Cholera vaccine: हैजा मुक्त विश्व?, वैक्सीन ‘हिलकोल’ ने तीसरे चरण का परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा किया, भारत बायोटेक ने की घोषणा
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: May 21, 2025 16:00 IST2025-05-21T15:59:28+5:302025-05-21T16:00:22+5:30
Cholera vaccine: शोध में भाग लेने वाले प्रतिभागियों को तीन आयु वर्गों में विभाजित किया गया: 18 वर्ष से अधिक आयु के वयस्क, पांच वर्ष से 18 वर्ष से कम आयु के बच्चे तथा एक वर्ष से पांच वर्ष से कम आयु के शिशु।

सांकेतिक फोटो
Cholera vaccine: भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड ने बुधवार को कहा कि उसके द्वारा हैजा से बचाव के लिए विकसित किए जा रहे वैक्सीन ‘हिलकोल’ ने तीसरे चरण का नैदानिक परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। भारत बायोटेक ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि ‘हिलकोल’ ‘ओगावा’ और ‘इनाबा’ दोनों ‘सीरोटाइप’ के खिलाफ कारगर साबित हुआ है तथा स्वस्थ भारतीय वयस्कों और बच्चों में यह कमतर साबित नहीं हुआ है। ‘सीरोटाइप’ बैक्टीरिया की सतह पर पाए जाने वाले ‘एंटीजन’ के आधार पर बैक्टीरिया के स्वरूप हैं।
‘ओगावा’ और ‘इनाबा’ विब्रियो कोलेरा ओ1 के दो ‘सीरोटाइप’ हैं, जो एक जीवाणु प्रजाति है। विब्रियो कोलेरा ओ1 के कारण ही हैजा उत्पन्न होता है। इन परीक्षणों से ‘हिलकोल’ के एक प्रभावी ओसीवी (ओरल कोलेरा वैक्सीन) के रूप में इसकी क्षमता का पता चलता है। एक पत्रिका में हाल में प्रकाशित शोध के मुताबिक ‘हिलकोल’ के तीसरे चरण का नैदानिक परीक्षण वैक्सीन की सुरक्षा और प्रतिरक्षाजन्यता की दृष्टि से कारगर साबित हुआ है। विज्ञप्ति में कहा गया है कि इस अध्ययन में 1,800 से अधिक लोगों को शामिल किया गया जिनमें भारत के 10 विभिन्न क्षेत्रों के शिशुओं से लेकर वयस्क शामिल थे।
शोध में भाग लेने वाले प्रतिभागियों को तीन आयु वर्गों में विभाजित किया गया: 18 वर्ष से अधिक आयु के वयस्क, पांच वर्ष से 18 वर्ष से कम आयु के बच्चे तथा एक वर्ष से पांच वर्ष से कम आयु के शिशु। भारत बायोटेक के कार्यकारी अध्यक्ष कृष्णा एल्ला ने कहा, ‘‘यह प्रकाशन कठोर शोध, गहन नैदानिक परीक्षणों और विश्वसनीय नैदानिक आंकड़ों पर आधारित वैक्सीन को आगे बढ़ाने को लेकर हमारी प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है।’’
हैजा एक तीव्र दस्तजन्य संक्रमण है जो विब्रियो कोलेरा बैक्टीरिया से दूषित भोजन या पानी के सेवन से होता है। विज्ञप्ति के मुताबिक हैजा के प्रति वर्ष 28.60 लाख मामले सामने आते हैं और इसके कारण 95 हजार लोगों की मौत होती है।