विधानसभा चुनावः BJP का कांग्रेस मुक्त भारत का शाही सपना टूटा, पंजे के पंच से कमल मुरझाया
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: December 12, 2018 05:46 AM2018-12-12T05:46:18+5:302018-12-12T05:46:18+5:30
राहुल गांधी तीन राज्यों के नतीजों से मोदी-शाह के मिथक को तोड़ने में सफल रहे हैं. जिस तरह से भाजपा हिंदी भाषी राज्यों में लगातार विजय रथ लेकर आगे बढ़ रही थी उसे देखकर कहा जाने लगा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को खत्म कर पाना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा.
2019 की सत्ता के लिए हुए सेमीफाइन में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मोदी-शाह की जोड़ी को करारी मात दी है. ये महज संयोग है कि राहुल गांधी ने जिस दिन पार्टी अध्यक्ष का पद संभाला, उसके ठीक एक साल बाद उनके नेतृत्व में पार्टी ने राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में अभूतपूर्व प्रदर्शन किया.
कांग्रेस का यह प्रदर्शन केवल पार्टी के लिए ही नहीं, बल्कि अध्यक्ष के तौर पर राहुल गांधी के लिए भी संजीवनी की तरह है. भाजपा को उसी के घर में पटखनी देकर राहुल गांधी ने अपने नेतृत्व पर सवाल खड़े करने वालों की बोलती बंद कर दी है. राहुल गांधी ने क्षेत्रीय नेताओं के साथ मिलकर हिंदी भाषी राज्यों में जिस तरह का प्रदर्शन किया है उसने ना सिर्फकांग्रेस पार्टी को एक बार फिर से स्थापित किया है, बल्कि बतौर नेता राहुल गांधी को भी स्थापित करने में काफी मदद की है.
राहुल गांधी तीन राज्यों के नतीजों से मोदी-शाह के मिथक को तोड़ने में सफल रहे हैं. जिस तरह से भाजपा हिंदी भाषी राज्यों में लगातार विजय रथ लेकर आगे बढ़ रही थी उसे देखकर कहा जाने लगा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को खत्म कर पाना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा. लेकिन, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने इस मिथक को तोड़ने में सफलता हासिल की है. इसके बाद राजस्थान और मध्यप्रदेश में भी जीत का परचम लहराकर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के कांग्रेस मुक्त भारत के सपने को चूर-चूर कर दिया.
देश सबसे बड़े राज्य राजस्थान और मध्यप्रदेश में भाजपा को पटखनी देकर राहुल गांधी ने 2019 की तस्वीर पेश कर दी है. कांग्रेस का यह बेहतरीन प्रदर्शन आने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए बड़ी चुनौती साबित होगा. वहीं हमेशा से ही इस बात को लेकर सवाल खड़ा होता रहा है कि क्या राहुल 2019 में नरेंद्र मोदी को चुनौती दे सकते हैं, लेकिन इन चुनावी नतीजों ने राजनीतिक विश्लेषकों की अवधारणा को बदलकर रख दिया है.