नींद पूरी नहीं होने से हुए 20 प्रतिशत सड़क हादसे, सर्वे में हुए हैरान करने वाले खुलासे

By फहीम | Updated: January 5, 2019 14:16 IST2019-01-05T14:16:17+5:302019-01-05T14:16:17+5:30

Lack of sleep increased road accidents by 20 percent | नींद पूरी नहीं होने से हुए 20 प्रतिशत सड़क हादसे, सर्वे में हुए हैरान करने वाले खुलासे

नींद पूरी नहीं होने से हुए 20 प्रतिशत सड़क हादसे, सर्वे में हुए हैरान करने वाले खुलासे

नींद, मानवीय जीवन की बुनियादी जरूरत है. नींद पूरी नहीं हुई तो विभिन्न बीमारियों की आशंका के साथ ही बड़े-बड़े सड़क हादसे होते हैं. देश में सड़क हादसों का प्रमाण ज्यादा है. नींद पूरी नहीं होना भी हादसों की एक वजह है. आमतौर पर 20 प्रतिशत हादसे नींद पूरी नहीं होने के कारण होने का खुलासा एक अभ्यास में हुआ है.

यह जानकारी इंग्लैंड के छाती रोग विशेषज्ञ डॉ. मिलिंद सोवनी ने दी. सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के छाती रोग व स्लिप मेडिसिन विभाग की ओर से शुक्रवार को एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला 'नैटकॉन 2019' का आयोजन किया गया था. इस मौके पर वे मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे.

डॉ. सोवनी ने कहा कि पर्याप्त नींद नहीं होने से मस्तिष्क को आराम नहीं मिलता है. ऐसे में यदि कोई वाहन चालक वाहन चलाता है तो उसका भोजन होने पर या रात 2 से 4 बजे के बीच मस्तिष्क की जागरूकता कम होती है. फलस्वरूप अचानक नींद आने से सड़क हादसे होते हैं. ऐसे वाहन चालक सीधे सामने वाले वाहन या डिवाइडर पर चढ़ जाते हैं अथवा सड़क से नीचे उतर जाते हैं.

2020 में सीओपीडी मृत्यु की तीसरी वजह डॉ. गुप्ता ने कहा कि सीओपीडी के कारण हर साल पांच लाख मरीजों की मौत होती है. हर 10 सेकंड में एक मरीज की मौत होती है. फेफड़ों के विकार का प्रमाण विश्वभर में चिंताजनक तरीके से बढ़ रहा है. सांस लेने में होने वाली दिक्कत सीओपीडी जैसी गंभीर बीमारी का लक्षण है. इसलिए फेफड़े का दौरा पड़ सकता है.

विश्वभर में मृत्यु के कारण

विश्वभर में मृत्यु होने के कारणों में सीओपीडी की बीमारी चौथे स्थान पर है लेकिन 2020 में यह मृत्यु की तीसरी वजह साबित होने की आशंका जताई जा रही है. पर्याप्त नींद के अभाव में मानसिक विकार : डॉ. मेश्राम छाती रोग व स्लिप मेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉ. सुशांत मेश्राम ने कहा कि अपर्याप्त अथवा कम दर्जे की नींद के कारण शारीरिक व मानसिक विकार की आशंका होती है.

स्लिप ॲपनिया नामक बीमारी विश्व स्तर पर चार प्रतिशत व्यस्कों में पाई जाती है जबकि नींद की रेस्टलेस लेग सिंड्रोम नामक बीमारी 10 प्रतिशत लोगों में पाई जाती है. देर से सोने वाले अथवा रात में काम करने वाले व्यक्तियों में गंभीर स्वरूप की बीमारियां होने की आशंका होती है.

रात में नींद में घुर्राटे लेना स्लिप ॲपनिया जैसी गंभीर बीमारी का लक्षण है. इसलिए नींद की साइकिल में दिक्कत पैदा होकर शारीरिक व मानसिक स्वरूप की गंभीर बीमारियां होती हैं. इसमें दिल का दौरा पड़ने, मधुमेह, मानसिक रोग, सिरदर्द, याददाश्त कम होना, थॉयराइड, ग्रंथि की बीमारी, बांझपन, लैंगिक समस्या, एसिडिटी की परेशानी होने की आशंका होती है.

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मोबाइल के कारण उड़ती है नींद

डॉ. सोवनी ने कहा कि गहरी नींद नहीं लगने अथवा नींद से संबंधित कोई शिकायत होगी तो इस समस्या का कारण आपके हाथ में ही है. इन कारणों में मोबाइल या टैबलेट शामिल हैं. सोते समय मोबाइल का इस्तेमाल किए जाने से ही नींद संबंधी समस्या होने का खुलासा एक शोध में हुआ है. मस्तिष्क में मौजूद 'मेलाटॉनिन' नामक रसायन नींद के लिए जरूरी होता है. यही रसायन अपने शरीर की घड़ी को नियंत्रित करता है.

मोबाइल यानी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से परावर्तित होने वाला प्रकाश अपने शरीर का 22 प्रतिशत 'मेलाटॉनिन' दबाकर रखता है. इसका परिणाम नींद पर होता है. श्वसन के मरीजों के लिए एनआईवी वरदान : डॉ. गुप्ता वरिष्ठ छाती रोग विशेषज्ञ डॉ. एस.एन. गुप्ता ने कहा कि फेफड़ों की बीमारियों के लिए नॉन इनवेसिव वेंटिलेशन (एनआईवी) वरदान साबित होता है लेकिन भारत में कई सरकारी अस्पतालों खासकर ग्रामीण इलाकों में ये छोटा उपकरण ही नहीं है.

इसलिए श्वसन संबंधी बीमारी के मरीजों को बड़े अस्पतालों में भेजने के दौरान महत्वपूर्ण समय निकल जाता है और उनकी मौत हो जाती है. श्वसन की बीमारी के मरीजों को वेंटिलेटर से पूर्व एनआईवी नामक उपकरण की सहायता मिलने पर काफी फायदा होता है. खासकर क्रॉनिक ऑब्सट्रैक्टिव पल्मनरी डिसीज (सीओपीडी) के मरीजों के लिए इस उपकरण की मदद लेने पर फेफड़ों में से कार्बन डाय ऑक्साइड निकालने में मदद मिलती है.

Web Title: Lack of sleep increased road accidents by 20 percent

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