सुप्रीम कोर्ट ने कहा- अनुच्छेद 370 मुद्दे को सात न्यायाधीशों की पीठ को भेजने के सवाल पर बाद में होगा विचार
By भाषा | Published: December 13, 2019 05:41 AM2019-12-13T05:41:43+5:302019-12-13T05:41:43+5:30
अनुच्छेद 370: न्यायमूर्ति एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा, ‘‘हम सभी पक्षकारों की शुरूआती दलीलें सुनने के बाद ही इस विषय को वृहद पीठ के पास भेजने के सवाल पर विचार कर सकते हैं।’’
उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को संकेत दिया कि वह अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को समाप्त करने को चुनौती देने के मुद्दे को सात न्यायाधीशों की वृहद पीठ के पास भेजने के सवाल पर सभी पक्षों की शुरूआती दलीलों को सुनने के बाद विचार कर सकता है। यह अनुच्छेद पूर्ववर्ती जम्मू कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा प्रदान करता था। केंद्र ने पांच अगस्त को इसके ज्यादातर प्रावधानों को समाप्त कर दिया था।
दरअसल, संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने वाले केंद्र के फैसले को कुछ पक्षकारों द्वारा चुनौती दिए जाने पर शीर्ष न्यायालय की यह टिप्पणी आई है। पक्षकारों ने कहा कि शीर्ष न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा 1959 और 1970 में दिए गए दो विरोधाभाषी फैसले हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता दिनेश द्विवेदी ने याचिकाकर्ता प्रेम शंकर झा की ओर से पेश होते हुए यह दलील दी। उन्होंने इस विषय को निश्चित निष्कर्षों के लिए सात जजों की वृहद पीठ के पास भेजने का अनुरोध किया।
न्यायमूर्ति एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा, ‘‘हम सभी पक्षकारों की शुरूआती दलीलें सुनने के बाद ही इस विषय को वृहद पीठ के पास भेजने के सवाल पर विचार कर सकते हैं।’’ सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन केंद्र के फैसले के खिलाफकुछ पक्षकारों की ओर से पेश हुए।
उन्होंने कहा कि न्यायालय को पहले उन पक्षकारों को सुनना चाहिए जिन्होंने इस अनुच्छेद को रद्द किये जाने को चुनौती दी है और फिर उसके बाद विषय को वृहद पीठ के पास भेजने के बारे में सुनवाई करनी चाहिए। पीठ के सदस्यों में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्य कांत भी शामिल हैं।
पीठ ने कहा कि इसे सात न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष भेजने के सवाल पर बाद के चरण में विचार किया जाएगा, जब सभी पक्ष अपनी शुरूआती दलीलें पूरी कर चुके होंगे। नौकरशाह से नेता बने शाह फैसल, जेएनयू की छात्र नेता रह चुकी शेहला राशिद और अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने अपनी दलीलें शुरू की।
उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 के तहत लोकतांत्रिक शक्तियां राज्य के पास थी जबकि कार्यकारी शक्तियां केंद्र सरकार के पास थी। बुधवार को पीठ द्वारा किए गए एक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा, ‘‘सिर्फ जम्मू कश्मीर राज्य ही फैसला कर सकता है कि राज्य की संविधान सभा का उत्तराधिकारी कौन होगा, किसके पास भविष्य में संवैधानिक शक्तियां होंगी।’’
उन्होंने कहा कि मौजूदा दृष्टांत में केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति के जरिए यह फैसला लिया कि अनुच्छेद 370(3) के तहत संविधानसभा सभा की संवैधानिक शक्तियों का इस्तेमाल कैसे किया जाएगा-- राष्ट्रपति के आदेश में अनुच्छेद 367 (4) में बदलाव कर। इसलिए राष्ट्रपति का यह कदम अनुच्छेद 370 में निहित संहिता के तहत उनकी शक्तियों से परे है।