डॉक्टर कफील खान के खिलाफ आरोप पत्र और संज्ञान का आदेश रद्द
By भाषा | Published: August 27, 2021 12:04 AM2021-08-27T00:04:56+5:302021-08-27T00:04:56+5:30
अलीगढ़ विश्वविद्यालय में कथित भड़काऊ भाषण के एक मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सरकार से आवश्यक मंजूरी के अभाव में डॉक्टर कफील खान के खिलाफ आरोप पत्र और संज्ञान का आदेश बृहस्पतिवार को रद्द कर दिया। अलीगढ़ के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने एक आपराधिक मामले में आरोप पत्र दाखिल किए जाने के बाद खान के खिलाफ संज्ञान का आदेश पारित किया था। वर्ष 2019 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) एवं राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के खिलाफ विरोध के दौरान भड़काऊ भाषण देने का डॉक्टर कफील खान पर आरोप लगाया गया था। अदालत ने आरोप पत्र और संज्ञान आदेश को इसलिए दरकिनार कर दिया क्योंकि उसके मुताबिक, ऐसे मामलों (भड़काऊ भाषण के अपराध) के लिए जिलाधिकारी द्वारा केंद्र और राज्य सरकार से भारतीय दंड संहिता की धारा 196 (ए) के तहत आवश्यक मंजूरी नहीं ली गई थी। हालांकि यह आदेश देते हुए न्यायमूर्ति गौतम चौधरी ने यह स्पष्ट किया कि केंद्र और राज्य सरकार से धारा 196 (ए) के तहत आवश्यक मंजूरी के बाद अदालत द्वारा आरोप पत्र और इसका संज्ञान लिया जा सकता है। इससे पूर्व, इस मामले में खान के खिलाफ भादंसं की धारा 153ए, 153बी, 505(2) और 109 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी। इसके परिणाम स्वरूप कफील खान को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था। बाद में पुलिस ने अलीगढ़ की अदालत में 16 मार्च, 2020 को आरोप पत्र दाखिल किया और मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 28 जुलाई, 2020 को इस आरोप पत्र को संज्ञान में लिया जिसे चुनौती देते हुए कफील खान ने यह याचिका दायर की थी।अदालत के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए, डॉ कफील खान ने कहा, "यह भारत के लोगों के लिए एक बड़ी जीत है और न्यायपालिका में हमारे विश्वास को पुन: स्थापित करती है। उत्तर प्रदेश के लोगों के साथ योगी आदित्यनाथ सरकार की मनमानी माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के इस फैसले से पूरी तरह से सामने आ गयी है।’’उन्होंने कहा, "हम यह भी उम्मीद करते हैं कि यह साहसिक निर्णय भारत की जेलों में बंद सभी लोकतंत्र समर्थक नागरिकों और कार्यकर्ताओं (एक्टिविस्ट) को एक नयी उम्मीद देगा। भारतीय लोकतंत्र की जय हो।
Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।