जिस खिलाड़ी ने भारत को दिलाए दो ओलंपिक गोल्ड, आज मजदूरी करने को मजबूर

2015 के स्पेशल ओलंपिक में दो गोल्ड मेडल जीतने वाले राजबीर सिंह आज जीवन-यापन के लिए मजदूरी करने को विवश हैं

By अभिषेक पाण्डेय | Updated: December 27, 2017 18:10 IST2017-12-27T18:05:46+5:302017-12-27T18:10:06+5:30

Rajbir Singh who won 2 gold medals in 2015 Special Olympics forced to work as daily-wage labourer | जिस खिलाड़ी ने भारत को दिलाए दो ओलंपिक गोल्ड, आज मजदूरी करने को मजबूर

राजबीर सिंह स्पेशल ओलंपिक

2015 के समर ओलंपिक में दो गोल्ड मेडल जीतने के बाद जब लुधियाना के राजबीर सिंह स्वदेश लौटे थे तो उनका जोरदार स्वागत हुआ था और तब की पंजाब सरकार ने उन्हें 15 लाख रुपेय का इनाम देने की घोषणा भी की थी। लेकिन राजबीर की ये उपलब्धि उनके लिए कुछ पल का तोहफा ही साबित हुई और इससे उनकी आर्थिक स्थिति जरा भी नहीं सुधरी। दरअसल सरकारी घोषणा के बावजूद उन्हें आज तक सरकार से पैसा नहीं मिला, नतीजतन कभी देश का नाम रोशन करने वाला ये खिलाड़ी अब जीवन-यापन के लिए मजदूरी करने को विवश है। 

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, राजबीर 'औसत बौद्धिक क्षमता और सामान्य कामकाज की क्षमता से नीचे' के वर्ग में आते हैं और उन्होंने 1 किमी और 2 किमी साइक्लिंग इवेंट में दो गोल्ड मेडल जीते थे। स्पेशल समर ओलंपिक में गोल्ड जीतने के बावजूद अपने पिता के साथ मजदूरी करके जीवन का गुजारा करने को मजबूर हैं। 

2015 में राजबीर को तत्कालीन अकाली दल-बीजेपी सरकार ने 15 लाख रुपये का इनाम देने की घोषणा की थी। इसके बाद पंजाब तब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने भी राजबीर को सम्मानित करते हुए एक लाख रुपये का अतिरिक्त इनाम देने की घोषणा की थी। लेकिन उनके पिता का दावा है कि उन्हें सिर्फ 50 हजार रुपये ही मिले। दुखद ये कि राजबीक को केंद्र सरकार से भी 10 लाख रुपये का  इनाम भी मिला था लेकिन वह बॉन्ड्स के रूप में है जो अब तक मैच्योर नहीं हुआ है।

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इस खबर को खुद ट्वीट किया और कहा, 'मैंने इस रिपोर्ट का संज्ञान लिया है और अपने खेल सचिव से विवरण मांगा है। जिन भी सुधारवादी कदमों की जरूरत है, हम निश्चित तौर पर उठाएंगे।'


इस साल 'मनुक्ता दी सेवा' नामक एनजीओ ने राजबीर की कहानी जानकार उनकी मदद करने की ठानी। इस एनजीओ के फाउंडर गुरप्रीत बड़ी निराशा के साथ कहते हैं, 'जब मैंने उन्हें देखा तो मुझे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ, एक ओलंपियन को इस तरह कैसे अपमानित किया जा सकता है?' इसके बाद एनजीओ ने राजबीर की दवा और खाने का खर्च उठाने का फैसला किया और उसे एक साइकिल दी। 

ओलंपिक में गोल्ड जीतकर जिस खिलाड़ी ने देश का मान बढ़ाया वही आज सरकार और खेल प्रशासनों की अनदेखी के कारण एक मजदूर की तरह जीवन व्यतीत करने को विवश है!

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