रस्किन बांड ने कहा-सब कुछ वही था स्कूल, कैप, यूनीफॉर्म लेकिन अब आबोहवा बदल गई और ‘फियरसम फोर’ चार दिशाओं में बंट गया
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: May 17, 2019 04:19 PM2019-05-17T16:19:57+5:302019-05-17T16:19:57+5:30
दोस्तों का मिलना, यारों का बिछुड़ना, मुल्क की आज़ादी और उसका बंटवारा, हर जगह तब्दीली। ये वे चंद अल्फ़ाज हैं जिनकी रोशनी में महान लेखक रस्किन बांड देश को ब्रिटेन से 1947 में मिली स्वतंत्रता को याद करते हैं। उस वक्त बांड की उम्र केवल 13 बरस की थी और वह शिमला के बिशप कॉटन रेजीडेंशियल स्कूल में तालीम हासिल कर रहे थे।
दोस्तों का मिलना, यारों का बिछुड़ना, मुल्क की आज़ादी और उसका बंटवारा, हर जगह तब्दीली। ये वे चंद अल्फ़ाज हैं जिनकी रोशनी में महान लेखक रस्किन बांड देश को ब्रिटेन से 1947 में मिली स्वतंत्रता को याद करते हैं। उस वक्त बांड की उम्र केवल 13 बरस की थी और वह शिमला के बिशप कॉटन रेजीडेंशियल स्कूल में तालीम हासिल कर रहे थे।
उनका जिगरी दोस्त था अजहर खां, जो उनका हमउम्र था और दूसरा था ब्रायन एडम्स जो बामुश्किल उनसे एक साल छोटा। तीसरा दोस्त था सायरस सतारालकर, जो सबसे छोटा था। ये चार दोस्त खुद को ‘फियरसम फोर’ यानी बैखौफ चार कहते थे पर वे हकीकत से वाबस्ता नहीं थे।
“The making of friends; the loss of friends; the country’s freedom and its division; changes everywhere”, this is how Ruskin Bond remembers Independence Day of 1947.#RuskinBond #1947Era #Bookshttps://t.co/vTrzjAAR5C
— Outlook Magazine (@Outlookindia) May 17, 2019
बांड याददाश्त पर वज़न डालते हुये बताते हैं कि अजहर ज़रा खामोश किस्म का था। उसका ताल्लुक उत्तर पश्चिमि फ्रंटियर प्रांत (अब पाकिस्तान में) था पर उसकी तबीयत जरा भी वहां की आबोहवा के मुताबिक नहीं थी, जैसा कि आमतौर पर माना जाता है।
सतारालकर शायद ईरानी मूल का और ब्रायन का घर बेंगलूर में था। वह कहते हैं कि हम चारों को एक दूसरे के मज़हब से कोई वास्ता नहीं था। यह हो सकता है कि उम्रदराजों को इससे मतलब हो लेकिन उस कच्ची उम्र में मज़हब उनके दरम्यिां नहीं था। जो चीज उनमें एक रिश्ता बनाती थी वह थी सुबह के रोज होने वाली पीटी की कसरत।
उनकी आने वाली किताब ‘‘कमिंग राउंड द माउंटेन: इन द ईयर्स ऑफ इंडिपेंडेस’ में ऐसे तमाम दिलचस्प वाक्यात खूबसूरत अंदाज में लिखे गए है। वह लिखते हैं कि ये सब याराने दोस्ताने ने महज एक दिन के भीतर अपनी सूरत बदल ली। वह दिन 1947 की नयी सुबह से शुरू हुआ था।
सब कुछ वही था वही स्कूल, वही स्कूल कैप, वही यूनीफॉर्म लेकिन अब आबोहवा बदल गई और ‘फियरसम फोर’ चार दिशाओं में बंट गया। बांड कहते हैं कि अब बस वही बारिश है जो वैसी ही है बाकी सब कुछ बदल गया। उन्होंने कहा कि देश बंटा और खून के धब्बे सब जगह दिखने लगे यहां तक कि शिमला उससे अछूता नहीं रहा।
तब स्कूल वालों ने तय किया कि वहां पढ़ रहे एक तिहाई मुसलमानों से स्कूल खाली करा लिया जाए। और एक दिन जब ये कस्बा गहरी नींद के आगोश में था चार पांच ट्रक आये और चुपचाप उन्हें यहां से दूर ले गए। पर अजहर उनसे मिलने आया और उसने कहा, दोस्त बिछुड़ने का वक्त आ गया है।
मैं तुम्हें खत लिखूंगा। हम एक रोज दोबारा मिलेंगे। किसी दिन- किसी जगह। अजहर के जाने के बाद बांड के जीवन में एक खालीपन आ गया पर एक रोज उन्हें अजहर का खत मिला। अजहर से फिर मुलाकात की हसरत पूरी नहीं हुई और अब तो बांड के पास वह खत भी नहीं बचा। बांड लिखते हैं उनके लिए इतिहास के मायने हैं कि वह अपनी हदें बदल लेता हैं।