मोदी सरकार ने खारिज किए महाराष्ट्र के आरोप, दिल्ली सरकार ने कहा- तबलीगी मरकज के लिए किसी अनुमति की नहीं थी आवश्यकता
By हरीश गुप्ता | Updated: April 9, 2020 07:20 IST2020-04-09T07:20:37+5:302020-04-09T07:20:37+5:30
गृह मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि जब दिल्ली सरकार ने उपराज्यपाल अनिल बैजल के कार्यालय के जरिए तबलीगी जमात में शामिल लोगों को वहां से निकालने के बारे में 22-23 मार्च को मदद मांगी, तब इस प्रकरण में आधिकारिक रूप से दिल्ली पुलिस ने कदम उठाए.

तबलीगी मरकज के लिए किसी अनुमति की नहीं थी आवश्यकता। (फाइल फोटो)
नई दिल्लीः केंद्र सरकार ने गत दिनों दिल्ली स्थित निजामुद्दीन परिसर में आयोजित तबलीगी जमात के धार्मिक आयोजन पर जारी विवाद में नहीं पड़ते हुए कहा है कि इस मामले से निपटना दिल्ली सरकार की जिम्मेदारी थी. उधर, दिल्ली सरकार ने अपनी दलील में कहा है कि यह आयोजन किसी सार्वजनिक स्थल पर नहीं होकर निजामुद्दीन में संस्थान की छह मंजिला इमारत में होने वाला था, इसलिए इसे किसी अनुमति की आवश्यकता नहीं थी. यह आयोजन संस्थान की अपनी इमारत में हुआ और इसमें भाग लेने वाले भी उसके ही अनुयायी थे.
केंद्रीय गृह मंत्रालय सिर्फ ऐसे लोगों के मामलों पर कार्रवाई करता है, जो विभिन्न तरह के वीजा पर विदेश से भारत आते हैं. गृह मंत्रालय पुलिस की विशेष शाखा के जरिए ऐसे सम्मेलनों के आयोजकों द्वारा बनाए गए विदेशियों के रजिस्टर की जानकारी रखता है.
बहरहाल, मरकज के भीतर ऐसे आयोजन के लिए विशेष शाखा से किसी अनुमति की आवश्यकता नहीं थी, इसलिए ऐसी कोई अनुमति नहीं दी गई. इस मामले को लेकर महाराष्ट्र सरकार से तीखी बयानबाजी में न उलझते हुए गृह मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि तबलीगी जमात को महाराष्ट्र द्वारा अनुमति खारिज कर दी गई थी, क्योंकि वह खुले स्थान पर सम्मेलन का आयोजन करना चाहते थे. लेकिन दिल्ली का मामला अलग था, क्योंकि आयोजन उनकी अपनी इमारत में हुआ था.
13 मार्च को, जब यह सम्मेलन शुरू हुआ तब ऐसा कोई आयोजन नहीं करने के संबंध में कोई आदेश नहीं था. समस्या तब शुरू हुई, जब लोगों ने 16 मार्च को सम्मेलन खत्म के बाद आयोजन स्थल से बाहर निकलने से इनकार किया.
गृह मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि जब दिल्ली सरकार ने उपराज्यपाल अनिल बैजल के कार्यालय के जरिए तबलीगी जमात में शामिल लोगों को वहां से निकालने के बारे में 22-23 मार्च को मदद मांगी, तब इस प्रकरण में आधिकारिक रूप से दिल्ली पुलिस ने कदम उठाए. सूत्रों ने इस प्रकरण को सुलझाने के सिलसिले में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल की सहभागिता के बारे में कुछ भी कहने से इनकार कर दिया.
हालांकि प्रधानमंत्री कार्यालय के सूत्रों के अनुसार, जब भी प्रधानमंत्री के सामने कोई पेचीदा मामले आते हैं- खासकर अल्पसंख्यकों के संबंध में- तब इसके समाधान के लिए डोभाल हमेशा पृष्ठभूमि में रहकर कदम उठाते हैं. जम्मू-कश्मीर में सरकार के कदमों के बारे में अल्पसंख्यकों को भरोसे में लेने का मामला हो, या फिर दिल्ली में गत फरवरी में हुई हिंसा का मामला, डोभाल को ही मोर्चे पर लगाया गया था.
तबलीगी जमात के मामले में सरकार ने विभिन्न स्रोतों के जरिए लोगों को मनाने की कोशिश की. इनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी और गुजरात के निवासी जफर सरेशवाला भी शामिल थे, जो खुद तब्लीगी हैं. लेकिन तबलीगी जमात के प्रमुख मौलाना साद ने उनकी कोई बात सुनने से इनकार कर दिया. इसके बाद मामले के समाधान के लिए 28 मार्च को डोभाल को मोर्चा संभालना पड़ा.
डोभाल से प्रतिक्रिया की कोशिशें सफल नहीं हो पाईं, लेकिन यह रहस्य ही बना हुआ है कि दिल्ली सरकार, दिल्ली पुलिस और केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 15 मार्च को सम्मेलन के खत्म होने के बाद भी भीड़ को तत्काल क्यों नहीं हटाया.