बेगूसराय में गिरिराज से मिली कन्हैया को करारी हार, बीजेपी-भाकपा कार्यकर्ताओं के बीच झड़प
By एस पी सिन्हा | Published: May 23, 2019 05:32 PM2019-05-23T17:32:14+5:302019-05-23T17:32:14+5:30
प्रधानमंत्री मोदी पर लगाए जाने वाले जिन आरोपों के तहत कन्हैया ने अपना जनाधार बढाना चाहा, उन्हीं बातों को गिरिराज सिंह ने अपना हथियार बना लिया और प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर ही वोट मांगा. गिरिराज सिंह को ऐसे भी प्रधानमंत्री मोदी का काफी करीबी माना जाता है.
बिहार के सबसे हॉट सीट बेगूसराय में भाजपा के उम्मीदवार गिरिराज सिंह ने भाकपा उम्मीदवार कन्हैया कुमार को तीन लाख मतों हरा दिया है. वैसे उनकी जीत सुनिश्चित मानी जा रही थी. वहीं, गिरिराज सिंह के जीत की खबर फैलते ही भाजपा कार्यकर्ताओं ने कथित तौर पर जश्न मना रहे भाजपा कार्यकर्ताओं पर ईंट-पत्थर से हमला कर दिया.
प्राप्त जानकारी के अनुसार हिंसा का यह मामला नगर थाना क्षेत्र के पटेल चौक का है. हालात इस हद तक बिगड़ गए कि मौके पर पुलिस तक को बुलाना पड गया. भाजपा और भाकपा समर्थकों में हिंसक झड़प के दौरान एसपी के नेतृत्व में बडी संख्या में पुलिस बल मौके पर पहुंची.
घटना भाकपा के जिला कार्यालय के सामने हुई है. वैसे शुरुआती दौर में जब यहां के बछवाडा और तेघडा (कम्युनिस्ट प्रभाव वाला क्षेत्र) के ईवीएम की गिनती हुई तो कन्हैया कुमार कई बार दूसरे स्थान पर रहे. दरअसल, बेगूसराय की सीट पर सबसे दिलचस्प चुनावी लडाई मानी जा रही थी. कन्हैया कुमार के लिए कई सेलिब्रेटीज भी चुनाव प्रचार के लिए बेगूसराय पहुंचे थे, लेकिन कोई रणनीति काम नहीं आई. भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में भी दिग्गज नेताओं ने चुनाव प्रचार किया था.
यहां बता दें कि चुनाव शुरू होने से पहले लोकसभा सीट बदले जाने से गिरिराज सिंह बेहद नाराज थे. हालांकि, उन्हें पार्टी आलाकमान का फैसला मानना पडा था. इस हाईप्रोफाइल सीट पर कन्हैया कुमार ने बार-बार प्रधानमंत्री मोदी को निशाना बनाया, जो यहां की जनता ने खारिज कर दिया.
प्रधानमंत्री मोदी पर लगाए जाने वाले जिन आरोपों के तहत कन्हैया ने अपना जनाधार बढाना चाहा, उन्हीं बातों को गिरिराज सिंह ने अपना हथियार बना लिया और प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर ही वोट मांगा. गिरिराज सिंह को ऐसे भी प्रधानमंत्री मोदी का काफी करीबी माना जाता है. इसके बाद जिस अंदाज में गिरिराज सिंह ने अपना प्रचार शुरू किया था इससे साफ था कि वे चुनावी लडाई को देशद्रोह और देशभक्ति के बीच की लडाई बनाना चाहते हैं. इसमें वह काफी हद तक कामयाब भी रहे. उन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर वंदे मातरम जैसे नारों को भी बार-बार उछाला और जनभावना के साथ चले.
वहीं, जानकारों की अगर मानें तो कन्हैया की नजर जिन वोटों पर थी, उनका बडा हिस्सा उनके प्रचार के तरीके के बाद खिसकता गया. उनका समर्थन करने वाले लोग जो दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों आए थे, उन्होंने... हम लेके रहेंगे आजादी जैसे नारों को ही अपना आधार बनाया. आज हिंदुस्तान की जनता उसे सीधे जेएनयू में लगाए गए देशद्रोही नारे से जोडकर देखती है. ऐसे में लोगों ने कन्हैया को उसी नजर से देखना शुरू कर दिया.
कन्हैया कुमार जाति से भूमिहार हैं और वह बेगूसराय के ही रहने वाले हैं. हालांकि ये दोनों ही फैक्टर उनके काम नहीं आए. दरअसल, कन्हैया कुमार जब बेगूसराय पहुंचे तो सबकी नजर भूमिहार वोटरों पर थी. लेकिन लालू के उदय के साथ ही भूमिहारों की पहली प्राथमिकता लालू का विरोध हो गया. ऐसे में कन्हैया का लालू यादव का पैर छूने की बात यहां के भूमिहार भूल नहीं पाए. गिरिराज सिंह ने इसे अपनी रणनीति का हिस्सा भी बनाया था.
जबकि चुनाव प्रचार करने से पहले जब गिरिराज सिंह ने नीतीश कुमार से मुलाकात की तो उन्हें उनका समर्थन भी मिल गया. इसके साथ ही यह परसेप्शन बन गया कि नीतीश कुमार भी चाहते हैं कि गिरिराज सिंह जीते. उन्होंने नीतीश कुमार की तीन सभाएं अपने क्षेत्र में करवाईं, इससे नीतीश समर्थक वोट भी गोलबंद हो गए और गिरिराज सिंह के पक्ष में भारी मतदान किया.
ऐसे में कन्हैया को शिकस्त देने की स्थिति में बिहार की सियासत में गिरिराज सिंह स्टार बन उभरे हैं. कन्हैया से जंग के कारण गिरिराज की चर्चा पूरे देश में हो रही है. हालांकि, यह भी तथ्य है कि वे बेगूसराय से चुनाव लडना नहीं चाहते थे. उन्हें इसका भी मलाल था कि उनसे बिना पूछे उनकी लोकसभा सीट क्यों बदल दी गई. अब उनकी जीत की संभावना के साथ एक नया कयास हवा में है कि क्या बढे सियासी कद के साथ वे नई सरकार में कैबिनेट मंत्री बनेंगे? इस बाबत गिरिराज कहते हैं कि वे पार्टी के सिपाही हैं, पार्टी के आदेश का पालन करेंगे.
बिहार के लखीसराय जिले के बडहिया में जन्में व पले-बढे गिरिराज सिंह 2002 में पहली बार बिहार विधान परिषद के सदस्य (एमएलसी) बने. वे 2008 से 2013 के बीच बिहार की नीतीश कुमार सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे. आगे 2014 में भाजपा ने उन्हें बिहार के नवादा से लोकसभा चुनाव में उतरा. वहां उन्होंने जीत दर्ज की. साल 2014 में सांसद बनकर गिरिराज सिंह को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने करीब दो साल बाद राज्य मंत्री बना दिया.
गिरिराज सिंह अपने विवादित बयानों के कारण सुर्खियों में रहे हैं. हालांकि गिरिराज सिंह ऐसा नहीं मानते. लेकिन उनके कई विवादित बयानों से अल्पसंख्यकों की भवनाएं भडकती रहीं हैं. चाहे किसी को पाकिस्तान परस्त कहने की बात हो या पाकिस्तान भेजने व वहां पटाखे जलाने की, उनके कई विवादित बयान सुर्खियां बटोरते रहे हैं. गिरिराज सिंह के विवादित बयानों से पार्टी भी नाराज होती रही है।. उनके बयानों से एनडीए के घटक दलों ने भी आलोचना की है.
वहीं, गिरिराज सिंह भी नीतीश कुमार और सुशील मोदी सहित कई एनडीए नेताओं के विरोध में बयान देते रहे हैं. हालिया लोकसभा चुनाव में सीट बदले जाने पर उन्होंने कई भाजपा नेताओं को आडे हाथों लिया था. साल 2013 में उन्होंने नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए कहा था कि वे जलन के चलते नरेंद्र मोदी पर हमला कर रहे हैं.
जबकि गिरिराज के चर्चित प्रतिद्वंद्वी कन्हैया कुमार का जन्म बिहार के बेगूसराय में जनवरी 1987 में हुआ था. उनकी छात्र राजनीति की शुरुआत साल 2002 में पटना के कॉलेज ऑफ कॉमर्स के दौर में हुई. पटना में पढाई के दौरान वे ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन (एआइएसएफ) से जुडे़.
कन्हैया 2015 में दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विवि (जेएनयू) छात्रसंघ के अध्यक्ष बने. जेएनयू में रहते उन्हें 2016 में कथित तौर पर राष्ट्रविरोधी नारे लगाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. उनके खिलाफ देशद्रोह का आरोप है. वे फिलहाल इस मामले में अंतरिम जमानत पर हैं. इस घटना के बाद कन्हैया देशभर में चर्चा में आ गए. वे भाजपा व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपने बयानों के कारण लगतार चर्चा में रहे. कन्हैया आज भाकपा नेता व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ चर्चित चेहरों में शुमार हैं. भाकपा ने उन्हें अपने गढ बेगूसराय से चुनाव मैदान में उतारा. लेकिन वह यहां लाल झंडा नही फहरा सके.