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पति ने पत्नी के साथ सहमति के बगैर अप्राकृतिक संबंध बनाए?, पीड़िता को असह्य पीड़ा और मौत, छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने कहा-सहमति के बगैर किसी भी तरह के यौन कृत्य को दुष्कर्म नहीं...

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: February 12, 2025 10:19 IST

मामले में अदालत ने पिछले साल 19 नवंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था और सोमवार (10 फरवरी) को फैसला सुनाया।

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ठळक मुद्देसभी आरोपों से बरी कर दिया है तथा उसे तत्काल जेल से रिहा करने का आदेश दिया।अदालत के इस फैसले के बाद पति ने उच्च न्यायालय में अपील दायर की।आईपीसी की धारा 376 और 377 के तहत अपराध नहीं बनता।

बिलासपुरः छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने कहा कि पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ उसकी सहमति के बगैर किसी भी तरह के यौन कृत्य को दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता। उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने सोमवार को एक आदेश में यह टिप्पणी की और आरोपी पति को भारतीय दंड संहिता की तीनों धाराओं 304, 376 और 377 के तहत लगे सभी आरोपों से बरी कर दिया है तथा उसे तत्काल जेल से रिहा करने का आदेश दिया। इस मामले में अदालत ने पिछले साल 19 नवंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था और सोमवार (10 फरवरी) को फैसला सुनाया।

उच्च न्यायालय से मिली जानकारी के अनुसार बस्तर (जगदलपुर) के निवासी याचिकाकर्ता पति ने अपनी पत्नी के साथ 11 दिसंबर 2017 की रात को उसकी सहमति के बगैर अप्राकृतिक संबंध बनाए थे। पति पर आरोप लगाया कि इस कृत्य के कारण पीड़िता को असह्य पीड़ा हुई और बाद में इलाज के दौरान अस्पताल में उसकी मौत हो गई।

पुलिस ने मामला दर्ज कर पति को गिरफ्तार कर लिया। जब मामले की सुनवाई अधीनस्थ अदालत में हुई तब अदालत ने आईपीसी की धारा 377 (अप्राकृतिक यौन कृत्य) 376 (दुष्कर्म) और 304 (गैर इरादतन हत्या) के तहत पति को दोषी ठहराया और उसे 10 साल कारावास की सजा सुनाई। अदालत के इस फैसले के बाद पति ने उच्च न्यायालय में अपील दायर की।

मामले की सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय ने माना कि अगर पत्नी की आयु 15 वर्ष से कम नहीं है तो पति द्वारा किसी भी यौन संबंध या यौन कृत्य को दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता। न्यायालय ने यह भी माना कि इन परिस्थितियों में पत्नी की सहमति स्वमेव महत्वहीन हो जाती है, इसलिए अपीलकर्ता पति के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 और 377 के तहत अपराध नहीं बनता।

इसी प्रकार आईपीसी की धारा 304 के तहत भी अधीनस्थ अदालत ने कोई विशेष निष्कर्ष दर्ज नहीं किया है। उच्च न्यायालय के फैसले में याचिकाकर्ता पति को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया है तथा उसे तत्काल जेल से रिहा करने का आदेश दिया गया है। 

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