Lockdown: समिति का सुझाव- 300 से कम कर्मियों वाली कंपनियों को सरकार की अनुमति के बिना छंटनी की हो अनुमति

By भाषा | Updated: April 25, 2020 05:38 IST2020-04-25T05:38:57+5:302020-04-25T05:38:57+5:30

समिति ने सिफारिश की है कि ले-आफ, छंटनी या कंपनी बंद करने से जुड़े विशेष प्रावधन उन उद्योग प्रतिष्ठानों पर लागू होने चाहिए जिनमें काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या 300 है। अभी ये प्रावधान 100 कर्मचारियों वाली कंपनियों पर लागू होते हैं। समिति ने इसे बढ़ाकर 300 करने का सुझाव दिया है।

Committee suggests companies with less than 300 workers be allowed to lay off without govt permission | Lockdown: समिति का सुझाव- 300 से कम कर्मियों वाली कंपनियों को सरकार की अनुमति के बिना छंटनी की हो अनुमति

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (फाइल फोटो)

Highlightsश्रम पर संसद की स्थायी समिति ने सुझाव दिया है कि 300 से कम कर्मचारियों वाली कंपनियों को सरकार की मंजूरी के बिना कर्मचारियों की छंटनी या बंदी की अनुमति होनी चाहिए।औद्योगिक संबंध संहिता पर त्रिपक्षीय विचार-विमर्श में यह प्रस्ताव मतभेद का विषय रहा है। विशेषरूप से ट्रेड यूनियनों ने इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया है।

श्रम पर संसद की स्थायी समिति ने सुझाव दिया है कि 300 से कम कर्मचारियों वाली कंपनियों को सरकार की मंजूरी के बिना कर्मचारियों की छंटनी या बंदी की अनुमति होनी चाहिए। औद्योगिक संबंध संहिता पर त्रिपक्षीय विचार-विमर्श में यह प्रस्ताव मतभेद का विषय रहा है। विशेषरूप से ट्रेड यूनियनों ने इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया है।

कोरोना वायरस की वजह से लागू राष्ट्रव्यापी बंद के बीच इस समिति ने बृहस्पतिवार लको औद्योगिक संबंध संहिता, 2019 पर अपना प्रतिवेदन लोकसभाध्यक्ष ओम बिड़ला को आनलाइन सौंपा। समिति ने सिफारिश की है कि ले-आफ, छंटनी या कंपनी बंद करने से जुड़े विशेष प्रावधन उन उद्योग प्रतिष्ठानों पर लागू होने चाहिए जिनमें काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या 300 है। अभी ये प्रावधान 100 कर्मचारियों वाली कंपनियों पर लागू होते हैं। समिति ने इसे बढ़ाकर 300 करने का सुझाव दिया है।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘समिति के संज्ञान में आया है कि कुछ राज्य सरकारों मसलन राजस्थान में इस सीमा को बढ़ाकर 300 किया गया है। मंत्रालय का कहना है कि इससे रोजगार बढ़ा है और छंटनियां कम हुई हैं।’’

समिति ने सिफारिश की है कि कर्मचारियों की इस सीमा को औद्योगिक (श्रम) संबंध संहिता में ही बढ़ाया जाए। समिति ने किसी ट्रेड यूनियन के पंजीकरण के आवेदन की प्रक्रिया को पूरा करने और उस पर फैसला करने के लिए 45 दिन की समयसीमा का सुझाव दिया है। समिति का कहना है कि जांच का नतीजा बेशक कुछ भी आए, इसकी समययसीमा 45 दिन की होनी चाहिए।

समिति ने हड़तालों पर उदार रुख अपनाते हुए इसे औद्योगिक कार्रवाई की आजादी बताया है। समिति को अंशधारकों से इस तरह के सुझाव मिले थे कि हड़ताल के लिए नोटिस की अवधि को 14 से बढाकर 21 दिन किया जाए। बीजू जनता दल सांसद भर्तुहरि महताब की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा है कि उद्योगों पर कर्मचारियों को लॉकडाउन की अवधि का वेतन देने के लिए दबाव नहीं डाला जा सकता।

रिपोर्ट में समिति ने किसी प्राकृतिक आपदा की स्थिति में प्रतिष्ठानों के बंद होने की स्थिति में श्रमिकों को वेतन देने को लेकर आपत्तियां उठाई हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि भूकंप, बाढ़, चक्रवात आदि की स्थिति में कई बार प्रतिष्ठानों को लंबी अवधि के लिए बंद करना पड़ता है। इसमें नियोक्ता की कोई गलती नहीं होती। ऐसे में श्रमिकों को वेतन देने के लिए कहना अनुचित होगा।

महताब ने कहा कि उद्योगों को मौजूदा बंदी कोविड-19 संकट की वजह से करनी पड़ी है। ऐसे में उन पर कर्मचारियों को बंद की अवधि का वेतन देने के लिए दबाव नहीं डाला जा सकता। औद्योगिक संबंध संहिता, 2019 को लोकसभा में 28 नवंबर, 2019 को पेश किया गया था। इसे समिति के पास 23 दिसंबर, 2019 को भेजा गया।

समिति को अपनी रिपोर्ट तीन माह में 22 मार्च, 2020 तक देनी थी। लोकसभा अध्यक्ष ने समिति को चार दिन का और समय देते हुए रिपोर्ट देने के लिए 26 मार्च, 2020 तक समय दिया था।

चूंकि, कोविड-19 महामारी की वजह से संसद सत्र 24 मार्च, 2020 को समाप्त हो गया था, ऐसे में समिति ने और समय मांगते हुए मानसून सत्र 2020 के पहले दिन रिपोर्ट देने को कहा था। इस बीच, लोकसभा अध्यक्ष को 23 अप्रैल, 2020 को रिपोर्ट सौंप दी गई।

Web Title: Committee suggests companies with less than 300 workers be allowed to lay off without govt permission

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