Bihar assembly elections 2020: बिहार में सियासी घमासान, नीतीश कुमार और तेजस्‍वी यादव में मुकाबला, सीएम करेंगे सत्ता में वापसी!

By एस पी सिन्हा | Published: October 19, 2020 03:17 PM2020-10-19T15:17:13+5:302020-10-19T15:17:13+5:30

बिहार में सियासी घमासानः नीतीश कुमार तीन तरफ से हमले झेल रहे हैं. कांग्रेस और राजद के साथ साथ लोजपा के चिराग पासवान भी उनको निशाने पर ले रहे हैं.

Bihar assembly elections 2020: cm nitish kumar Tejaswi Yadav jdu rjd congress bjp nda | Bihar assembly elections 2020: बिहार में सियासी घमासान, नीतीश कुमार और तेजस्‍वी यादव में मुकाबला, सीएम करेंगे सत्ता में वापसी!

चुनाव में मुख्‍यमंत्री और जदयू प्रमुख नीतीश कुमार और तेजस्‍वी यादव के बीच सीधा मुकाबला है. (file photo)

Highlightsएकबार फिर से नीतीश कुमार की अगुवाई वाली एनडीए की सरकार बन सकती है. चिराग पासवान, तेजस्‍वी यादव और नीतीश कुमार के बीच जबर्दस्त मुकाबला होने वाला है. इस त्रिकोणीय मुकाबले में जीत नीतीश कुमार की होने की चर्चायें होती दिख रही हैं. 

पटनाः बिहार में सियासी घमासान का रंग जमने लगा है. रोजगार और विकास के मुद्दे जोर शोर से उठाए जा रहे हैं. नीतीश कुमार तीन तरफ से हमले झेल रहे हैं. कांग्रेस और राजद के साथ साथ लोजपा के चिराग पासवान भी उनको निशाने पर ले रहे हैं.

बावजूद इसके विधानसभा चुनाव में एक बार फिर नीतीश कुमार का पलड़ा भारी दिखाई दे रहा है. ऐसे में इस बात की पूरी संभावना जताई जाने लगी है कि एकबार फिर से नीतीश कुमार की अगुवाई वाली एनडीए की सरकार बन सकती है. हालांकि चिराग पासवान, तेजस्‍वी यादव और नीतीश कुमार के बीच जबर्दस्त मुकाबला होने वाला है. इस त्रिकोणीय मुकाबले में जीत नीतीश कुमार की होने की चर्चायें होती दिख रही हैं. 

चल रही चर्चाओं पर गौर करें तो इस बार फिर नीतीश कुमार सत्‍ता में वापसी करेंगे. चुनाव में मुख्‍यमंत्री और जदयू प्रमुख नीतीश कुमार और तेजस्‍वी यादव के बीच सीधा मुकाबला है. साथ ही इस बार चिराग पासवान भी चुनाव में प्रमुख चेहरा बने हुए हैं. तेजस्‍वी यादव के अलावा नीतीश कुमार को इस बार चिराग पासवान भी टक्‍कर दे रहे हैं.

राजद की स्थिति पहले की तुलना में और बेहतर होने की संभावना कम

ऐसे में यह अनुमान लगाया जा रहा है कि इसबार चुनाव में राजद की स्थिति पहले की तुलना में और बेहतर होने की संभावना कम ही है. उसका मुख्य कारण यह माना जा रहा है कि तेजस्वी यादव में अभी वह परिपक्वता नही दिखाइ दे रही है, जो लालू यादव में रही थी. फिर लोगों को लालू-राबड़ी शासन की बातें भी जेहन में उतर कर भय पैदा कर दे रही हैं. लोजपा की स्थिती भी हवा-हवाई जैसी ही दिख रही है. इसके अलावे उपेन्द्र कुशवाहा के नेतृत्व में बने गठबंधन का कोई खास प्रभाव नहीं दिखता है.

क्षेत्र विशेष अथवा एक-दो विधानसभा क्षेत्रों में प्रभाव रखने वाले ये क्षेत्रीय दल- छोटी पार्टियों ने एनडीए और महागठबंधन के नेतृत्व को अस्वीकार कर दिया है. अपनी जमीन तैयार करने को नया मोर्चा बना लिया है. इनकी संख्या करीब आधा दर्जन हो गई है.

दलित-मुस्लिम-यादव वोटों में सेंधमारी को प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक अलायंस (पीडीए) का गठन 

दलित-मुस्लिम-यादव वोटों में सेंधमारी को प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक अलायंस (पीडीए) का गठन किया गया है. जन अधिकार पार्टी के मुखिया पप्पू यादव इसका नेतृत्व कर रहे हैं. दलित नेता चंद्रशेखर आजाद की पार्टी बीएमपी और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआइ) घटक दल हैं. 2015 में केवल डेढ़ फीसदी वोट लाले वाली पप्पू यादव को पूर्णिया -मधेपुरा और उससे सटे क्षेत्रों से बड़ी आस है. 

इसतरह से गठबंधनों में पड़ी दरार ने इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव को रोचक बना दिया है. इस चुनाव में हो रहे अभिनव प्रयोग से सभी दलों को अपने जनाधार का आकलन हो जाएगा. साथ ही, विरोधियों की ताकत का भी अहसास होगा. पिछले चुनाव में सफल हुए महागठबंधन को पता चलेगा कि जदयू के अलग होने और वाम दलो के जु्डने से क्या लाभ-हानि है. उसी तरह लोकसभा चुनाव में सफलता से उत्साहित एनडीए भी विधानसभा चुनाव में लोजपा के अलग होने से लाभ-हानि का अंदाजा लगा सकेगा. रालोसपा की परीक्षा दो लोकसभा चुनावों में हो चुकी है.

वह जीरो पर आउट हो चुकी है. पप्पू यादव और उनकी पत्नी बुरी तरह पराजित हो चुकी हैं. इसतरह से विधानसभा में कुछ अलग यह है कि लोकसभा चुनाव के साथी लोजपा ने एनडीए से अलग राह पकड़ ली है. वह जदयू के उम्मीदवारों के खिलाफ मैदान में उतर गई है तो कुछ सीटों पर भाजपा से भी दो-दो हाथ कर रही है. वर्ष 2005 के बाद लोजपा अपनी ताकत का अंदाजा नहीं लगा सकी है. उस समय फरवरी में हुए चुनाव में लोजपा को 29 सीटें मिल गई. पार्टी ने इससे अपने जानाधार का आकलन किया, लेकिन उसी साल अक्टूबर में चुनाव हुआ तो यह पार्टी 10 सीटों पर सिमट गई.

चुनाव में वह अपने नये जनाधार का एक बार फिर आकलन कर पाएगी

अब इस चुनाव में वह अपने नये जनाधार का एक बार फिर आकलन कर पाएगी. रालोसपा भी उसी श्रेणी में है. एनडीए में रहकर लोकसभा की सभी तीन सीट 2014 में जीतने वाली रालोसपा महागठबंधन में गई तो अपने प्रमुख उपेन्द्र कुशवाहा को भी नहीं जीता सकी. इस बार उसने भी एक अभिनव प्रयोग किया है. दोनों गठबंधनों से अलग उसने छोटे दलों का एक नया गठबंधन बनाया है. ऐसे में उसके पुराने गठबंधन एनडीए को तो नफा-नुकसान का अंदाजा लगेगा ही, ये दोनों दल खुद भी अंदाज लगा सकेंगे कि अभी वह बिना सहारे चलने लायक है या नहीं. मतलब साफ है बडे़ राजनीतिक दल सत्ता पाने और खोने का खेल, खेल रहे हैं तो छोटे दल अपनी जमीन तलाश कर भविष्य के लिए प्रयोग कर रहे हैं.

बिहार विधानसभा के लिए 2015 में हुए चुनाव में भाजपा से जदयू अलग हुआ तो महागठबंधन सफल हो गया. लेकिन पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में जदयू ने फिर भाजपा का साथ दिया तो महागठबंधन के साथी चारों खाने चित्त हो गये. हाल के चुनावों पर एक नजर डालें तो यह साफ है कि भाजपा, राजद और जदयू ही तीन बडे़ दल हैं. इन तीनों दलों में दो जहां भी रहे सत्ता उनके हाथ लगी. कांग्रेस भी इन्हीं दलों के सहारे कुछ कम या अधिक सीटें पाती रही. इससे इतर साथ जाने वाले छोटे दलों की भूमिका का अंदाजा नहीं लग सका है. यह चुनाव ऐसे ही दलों को उनकी ताकत का अहसास करायेगा. कांग्रेस को भी अंदाजा होगा कि जनता राजद से उसकी दोस्ती पसंद करती है या जदयू से.

बिहार चुनाव से पहले चिराग पासवान एनडीए से अपना नाता तोड़ चुके हैं

वहीं, बिहार चुनाव से पहले चिराग पासवान एनडीए से अपना नाता तोड़ चुके हैं. हालांकि उन्‍होंने यह भी बात साफ की थी कि वह चुनाव मैदान में एनडीए के खिलाफ नहीं बल्कि सिर्फ जदयू के खिलाफ चुनाव में हैं. लेकिन अभी वह भाजपा के भी कई उम्मीदवारों के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतार चुके हैं. ऐसे में उन्हें अब वोटकटवा तक कहा जाने लगा है.

पिछले कुछ दिनों से नीतीश कुमार लगातार अपनी चुनावी सभाओं में इस बात का जिक्र कर रहे हैं कि आखिर क्यों बिहार में पिछले 15 साल में कोई उद्योग नहीं लगा. उद्योग नहीं लगने की वजह नीतीश कुमार बिहार का चारों तरफ से जमीन से घिरा होना बता रहे हैं. नीतीश का कहना है कि अगर बिहार भी समुद्र के किनारे बसा हुआ राज्य होता तो यहां जरूर उद्योग लगते.

उधर, सरकार आने की सूरत मे तेजस्वी पहले दस्तखत से दस लाख नौकरियां देने का वादा कर रहे हैं. तेजस्वी यादव के 10 लाख सरकारी नौकरी के वादे पर नीतीश कुमार ने कहा कि अरे पैइसवा कहां से आवेगा तोरा. क्या ये संभव है. नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव पर निशाना साधते हुए कहा है कि बिहार की जनता किसी भी प्रकार की झांसे में न आएं.

सतर्क रहिएगा कहीं नौकरी मिलने के नाम पर नया धंधा न शुरू हो जाए?

नीतीश कुमार ने कहा कि सतर्क रहिएगा कहीं नौकरी मिलने के नाम पर नया धंधा न शुरू हो जाए? तेजस्वी के अनुभव पर चुटकी लेते हुए कहा कि कहने से कुछ नहीं होता है. उन्हें काम करने का कोई अनुभव नहीं है. 15 साल में कितना नौकरी दे दिए, ये सब जानते हैं. हमने 6 लाख से ज्यादा लोगों को नौकरी दी. विकास मित्र, टोला सेवक, तालीमी मरकज और स्वंय सेवकों के माध्यम से लोगों को रोजगार दिया। नीतीश ने कहा कि कुछ लोग बस बोलते रहते हैं, उन्हें पता नहीं है कैसे होगा.

पहले जब मौका मिला तो कुछ नहीं किया. अब कुछ भी बोल रहे हैं. बता दें कि तेजस्वी यादव बार-बार कह रहे हैं कि अगर उनकी सरकार आती है तो पहली कैबिनेट मीटिंग में ही उनका पहला हस्ताक्षर 10 लाख नौकरी देने के फैसले पर होगा. वहीं, रैली में नीतीश कुमार ने लालू यादव पर हमला बोलते हुए कहा कि पति जब अंदर गए तो पत्नी (राबड़ी देवी) को बैठा दिया, लेकिन महिलाओं के लिए उन्होंने क्या किया बताएं? उन्होंने कहा कि हमने महिलाओं को आरक्षण देने से लेकर उनकी शिक्षा का पूरा इंतजाम किया. उन्होंने कहा कि अब कुछ लोग महिलाओं को भडकाने में लगे हैं, लेकिन पहले उन्होंने कुछ नहीं किया. नीतीश कुमार ने ये भी कहा कि जितनी महिलाएं आज बिहार पुलिस में नजर आती हैं शायद ही किसी राज्य में हों. 

यहां बता दें कि बिहार चुनाव के लिए तीन चरणों में मतदान होगा. पहले चरण का मतदान 28 अक्टूबर, दूसरे चरण का मतदान 03 नवंबर और तीसरे व आखिरी चरण का मतदान 07 नवंबर को होगा. 10 नवंबर को नतीजे आएंगे. पहले चरण में 16 जिलों की 71 सीटों पर मतदान होगा. इसके लिए 31 हजार पोलिंग स्टेशन बनाए जाएंगे.

दूसरे चरण में 17 जिलों की 94 सीटों पर मतदान होगा. इसके लिए 42 हजार पोलिंग स्टेशन बनाया जाएगा. तीसरे और अंतिम चरण में 15 जिलों की 78 सीट पर मतदान होगा. आखिरी चरण में 33.5 हजार पोलिंग स्टेशन पर मतदाता मतदान कर पाएंगे. कोरोना काल में होने जा रहे चुनाव में कई विशेष सावधानियां बरती जाएंगी. चुनाव आयोग ने इसके लिए खास इंतजाम किया है. बता दें कि बिहार विधानसभा का कार्यकाल 29 नवंबर को खत्म हो रहा है.

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