Night mobile baby: बच्चों और किशोरों का सोने से पहले ‘स्क्रीन’ का इस्तेमाल करना ठीक नहीं?, नींद ‘पैटर्न’ में होंगे उलटफेर, हो सकते हैं कई बदलाव!

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: September 4, 2024 04:22 PM2024-09-04T16:22:10+5:302024-09-04T16:23:19+5:30

Night mobile baby: सोने से दो घंटे पहले की अवधि में ‘स्क्रीन’ के उपयोग का बच्चों और किशोरों की नींद पर ज्यादा असर नहीं पड़ता।

Night mobile baby study not good children teenagers use screens before sleeping changes in sleep patterns many changes can happen! | Night mobile baby: बच्चों और किशोरों का सोने से पहले ‘स्क्रीन’ का इस्तेमाल करना ठीक नहीं?, नींद ‘पैटर्न’ में होंगे उलटफेर, हो सकते हैं कई बदलाव!

सांकेतिक फोटो

Highlightsबिस्तर पर जाने के बाद ‘स्क्रीन’ का इस्तेमाल करने से समस्या उत्पन्न होती है। बिस्तर पर जाने से पहले इसका प्रयोग करने से कहीं ज्यादा हानिकारक है।सोने से एक या दो घंटे पहले ‘स्क्रीन’ का इस्तेमाल बंद करने की सलाह देते हैं।

डुनेडिनः माता-पिता को लंबे समय से आगाह किया जाता रहा है कि बच्चों और किशोरों का सोने से पहले ‘स्क्रीन’ का इस्तेमाल करना ठीक नहीं है। चिंता की वजह यह है कि ‘स्क्रीन’ का इस्तेमाल उनकी नींद के ‘पैटर्न’ को प्रभावित कर सकता है। लेकिन क्या ‘स्क्रीन’ का इस्तेमाल नींद की अवधि और गुणवत्ता को वाकई प्रभावित करता है? हमारे नये अनुसंधान से पता चलता है कि रात में बिस्तर पर मोबाइल फोन का इस्तेमाल करना, नींद के लिहाज से बिस्तर पर जाने से पहले घंटों तक ‘स्क्रीन’ का उपयोग करने से कहीं अधिक बुरा है। नींद संबंधी दिशा-निर्देश बिस्तर पर जाने से एक-दो घंटे पहले से ही ‘स्क्रीन’ का इस्तेमाल बंद करने की सलाह देते हैं। लेकिन हमने पाया कि सोने से दो घंटे पहले की अवधि में ‘स्क्रीन’ के उपयोग का बच्चों और किशोरों की नींद पर ज्यादा असर नहीं पड़ता।

अलबत्ता, बिस्तर पर जाने के बाद ‘स्क्रीन’ का इस्तेमाल करने से समस्या उत्पन्न होती है। कैमरों की मदद से नींद के ‘पैटर्न’ और ‘स्क्रीन’ के इस्तेमाल पर नजर रखने पर हमने पाया कि बिस्तर में मोबाइल फोन का उपयोग बिस्तर पर जाने से पहले इसका प्रयोग करने से कहीं ज्यादा हानिकारक है।

नींद और ‘स्क्रीन’ के बीच संबंध -कई वैश्विक संगठन किशोरों को सोने से एक या दो घंटे पहले ‘स्क्रीन’ का इस्तेमाल बंद करने की सलाह देते हैं। वे इसके बजाय किताब पढ़ने या परिवार के साथ अच्छा समय बिताने जैसी गतिविधियों में शामिल होने की बात कहते हैं। हालांकि, ये सुझाव उन अनुसंधानों पर आधारित हैं, जिनकी कई सीमाएं थीं।

अनुसंधान इस तरह से किए गए थे कि शोधकर्ता नींद के ‘पैटर्न’ और ‘स्क्रीन’ के इस्तेमाल के बीच की कड़ी का पता लगा सकें। लेकिन वे हमें यह नहीं बताते कि बच्चों और किशोरों द्वारा स्क्रीन के इस्तेमाल के तरीके में बदलाव का नींद की अवधि या गुणवत्ता पर कोई असर पड़ता है या नहीं। मौजूदा अनुसंधान में से ज्यादातर में नींद के ‘पैटर्न’ और ‘स्क्रीन’ के इस्तेमाल के बीच संबंध खंगालने के लिए प्रश्नावली का उपयोग किया गया था। प्रश्नावली से ‘स्क्रीन’ पर बिताए गए सटीक समय के बारे में पता नहीं लगाया जा सकता।

पुराने अनुसंधान की कुछ सीमाओं को संबोधित करने के लिए हमने 11 से 14 साल की उम्र के 11 बच्चों से लगातार चार रात तक बिस्तर पर जाने से तीन घंटे पहले सीने पर एक कैमरा लगाने को कहा। इन कैमरों का लेंस बाहर की तरफ था। इसकी मदद से यह सटीक रूप से पता लगाया जा सका कि बच्चे कब, क्यों, कैसे और कितनी देर ‘स्क्रीन’ का इस्तेमाल करते हैं।

चूंकि, हम रात में भी ‘स्क्रीन’ पर बिताए जाने वाले समय के बारे में जानने की दिलचस्पी रखते थे, इसलिए प्रतिभागी बच्चों के कमरे में ‘ट्राईपॉड’ पर एक दूसरा इंफ्रारेड कैमरा लगाया गया। प्रतिभागियों ने ‘एक्टिग्राफ’ भी पहन रखा था, जो नींद की अवधि दर्ज करने वाला कलाई घड़ी के आकार का एक उपकरण है।

किशोरों की रात की गतिविधियां -यह स्पष्ट रूप से सामने आया कि बच्चे और किशोर बिस्तर में ‘स्क्रीन’ पर बहुत ज्यादा समय गुजारते हैं। हमारे विश्लेषण के दौरान दो समयावधि में ‘स्क्रीन’ के इस्तेमाल पर नजर रखी गई। पहला-बच्चों के बिस्तर पर जाने से दो घंटे पहले। दूसरा-एक बार बिस्तर पर चले जाने के बाद जब तक वे ‘स्क्रीन’ का इस्तेमाल बंद नहीं कर देते और स्पष्ट रूप से सोने की कोशिश नहीं करते।

हमें प्राप्त डेटा के विश्लेषण से पता चला कि 99 फीसदी बच्चों और किशोरों ने बिस्तर पर जाने से पहले के दो घंटे में, आधे से अधिक ने बिस्तर पर जाने के बाद, और एक-तिहाई ने लेटते ही सोने की कोशिश करने के बावजूद ‘स्क्रीन’ का इस्तेमाल किया। केवल एक किशोर ने इन चार रातों में बिस्तर पर जाने से पहले और बाद में ‘स्क्रीन’ का उपयोग नहीं किया।

बिस्तर पर जाने से पहले ‘स्क्रीन’ पर बिताए गए समय का उन रातों में उनकी नींद पर बहुत कम प्रभाव पड़ा। हालांकि, बिस्तर पर आने के बाद ‘स्क्रीन’ का इस्तेमाल करने से उनकी नींद की गुणवत्ता पर असर पड़ा। इसने उन्हें लगभग आधे घंटे तक सोने से रोका और उस रात उन्होंने नींद भी कम अवधि की ली। नींद पर असर तब और भी बढ़ जाता है, जब बच्चे और किशोर गेम खेलते हैं या एक बार में एक से ज्यादा ‘स्क्रीन’ का इस्तेमाल करते हैं, मसलन लैपटॉप पर नेटफ्लिक्स पर वेब सीरीज देखने के बीच एक्सबॉक्स पर गेम खेलना।

अनुसंधान से सामने आया कि ‘स्क्रीन’ पर बिताए गए हर 10 मिनट के अतिरिक्त समय पर उस रात मिलने वाली नींद की अवधि में नौ मिनट की कमी आती है। दिशा-निर्देशों में संशोधन की जरूरत -हमारा अनुसंधान नींद के ‘पैटर्न’ और ‘स्क्रीन’ के इस्तेमाल के बीच संबंध पर प्रकाश डालने वाला शुरुआती प्रयोग है।

इस संबंध को बेहतर ढंग से समझने के लिए बड़े पैमाने पर ऐसे अनुसंधान किए जाने की जरूरत है, जो यह वास्तव में बता सकें कि अलग-अलग ‘स्क्रीन’ के इस्तेमाल और उन पर बिताई जाने वाली समयावधि का नींद की गुणवत्ता पर कैसे असर पड़ता है। ताजा अनुसंधान में हमने जो पाया है, वह दिशा-निर्देशों में संशोधन की जरूरत दर्शाता है। अच्छी नींद के लिए मोबाइल फोन, लैपटॉप, कंप्यूटर, टीवी, गेमिंग कंसोल आदि उपकरणों को बेडरूम से बाहर रखने में ही भलाई है।

Web Title: Night mobile baby study not good children teenagers use screens before sleeping changes in sleep patterns many changes can happen!

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