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न्यायालय से अंतरिम जमानत मिलने के कुछ ही घंटों के भीतर जेल से रहा हुए अर्नब गोस्वामी

By भाषा | Updated: November 11, 2020 23:59 IST

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मुंबई/नयी दिल्ली, 11 नवंबर उच्चतम न्यायालय से अंतरिम जमानत पाने के कुछ ही घंटों के भीतर रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी बुधवार को महाराष्ट्र की तालोजा जेल से रिहा कर दिए गए। वर्ष 2018 में आत्महत्या के लिए कथित रूप से उकसाने के एक मामले में चार नवंबर को गिरफ्तार गोस्वामी की अंतरिम जमानत मंजूर करते हुए न्यायालय ने कहा कि अगर व्यक्तिगत स्वतंत्रता बाधित होती है तो यह न्याय का उपहास होगा।

न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि संवैधानिक अदालतें आज इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करती हैं तो हम ‘‘बेशक बर्बादी के रास्ते पर चल पड़े हैं।’’

टीवी के 47 वर्षीय पत्रकार गोस्वामी और दो अन्य आरोपियों को सत्र अदालत द्वारा 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजे जाने के बाद से तीनों रायगड जिले के तालोजा जेल में बंद थे। न्यायालय में पूरे दिन चली सुनवाई के बाद तीनों आरोपियों को रहात मिली।

न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी की अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि अगर राज्य सरकारें लोगों को निशाना बनाती हैं तो उन्हें इस बात का अहसास होना चाहिए कि नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए उच्चतम न्यायालय है। आज न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का 61वां जन्मदिन था।

पीठ ने अपने तीन पेज के आदेश में कहा कि बंबई उच्च न्यायालय द्वारा इस मामले में गोस्वामी और दो अन्य व्यक्तियों की अंतरिम जमानत की अर्जी अस्वीकार करना ‘गलत था।’

गोस्वामी रात लगभग साढ़े आठ बजे जेल से बाहर आए। जेल के बाहर जुटे लोगों का उन्होंने वाहन में से हाथ हिलाकर अभिवादन किया। उन्होंने कहा कि वह उच्चतम न्यायालय के आभारी हैं। गोस्वामी ने विजय चिह्न प्रदर्शित करते हुए कहा, ‘‘यह भारत के लोगों की जीत है।’’

कारागार के बाहर सड़क पर गोस्वामी के समर्थक एकत्र थे। जेल के सामने की सड़क पर ‘सत्यमेव जयते’ और ‘हैप्पी दीवाली’ जैसे शब्द लिखे हुए थे। लोग ‘भारत माता की जय’, ‘वंदे मातरम’ और ‘अर्नब गोस्वामी जिंदाबाद’ के नारे लगा रहे थे।

शीर्ष अदालत ने अर्नब गोस्वामी के साथ ही इस मामले में दो अन्य व्यक्तियों-नीतीश सारदा और फिरोज मोहम्मद शेख को भी 50-50 हजार रुपये के निजी मुचलके पर रिहा करने का आदेश दिया। पीठ ने इन्हें यह निर्देश भी दिया कि वे साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ नहीं करेंगे और जांच में सहयोग करेंगे।

पीठ ने आदेश में कहा, ‘‘हमारी सुविचारित राय है कि उच्च न्यायालय द्वारा अंतरिम जमानत के लिए आवेदन अस्वीकार करना गलत था। हम तदनुसार आदेश और निर्देश देते हैं कि अर्नब गोस्वामी, फिरोज मोहम्मद शेख ओर नीतीश सारदा को जेल अधीक्षक के समक्ष 50-50 हजार रुपये का निजी मुचलका भरने पर अंतरिम जमानत पर रिहा कर दिया जाएगा।’’

न्यायालय ने आदेश में आगे कहा, ‘‘उन्हें जांच में सहयोग करने और जांच में हस्तक्षेप करने या गवाहों के साथ हस्तक्षेप का कोई प्रयास नहीं करने का निर्देश दिया जाता है। संबंधित जेल प्राधिकारियों और रायगढ़ के पुलिस अधीक्षक को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि इस आदेश पर तुरंत अमल किया जाए।’’

शीर्ष अदालत उच्च न्यायालय के नौ नवंबर के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई कर रही थी। उच्च न्यायालय ने गोस्वामी सहित सभी को अंतरिम जमानत देने का अनुरोध अस्वीकार कर दिया था।

गोस्वामी और अन्य आरोपियों को महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले की अलीबाग पुलिस ने चार नवंबर को इंटीरियर डिजाइनर अन्वय नाइक और उनकी मां को 2018 में आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। इन पर आरोप है कि उनकी कंपनियों ने बकाया राशि का भुगतान नहीं किया था। गोस्वामी को मुंबई में उनके निवास से गिरफ्तार करके पड़ोसी जिले रायगढ़ के अलीबाग ले जाया गया था।

शीर्ष अदालत ने विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े ऐसे ही मामलों में राहत नहीं दिए जाने पर अप्रसन्नता जताते हुए कहा कि उच्च न्यायालय संवैधानिक अदालतें हैं और उन्हें अपना ‘संवैधानिक कर्तव्य निभाने से पीछे नहीं हटना चाहिए।’’

पीठ ने कहा, ‘‘हम देख रहे हैं कि एक के बाद एक ऐसा मामला है, जिसमें उच्च न्यायालय जमानत नहीं दे रहे हैं और वे लोगों की स्वतंत्रता, निजी स्वतंत्रता की रक्षा करने में विफल हो रहे हैं। आज हमें सभी उच्च न्यायालयों को संदेश भेजना चाहिए कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए कृपया अपने अधिकारों का उपयोग करें।’’

न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार से जानना चाहा कि क्या गोस्वामी को हिरासत में लेकर उनसे पूछताछ की कोई जरूरत थी और कहा कि यह ‘‘व्यक्तिगत आजादी’’ से जुड़ा मामला है।

पीठ ने टिप्पणी की कि भारतीय लोकतंत्र असाधारण तरीके से लचीला है और महाराष्ट्र सरकार को इन सबको (टीवी पर अर्नब के तानों को) नजरअंदाज करना चाहिए।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘उनकी जो भी विचारधारा हो। कम से कम मैं तो उनका चैनल नहीं देखता। लेकिन अगर संवैधानिक न्यायालय आज इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा, तो हम निर्विवाद रूप से बर्बादी की ओर बढ़ रहे होंगे।’’

पीठ ने कहा, ‘‘सवाल यह है कि क्या आप इन आरोपों के कारण व्यक्ति को उसकी व्यक्तिगत आजादी से वंचित कर देंगे ? ’’

न्यायालय ने कहा, ‘‘अगर सरकार इस आधार पर लोगों को निशाना बनाएगी...आप टेलीविजन चैनल को नापसंद कर सकते हैं.... लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए।’’

महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से पीठ ने सवाल किया, ‘‘क्या धन का भुगतान नहीं करना, आत्महत्या के लिए उकसाना है? यह न्याय का उपहास होगा अगर प्राथमिकी लंबित होने के दौरान जमानत नहीं दी जाती है।’’

न्यायालय ने कहा, ‘‘‘ए’ ‘बी’ को पैसे का भुगतान नहीं करता है और क्या यह आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला है? अगर उच्च न्यायालय इस तरह के मामलों में कार्यवाही नहीं करेंगे तो व्यक्तिगत स्वतंत्रता पूरी तरह नष्ट हो जाएगी। हम इसे लेकर बहुत ज्यादा चिंतित हैं। अगर हम इस तरह के मामलों में कार्रवाई नहीं करेंगे तो यह बहुत ही परेशानी वाली बात होगी।’’

न्यायमूर्ति चंद्रचूड ने कहा कि न्यायालयों की उनके फैसलों के लिए तीखी आलोचना हो रही है और ‘‘मैं अक्सर अपने लॉ क्लर्क से पूछता हूं और वे कहते हैं कि सर कृपा कर ट्वीट्स मत देखें।’’

गोस्वामी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने उनके और चैनल के खिलाफ दर्ज तमाम मामलों का जिक्र किया और आरोप लगाया कि महाराष्ट्र सरकार उन्हें निशाना बना रही है।

साल्वे ने कहा, ‘‘यह सामान्य मामला नहीं है और संवैधानिक अदालत होने के नाते बंबई उच्च न्यायालय को इन घटनाओं का संज्ञान लेना चाहिए था। क्या यह ऐसा मामला है जिसमें अर्णब गोस्वामी को खतरनाक अपराधियों के साथ तलोजा जेल में रखा जाये ? ’’

उन्होंने कहा, ‘‘मैं अनुरोध करूंगा कि यह मामला सीबीआई को सौंप दिया जाये और अगर वह दोषी हैं तो उन्हें सजा दीजिये। अगर व्यक्ति को अंतरिम जमानत दे दी जाये तो क्या होगा।’’

सिब्बल ने इस मामले के तथ्यों का हवाला दिया और कहा कि इस मामले में की गयी विस्तृत जांच शीर्ष अदालत के सामने नहीं है और अगर वह इस समय हस्तक्षेप करेगी तो इससे एक खतरनाक परंपरा स्थापित होगी।

राज्य की ओर से ही एक अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता अमित देसाई ने कहा कि यह ऐसा मामला नहीं है, जिसमें न्यायालय को अंतरिम स्तर पर जमानत देने के लिये अपने असाधारण अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करना चाहिए।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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