ब्राह्मण पुजारी ने गाजे-बाजे के साथ दलित को कन्धे पर बैठाकर कराया मंदिर में दर्शन
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: April 17, 2018 04:32 PM2018-04-17T16:32:08+5:302018-04-17T16:32:08+5:30
मंदिर के पुजारी ने कहा कि दलितों के उत्पीड़न को खत्म करने और सार्वभौमिक भाईचारा को बढ़ावा देने के लिए ये कदम उठाया गया।
दलितों को मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया, दलित को घोड़ी पर बैठने नहीं दिया, दलितों को रास्ता रोका ऐसी खबरें मीडिया में अक्सर आती रहती हैं। लेकिन ये खबर बिल्कुल उलट है जो जातिवादी संघर्षों के उलट सामाजिक समरसता की मिसाल पेश करती है। सोमवार (16 अप्रैल) को तेलंगाना के जियागुड़ु रंगनाथ मंदिर में लोगों के अंदर कुछ अलग उत्साह और उत्सुकता थी। मंदिर के अंदर परंपरागत नादस्वरम और मृदंगम के संगीत के बीच चिल्कुर बालाजी मंदिर के आचार्य सीएस रंगराजन अपने कन्धे पर आदित्य परासरी को बैठाकर मंदिर में ले गये।
परासरी के कन्धे में माला और सिर पर पगड़ी थी। उन्हें देखकर ये साफ लग रहा था कि उनके लिए भी ये खास दिन था। परासरी दलित समुदाय से आते हैं। ब्राह्मण पुजारी द्वारा उनको कन्धे पर बैठाकर ले जाने का सन्देश साफ था कि मंदिर के दरवाजे सभी के लिए खुले हुए हैं। इस ऐतिहासिक दृश्य का गवाह बनने के लिए आसपास के इलाके के लोग रंगनाथ मंदिर आए थे। शाम को ठीक 4.30 बजे 52 वर्षीय पुजारी रंगराजन ने आदित्य को कन्धे पर बैठाया और मंदिर के ध्वजास्तम्भम तक ले गये।
रंगराजन और आदित्य के साथ-साथ मंदिर के दूसरे पुजारी भी थे। रंगराजन और आदित्य ने एक साथ जाकर मंदिर के गर्भगृह में दर्शन और पूजा की। रंगराजन ने तेलंगाना टुडे को बताया कि उन्होंने 2700 साल पुरानी घटना को दोहराया है। रंगराजन के अनुसार उन्होंने सनातन धर्म की महानता को पुनर्स्थापित करने और सभी समुदायों के बीच समरसता बढ़ाने के लिए ये कदम उठाया।
रंगराजन मानते हैं कि बहुत से लोग अपने निजी हितों के कारण देश के सामुदायिक सौहार्द्र को बिगाड़ रहे हैं। रंगराजन ने कहा कि उन्होंने दलितों के उत्पीड़न को खत्म करने और सार्वभौमिक भाईचारा को बढ़ावा देने के लिए ये कदम उठाया।