अरुंधति रॉय ने मोदी सरकार पर किया हमला, कहा- कार्यकर्ताओं, विद्वानों को निर्दयता से जेल में डाल रही है सरकार
By भाषा | Published: July 29, 2020 05:08 PM2020-07-29T17:08:54+5:302020-07-29T17:08:54+5:30
अरुंधति रॉय ने कहा कि धर्मनिरपेक्ष, जाति-विरोधी तथा पूंजीवाद का विरोध करने वाली राजनीति का प्रतिनिधित्व करने वाले लोग सरकार की ‘‘विनाशकारी हिंदू राष्ट्रवादी राजनीति’’ के लिए खतरा हैं।
नयी दिल्ली: भीमा कोरेगांव एल्गार परिषद मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के एक एसोसिएट प्रोफेसर की एनआईए द्वारा गिरफ्तारी के एक दिन बाद लेखिका अरुंधति रॉय ने ‘‘कार्यकर्ताओं, विद्वानों तथा वकीलों को निर्दयता से लगातार जेल में डालने’’ का आरोप लगाते हुए बुधवार को सरकार को आड़े हाथ लिया।
रॉय ने कहा कि धर्मनिरपेक्ष, जाति-विरोधी तथा पूंजीवाद का विरोध करने वाली राजनीति का प्रतिनिधित्व करने वाले लोग सरकार की ‘‘विनाशकारी हिंदू राष्ट्रवादी राजनीति’’ के लिए खतरा हैं। एनआईए ने दिल्ली विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर हेनी बाबू मुसालियरवीट्टिल थारियाल को भीमा कोरेगांव एल्गार परिषद मामले में नक्सली गतिविधियों और माओवादी विचारधारा को बढ़ावा देने तथा मामले में ‘सह-षड़यंत्रकारी’ बताते हुए कल गिरफ्तार किया है।
रॉय ने एक बयान में कहा, ‘‘ कार्यकर्ताओं, विद्वानों तथा वकीलों को इस मामले में लगातार निर्दयी तरीके से गिरफ्तार किया जा रहा है जो सरकार की इस सोच को दर्शाता है कि यह नई, धर्मनिरपेक्ष, जाति विरोधी तथा पूंजीवादी विरोधी राजनीति, जिसका प्रतिनिधित्व ये लोग करते हैं, हिंदू फासीवाद का वैकल्पिक विमर्श देती है तथा उसकी विनाशकारी हिंदू राष्ट्रवाद की राजनीति के लिए सांस्कृतिक, आर्थिक तथा राजनीतिक आधार पर स्पष्ट खतरा पैदा करती है।
उनकी (हिंदू राष्ट्रवाद की) राजनीति ने देश को ऐसे संकट में ला खड़ा किया है जो लाखों लोगों की जिंदगियों के लिए खतरा है और विडंबना है कि उनमें उसके अपने समर्थक भी हैं।’’ जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र संघ (जेएनयूएसयू) ने भी बाबू की गिरफ्तारी की निंदा की है।
जेएनयूएसयू ने एक बयान में कहा, ‘‘भीमा कोरेगांव मामले में जो घटिया जांच हुई है उसका एकमात्र निशाना कार्यकर्ता और विद्वान हैं जिन्होंने सत्तारूढ़ दल की नीतियों पर तथा सांप्रदायिकता और जन विरोधी नीतियों के प्रश्रय पर सवाल उठाए।’’
जेएनयूएसयू ने छात्रों, विद्वानों तथा नागरिकों के सभी प्रगतिशील हिस्सों से ‘‘धर-पकड़ के इस काले दौर’’ में एकजुटता की अपील की। उन्होंने कहा, ‘‘हम डॉ. बाबू तथा अन्य कार्यकर्ताओं की तुरंत रिहाई की तथा राजनीति से प्रेरित जांचों को खत्म करने की मांग करते हैं।’’