CBI चीफ की नियुक्ति मामला: अरुण जेटली का पलटवार, कहा-असहमति जताना खड़गे की आदत
By भाषा | Published: February 3, 2019 05:54 PM2019-02-03T17:54:42+5:302019-02-03T17:54:42+5:30
अरुण जेटली ने एक ब्लाग में लिखा है कि लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता खड़गे ने नये सीबीआई निदेशक की नियुक्ति में ‘‘एक बार फिर असहमति जतायी है।' मंत्री ने कहा, ‘‘खड़गे नियमित रूप से असहमति जताते हैं।’’
केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे पर अत्यधिक असहमति जताने का आरोप लगाते हुए रविवार को कहा कि उन्होंने सीबीआई निदेशक की नियुक्ति को एक राजनीतिक संघर्ष की तरह बताने का प्रयास किया जिसकी कभी परिकल्पना नहीं की गई थी।
खड़गे ने शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर रिषि कुमार शुक्ला को नया सीबीआई निदेशक नियुक्त करने पर अपनी असहमति जतायी थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि अधिकारी को भ्रष्टाचार निरोधक मामलों की जांच का अनुभव नहीं है और कानून एवं उच्चतम न्यायालय के फैसलों का उल्लंघन करते हुए चयन के मानदंडों को कमजोर किया गया।
जेटली ने एक ब्लाग में लिखा है कि लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता खड़गे ने नये सीबीआई निदेशक की नियुक्ति में ‘‘एक बार फिर असहमति जतायी है।' मंत्री ने कहा, ‘‘खड़गे नियमित रूप से असहमति जताते हैं।’’
जेटली ने याद किया कि कांग्रेस नेता ने तब भी असहमति जतायी थी जब आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक नियुक्त किया गया था, तब भी असहमति जतायी थी जब वर्मा को स्थानांतरित किया गया और अब भी असहमति जतायी है जब शुक्ला की नियुक्ति की गई है।
जेटली ने कहा, ‘‘सीबीआई निदेशक की नियुक्ति और स्थानांतरण को देखने वाली प्रधानमंत्री, भारत के प्रधान न्यायाधीश और विपक्ष के नेता वाली उच्चाधिकार प्राप्त समिति में एकमात्र चीज जो लगातार स्थिर बनी हुई है वह है खड़गे की असहमति।’’
खड़गे ने सरकार द्वारा 1983 बैच के अधिकारी एवं मध्यप्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक शुक्ला को नया सीबीआई निदेशक नियुक्त करने की घोषणा के बाद कल शाम प्रधानमंत्री को दो पृष्ठों का एक पत्र भेजकर असहमति जतायी।
जेटली ने कहा कि विपक्ष के नेता जब कालेजियम के एक सदस्य के तौर पर बैठते हैं तो वह अपने पद का राजनीतिक रंग छोड़ देते हैं, वैसे ही जैसे प्रधानमंत्री और भारत के प्रधान न्यायाधीश अपने अपने अधिकारक्षेत्र का प्राधिकार छोड़कर निदेशक की नियुक्ति केवल योग्यता और निष्पक्षता के मानदंड पर करने पर कार्य करते हैं।
इलाज के लिए पिछले महीने अमेरिका गए जेटली ने कहा, ‘‘खड़गे का लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद उन्हें समिति में बैठने का हकदार बनाता है लेकिन उस पद का राजनीतिक रंग बाहर छोड़ देना होता है।’’
उन्होंने कहा कि असहमति लोकतंत्र में एक शक्तिशाली साधन है। असहमति संसदीय प्रणाली का भी हिस्सा है, विशेष तौर पर विधायी समितियों में। असहमति जताने वाला वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। जहां मौद्रिक नीति समितियां होती हैं, सदस्यों द्वारा असहमति यदा कदा जतायी जाती हैं।
जेटली ने कहा,‘‘असहमति जताने वाला बहुमत को चुनौती देता है। वह ऐसा अपने निष्पक्ष मन से निर्धारित अंतरात्मा की आवाज के आधार पर करता है। वह अपने असंतोष को रिकॉर्ड पर रखता है ताकि आने वाली पीढ़ियों के ज्ञान का मूल्यवर्धन हो सके।’’
उन्होंने कहा कि एक असहमति कभी भी एक राजनीतिक साधन नहीं हो सकती। असहमति का अधिकार तो ठीक है लेकिन इसका हमेशा इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। बिना सोचे समझे इस्तेमाल करने से इसका मूल्य बेअसर हो जाता है।
मंत्री ने कहा, ‘‘नियुक्तियों वाले कॉलेजियम में हमेशा असहमति जताने वाला यह संदेश देता है कि उसे विपक्ष के नेता की उसकी क्षमता के कारण एक सदस्य के रूप में शामिल किया गया था, लेकिन वह विपक्ष के सदस्य के रूप में अपनी भूमिका नहीं छोड़ सका जबकि अब वह एक सरकारी समिति का हिस्सा है। उनकी असहमति ने उसका मूल्य और विश्वसनीयता कम कर दी है।’’
उन्होंने कहा कि आलोक वर्मा के स्थानांतरण के मामले में खड़गे की असहमति उनके राजनीतिक विचारों से प्रभावित थी। वह आलोक वर्मा के समर्थन में उच्चतम न्यायालय में एक याचिकाकर्ता थे।जेटली ने कहा कि उन्हें समिति से ‘‘स्वयं को अलग’’ कर लेना चाहिए था क्योंकि उनके विचार ज्ञात थे।
जेटली ने कहा, ‘‘वह पूर्वाग्रह और हितों के टकराव से पीड़ित थे। उसके बावजूद उन्होंने स्वयं को अलग नहीं किया।' उन्होंने कहा कि खड़गे ने ‘‘कुछ ज्यादा बार’’ असहमति जतायी और कई लोग सोच सकते हैं कि क्या कालेजियम व्यावहारिक हैं। कभी भी यह परिकल्पना नहीं की गई थी कि सीबीआई निदेशक की नियुक्ति एक राजनीतिक संघर्ष बनेगी। खड़गे ने ऐसा किया जिससे वह उस तरह से दिखा।’’