जब अटल के दामन पर लगा दाग, पत्रिका ने दामाद पर छापी सनसनीखेज रिपोर्ट तो मालिक का ये हुआ हाल
By रंगनाथ | Published: August 21, 2018 07:27 AM2018-08-21T07:27:28+5:302018-08-21T07:27:28+5:30
अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार 1996 में 13 दिन के लिए प्रधानमंत्री बने। दूसरी बार 1998 में वो 13 महीने के लिए पीएम बने। और तीसरी बार 1999 में वाजपेयी पीएम बने और अपना पाँच साल का कार्यकाल पूरा किया था।
अटल बिहारी वाजपेयी उन विरले नेताओं में थे जिन्हें विपक्षी दलों के नेता और समर्थक भी आदर व सम्मान देते थे। 16 अगस्त 2018 को उनके निधन के बाद मीडिया में उनके तारीफों की बाढ़ आ गयी है। लेकिन, वाजपेयी के पाँच दशकों लम्बे राजनीतिकर करियर में कई ऐसे मौके आये जब उनकी निष्पक्षता और लोकतांत्रिकता पर गम्भीर सवाल उठे। ऐसा ही मौका एक बार तब आया जब वाजपेयी तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने।
25 दिसम्बर 1924 को ग्वालियर में जन्मे वाजपेयी पहली बार 1996 में देश के प्रधानमंत्री बने लेकिन उनकी सरकार महज 13 दिनों बाद गिर गयी।
वो दूसरी बार 1998 में देश के प्रधानमंत्री बने। वाजपेयी दो बार पीएम बनने वाले देश के दूसरे नेता बन गये।
उनसे पहले केवल जवाहरलाल नेहरू ही लगातार दो बार पीएम बन सके थे। इस बार उनकी सरकार महज 13 महीने चली।
देश में आम चुनाव हुए तो बीजेपी को कुल 182 सीटों पर जीत मिली। बीजेपी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के पास 296 सांसदों का समर्थन था।
वाजपेयी दो बार 13 नंबर के शिकार हो चुके थे लेकिन जब 13 अक्टूबर 1999 को उन्होंने तीसरी बार पीएम पद की शपथ ली तो सभी राजनीतिक विश्लेषक इस सरकार को टिकाऊ मान रहे थे और ऐसा हुआ भी।
अटल बिहारी वाजपेयी 1999 से 2004 तक पूरे पाँच साल तक देश के प्रधानमंत्री रहे और इस तरह वो केंद्र में अपना कार्यकाल पूरा करने वाले पहले गैर-कांग्रेसी पीएम बने।
लेकिन वाजपेयी का तीसरा कार्यकाल उनके लिए अग्नि-परीक्षा साबित हुआ। उनके ऊपर कई गम्भीर आरोप यह लगा कि "प्रधानमंत्री कार्यालय" को उनके दत्तक दामाद रंजन भट्टाचार्य और दो नौकरशाह 'चला रहे हैं।'
वाजपेयी के 'तीन तिलंगे'
आउटलुक पत्रिका के दिवंगत संपादक विनोद मेहता ने अपने संस्मरम "लखनऊ ब्वॉयज" में अटल बिहारी वाजपेयी से अपने रिश्ते और उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद रंजन भट्टाचार्य, ब्रजेश मिश्रा और एनके सिंह के प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में 'असमान्य प्रभाव' के बारे में विस्तार से लिखा है।
विनोद मेहता के अनुसार वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने से पहले से दोनों के रिश्ते काफी अच्छे थे।
वाजपेयी मेहता को आसानी से मुलाकात के लिए वक़्त दे दिया करते थे। 1999 में ही वाजपेयी ने विनोद मेहता को एक काफी लम्बा इंटरव्यू भी दिया था।
लेकिन दोनों के बीच रिश्ता तब ख़राब हुआ जब विनोद मेहता के संपादन में निकलने वाली आउटलुक पत्रिका ने प्रधानमंत्री कार्यालय में तीन लोगों के "असमान्य प्रभाव" को लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित की।
मेहता के अनुसार ब्रजेश मिश्रा से वाजपेयी का पुराना सम्बन्ध था। जब वाजपेयी प्रधानमंत्री बने तो वो मिश्रा को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को नियुक्त किया गया।
मिश्रा के कहने पर ही नौकरशाह एनके सिंह को पीएमओ में ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी (ओएसडी) नियुक्त किया गया।
रंजन भट्टाचार्य वाजपेयी की दत्तक पुत्री नमिता भट्टाचार्य (शादी से पहले कौल) के पति थे। आउटलुक की स्टोरी में आरोप लगाया गया था कि ब्रजेश मिश्रा, एनके सिंह और रंजन भट्टाचार्य का पीएमओ के कर्ता-धर्ता बन चुके हैं।
मेहता ने यहाँ तक दावा किया है कि लालकृष्ण आडवाणी, अरुण जेटली, सुषमा स्वराज और नरेंद्र मोदी जैसे बीजेपी के शीर्ष नेता ब्रजेश मिश्रा को नापसंद करते थे फिर भी वो वाजपेयी के भरोसेमंद नौकरशाह थे।
पहली रिपोर्ट और वाजपेयी की छिपी धमकी
मेहता ने बताया है कि ब्रजेश मिश्रा, एनके सिंह और रंजन भट्टाचार्य की गतिविधियों के बारे में मीडिया में छिट-पुट रिपोर्टें आई थीं लेकिन किसी मीडिया हाउस ने गहराई से इस मामले की पड़ताल नहीं की थी।
मेहता ने आउटलुक के दो सीनियर रिपोर्टरों को इस रिपोर्ट के लिए तहकीकात करने के लिए लगाया। पत्रिका ने मार्च 2001 में पहली रिपोर्ट "रिगिंग द पीएओ" (प्रधानमंत्री कार्यालय में सेंध) छपी।
इस रिपोर्ट में दावा किया गया कि इन तीन लोगों की वजह से पीएमओ ने कुछ चुनिंदा कारोबारी घरानों (खासकर हिन्दूजा समूह और रिलायंस समूह) के हित में कई फैसले लिये थे।
मेहता ने अपनी किताब में दावा किया है कि आउटलुक के पास एक ऐसा पत्र था जिससे साफ पता चलता था कि टेलीकॉम सेक्टर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की सीमा 74 प्रतिशत करने के मामले में टेलीकॉम मंत्रालय की अनदेखी की गयी थी।
मेहता के अनुसार यह पत्र जनवरी 2001 में टेलीकॉम सचिव ने इंडस्ट्रीज सचिव को लिखा था। इस पत्र में टेलीकॉम सेक्टर में एफडीआई को 49 प्रतिशत से बढ़ाकर 74 प्रतिशत करने के प्रति आगाह किया गया था।
वाजपेयी की प्रतिक्रिया
"रिगिंग द पीएओ" (प्रधानमंत्री कार्यालय में सेंध) के छपने के बाद वाजपेयी ने विनोद मेहता को चाय पर निमंत्रित किया। मेहता के अनुसार यह मुलाकात "दुखद" रही थी।
मेहता के अनुसार वाजपेयी एनके सिंह को हटाने के तैयार थे लेकिन ब्रजेश मिश्रा और रंजन भट्टाचार्य के बारे में वो कुछ भी सुनने को नहीं तैयार थे।
मेहता के अनुसार वाजेयी ने दोनों को पूरी तरह 'पाक-दामन' बताया। इस मुलाकात में वाजपेयी ने आउटलुक की रिपोर्टर सबा नक़वी की रिपोर्टों के प्रति अपनी नाखुशी भी जाहिर की।
मेहता के अनुसार वाजपेयी ने उनसे कहा, "मुझे नहीं पता पिछले कुछ दिनों से उसे क्या हो गया है, वो हर बार मेरे खिलाफ ही लिख रही है।" मेहता के अनुसार वाजपेयी ने उन्हें सबा नक़वी को बीजेपी बीट से हटाने की भी सलाह दी।
दूसरी रिपोर्ट और इनकम टैक्स का कहर
वाजपेयी की हिदायत के बावजूद आउटलुक ने अपनी पड़ताल नहीं रोकी। मेहता के अनुसार पीएमओ के इस बात की भनक लग गयी थी कि आउटलुक पत्रिका दूसरी रिपोर्ट भी छापने वाली है।
मेहता के अनुसार दूसरी रिपोर्ट छपने से ठीक पहले ब्रजेश मिश्रा ने कई बार उनसे सम्पर्क करने की कोशिश की लेकिन वो जानबूझकर उनसे बातचीत टालते रहे।
मेहता के अनुसार राष्ट्रपति भवन में एक समारोह के दौरान वाजपेयी ने उनसे फौरी बातचीत में कहा था कि उन्हें उनसे (मेहता से) कुछ बात करनी है और जल्द ही कोई इस बाबत उनसे (मेहता से) सम्पर्क करेगा।
पत्रिका ने मार्च के आखिरी हफ्ते में दूसरी रिपोर्ट “वाजपेयीज अखीलीस हील” (वाजपेयी की दुखती रग) प्रकाशित की।
दूसरी रिपोर्ट में वाजपेयी के दत्तक दामाद रंजन भट्टाचार्य द्वारा सरकार के फैसलों में दखल को लेकर गम्भीर सवाल उठाए गये थे।
रिपोर्ट में कई नौकरशाहों, कारोबारियों और राजनेताओं से बातचीत के आधार पर दावा किया गया था कि रंजन भट्टाचार्य वो "अदृश्य हाथ" हैं जिसके हाथ में पीएमओ को चला रहे हैं और ब्रजेश मिश्रा और एनके सिंह उनके जोड़ीदार हैं।
“वाजपेयीज अखीलीस हील” (वाजपेयी की दुखती रग) में दावा किया गया था कि 58 हजार करोड़ रुपये के नेशनल हाईवे प्रोजेक्ट सात 'संदिग्ध' मलेशियाई कंपनियों को दिया गया था और इसमें रंजन भट्टाचार्य की भूमिका होने का भी आरोप था।
रिपोर्ट में आरोप लगाया गया था कि 20 हजार करोड़ रुपये के रिलायंस हिरमा पॉवर प्रोजेक्ट में रंजन भट्टाचार्य और पीएमओ रिलायंस को काउंटर-गारंटी देने के लिए दबाव बना रहे थे जो कि एक तरह से कंपनी को सरकार की तरफ से मिला 'तोहफे' जैसा होता।
रिपोर्ट में ये भी दावा किया गया था कि रंजन भट्टाचार्य के प्रभाव की वजह से पीएमओ ने बिरला, रिलायंस, टाटा और एस्सार जैसी कारोबारी कंपनियों ने रंजन भट्टाचार्य के माध्यम से 3179 करोड़ रुपये का बकाया जमा करने की तारीख बढ़ा दी थी। रिपोर्ट में ये भी दावा किया गया कि इन कंपनियों ने देश की नई टेलीकॉम नीति को भी प्रभावित करवाया था।
मेहता के अनुसार एनडीए के घटक दल समता पार्टी ने वाजपेयी को पत्र लिखकर मिश्रा, सिंह और भट्टाचार्य के ऊपर लगे आरोपों की जाँच की माँग की थी।
दूसरी रिपोर्ट का वाजपेयी पर असर
आउटलुक की दूसरी रिपोर्ट प्रकाशित होते ही ब्रजेश मिश्रा और एनके सिंह पत्रिका का नाम लिये बिना सभी आरोपों का खण्डन किया था। मिश्रा और सिंह ने पत्रिका द्वारा लगाये गये आरोपों को "निराधार" और "शरारतपूर्ण" बताया था।
आउटलुक की दोनों रिपोर्टें मार्च 2001 में प्रकाशित हुई थीं। 29 मई 2001 की सुबह तक ऐसा नहीं लगा कि वाजपेयी या उनकी सरकार आउटलुक से नाराज है।
29 मई 2001 की सुबह 8.30 बजे आउटलुक के मालिक राजन रहेजा के ठिकानों पर इनकम टैक्स (आयकर विभाग) ने छापा मारना शुरू किया।
मेहता के अनुसार आउटलुक के मालिक के ठिकानों पर पड़ा छापा इनकम टैक्स द्वारा देश में की गई सबसे बड़ी कार्रवाइयों में एक था।
मेहता के अनुसार इनकम टैक्स के 700 अफसरों ने देश के 12 शहरों में एक साथ छापा मारा और जब्ती की कार्रवाई की।
इनकम टैक्स ने दिल्ली, मुंबई (तब बॉम्बे), कोलकाता (तब कलकत्ता), चेन्नई, सूरत, मदुरई इत्यादि शहरों स्थित रहेजा से जुड़ी परिसंपत्तियों पर इनकम टैक्स ने छापा मारा।
इनकम टैक्स ने आउटलुक के मुंबई स्थित संपादकीय कार्यालय पर भी छापा मारा था।
विनोद मेहता ने प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को इस बाबत पत्र लिखा लिखा लेकिन जवाब तो दूर उन्हें उसकी पावती भी नहीं मिली।
एक मुलाकात से हल हो गई मुश्किल
विनोद मेहता के अनुसार प्रवर्तन निदेशालय के मुंबई स्थित दफ्तर में रहेजा को हर रोज सुबह 10 बजे बुलाकर शाम 6 बजे तक बैठाया जाता था।
रहेजा से 20-20 सार पुरानी फाइलें माँगी जाती थीं और एक मिल जाने पर दूसरी फाइल माँगी जाती थी। दूसरी मिल जाने पर तीसरी और ये सिलसिला हफ्तों तक जारी रहा लेकिन ईडी या इनकम टैक्स को रहेजा के खिलाफ कुछ नहीं मिला।
रहेजा ने मेहता से कहा कि वो इसे रुकवाने के लिए कुछ कर सकते हैं तो करें। मेहता ने ब्रजेश मिश्रा को फ़ोन किया और मुलाकात के लिए समय माँगा।
मेहता के अनुसार अगली सुबह मिश्रा से उनकी मुलाकात हुई। मिश्रा ने इनकम टैक्स या ईडी की किसी भी कार्रवाई से अनजान होने की बात कही।
मेहता के अनुसार मिश्रा ने उनसे कहा कि वो और अटलजी दोनों ही मीडिया की आजादी में यकीन रखते हैं।
मेहता के अनुसार उन्होंने कहा कि वो इनकम टैक्स और ईडी की जाँच नहीं रुकवाना चाहते लेकिन वो चाहते हैं कि राजन रहेजा को और तंग न किया जाये।
मेहता के अनुसार ब्रजेश मिश्रा ने उनके सामने ही तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा को फोन किया और उनसे मेहता की मुलाकात फिक्स करायी।
मेहता के अनुसार उस मुलाकात में यशवंत सिन्हा ने उनसे वादा किया कि राजन रहेगा को परेशान नहीं किया जाएगा और अगले 24 घण्टों के अंदर रहेजा की मुश्किलें खत्म हो गयीं।