा पर न सिर्फ प्रदर्शन दोहराने, बल्कि 'कांग्रेस मुक्त भारत' के अपने नारे को जिंदा रखने का दबाव है. बीते साढ़े चार साल में भाजपा ने अपना हर चुनाव आखिरी चुनाव की तरह लड़ा है. ऐसे में लोकसभा से ठीक पहले मजबूत गढ़ गंवाना भाजपा की चुनाव मशीनरी के आत्मविश्वास पर हथौड़े की तरह हो सकता है. वहीं कांग्रेस के लिए यह जीत किसी संजीवनी की तरह होगी, जो महागठबंधन में उसका दावा मजबूत करेगी.
2018 के नतीजे मोदी के लिए झटका
क्यों साढ़े चार साल से हर हाल में चुनाव जीतने की प्रवृत्ति की वजह से नरेंद्र मोदी की छवि अजेय नेता के तौर पर गढ़ी गई. 2018 विधानसभा चुनावों के नतीजों से उनका विजय रथ लड़खड़ाएगा. यह वह नाजुक मौका है, जब पार्टी अध्यक्ष अमित शाह खुद कह चुके हैं, राहुल गांधी से मेरा कोई व्यक्तिगत बैर नहीं है. 'कांग्रेस मुक्त भारत' से हमारा मतलब कांग्रेस से आजादी नहीं, बल्कि कांग्रेस की संस्कृति से आजादी है. संघ प्रमुख मोहन भागवत कह चुके हैं कि 'कांग्रेस मुक्त भारत' राजनीतिक नारा है, जिसका उनके संगठन से कोई संबंध नहीं है, क्योंकि संघ छांटने की भाषा इस्तेमाल नहीं करता. डेढ़ दशक से अपने गढ़ों में कांग्रेस से ऐसी चुनौती मिलना मोदी की अजेय छवि तोड़ने की तरफ बढ़ेगा. दूसरा सिरदर्द सहयोगी दलों की नाराजगी है.
विश्लेषकों के मुताबिक अगर भाजपा मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में आसान जीत या सिर्फ जीत ही दर्ज कर लेती है, तो 2019 में उसका दावा और मजबूत होता, क्योंकि इन तीनों राज्यों की सारी लोकसभा सीटें भाजपा के पास हैं. यहां से आगे जाने का कोई रास्ता नहीं है. सिर्फ नीचे आने का रास्ता है. फैसला भाजपा के हक में आता, तो सहयोगी पार्टियों के पास 2019 में नरेंद्र मोदी के नाम पर बहाने बनाने के रास्ते बंद हो जाते. कांग्रेस के लिए क्या फायदा सबसे बड़ी बात कि कांग्रेस ने लंबे समय बाद अपने बूते जीत का स्वाद चखा है. वह भी ऐसी पार्टी को हराकर, जो उसे खत्म कर देने पर आमादा है, जो 'कांग्रेस मुक्त भारत' का नारा दे रही है, जिससे कांग्रेस साढ़े चार साल में सीधे-सीधे कभी नहीं जीती. राहुल गांधी के लिए यह चुनाव इसलिए खास है, क्योंकि 16 दिसंबर 2017 को उनके अध्यक्ष की कुर्सी संभालने के बाद यह पार्टी की पहली बड़ी जीत है. गुजरात में कांग्रेस ने कड़ी टक्कर दी थी और कर्नाटक में उसने सरकार बनाई थी, लेकिन इसकी रूपरेखा राहुल के अध्यक्ष बनने के पहले लिखी जा चुकी थी.