Who Was Bibek Debroy: कौन थे बिबेक देबरॉय?, पीएम मोदी ने कहा-  अंतर्दृष्टि और जुनून को याद रखूंगा...

By सतीश कुमार सिंह | Updated: November 1, 2024 18:21 IST2024-11-01T11:57:00+5:302024-11-01T18:21:40+5:30

Who Was Bibek Debroy: कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज, पुणे के गोखले इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स, दिल्ली के भारतीय विदेश व्यापार संस्थान में सेवाएं दी थीं।

Who Was Bibek Debroy Noted author and economist Prime Minister’s Economic Advisory Council chairman since 2017 passed away age of 69 | Who Was Bibek Debroy: कौन थे बिबेक देबरॉय?, पीएम मोदी ने कहा-  अंतर्दृष्टि और जुनून को याद रखूंगा...

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Highlightsईएसी-पीएम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह जानकारी दी। देबरॉय अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती थे।दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स और कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज से शिक्षा ग्रहण की थी।

Who Was Bibek Debroy: प्रसिद्ध लेखक और अर्थशास्त्री बिबेक देबरॉय का शुक्रवार सुबह निधन हो गया। वह 69 साल के थे। 2017 से प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष रहे। देबरॉय नीति आयोग के भी सदस्य थे। वह एक संस्कृत विद्वान भी थे जिन्होंने भगवद गीता, वेदों, पुराणों और उपनिषदों का अंग्रेजी में अनुवाद किया था। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय का शुक्रवार की सुबह निधन हो गया। उनकी उम्र 69 वर्ष थी। ईएसी-पीएम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह जानकारी दी। देबरॉय अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती थे।

 

शास्त्रीय संस्कृत और प्राचीन ग्रंथों का गहरा ज्ञान बिबेक देबरॉय को बाकी अर्थशास्त्रियों से अलग करता था। उन्हें अर्थशास्त्र के साथ पुराणों, वाल्मीकि रामायण और महाभारत के अनुवाद के लिए भी लंबे समय तक याद किया जाएगा। वे अपनी रुचियों और ज्ञान के क्षेत्र में बेमिसाल थे। संस्कृत ग्रंथों के अनुवाद के लिए उनके गहरे जुनून, रेलवे सुधारों के प्रति उनके समर्पण, फाउंटेन पेन में रुचि और भारतीय/हिंदू जीवन में कुत्तों की भूमिका जैसे कुछ असामान्य विषयों में शोध के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा। देबरॉय (69) की आर्थिक रुचियों और शोध कार्यों में आर्थिक सिद्धांत, आय असमानता और बुनियादी ढांचे के वित्तपोषण जैसे कई क्षेत्र शामिल थे। सरकार के भीतर और बाहर लंबे समय तक कार्यरत अर्थशास्त्री के रूप में उन्होंने कई विवादों को भी जन्म दिया।

इसमें 2005 में राजीव गांधी समकालीन अध्ययन संस्थान के निदेशक (शोध) के रूप में एक विवाद भी शामिल है। उन्होंने एक शोध पत्र में गुजरात को आर्थिक स्वतंत्रता देने के मामले में भारत में अग्रणी राज्य बताया था। कथित तौर पर इसके बाद उनका तबादला कर दिया गया था। उस शोध पत्र को जर्मनी स्थित फ्रेडरिक-नौमान स्टिफ्टंग ने प्रायोजित किया था और संस्थान के संचालन की देखरेख करने वाले राजीव गांधी फाउंडेशन (आरजीएफ) ने प्रकाशित किया था। इस साल सितंबर में देबरॉय ने गोखले राजनीति और अर्थशास्त्र संस्थान (जीआईपीई) के कुलाधिपति पद से इस्तीफा दे दिया था।

बंबई उच्च न्यायालय ने संस्थान के कुलपति अजीत रानाडे को अंतरिम राहत दी थी, जिन्हें पहले उनके पद से हटा दिया गया था। उन्हें दो महीने पहले ही जीआईपीई का कुलाधिपति नियुक्त किया गया था। यह भी एक अजीब संयोग है कि देबरॉय ने अपने निधन से चार दिन पहले इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक स्तंभ में लिखा था, ''बाहर एक दुनिया है जो मौजूद है। अगर मैं वहां नहीं हूं तो क्या होगा?

वास्तव में क्या होगा।'' देबरॉय रामकृष्ण मिशन स्कूल, नरेंद्रपुर और प्रेसीडेंसी कॉलेज, कोलकाता के पूर्व छात्र थे। उन्होंने दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के बाद ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज से उच्च अध्ययन किया था। उन्होंने कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज, पुणे के जीआईपीई, दिल्ली के भारतीय विदेश व्यापार संस्थान और कानूनी सुधारों पर वित्त मंत्रालय/ यूएनडीपी परियोजना के निदेशक के रूप में भी काम किया था। वह पांच जून, 2019 तक नीति आयोग के सदस्य भी थे। उन्होंने कई किताबें, शोधपत्र और लोकप्रिय लेख लिखे। साथ ही कई अखबारों के लिए लेख लिखते रहे।

अर्थशास्त्र के अलावा उनकी दिलचस्पी प्राचीन भारतीय ग्रंथों और रेलवे में थी। वर्ष 2016 में सरकार ने देबरॉय की अगुवाई वाली समिति की सिफारिशों के आधार पर ही रेल बजट को आम बजट में मिला देने का फैसला किया था। देबरॉय ने दर्जनों प्राचीन संस्कृत ग्रंथों का अंग्रेजी में अनुवाद किया।

इनमें महाभारत के दस खंड, तीन खंडों वाली वाल्मीकि रामायण, शिव पुराण और लगभग एक दर्जन महापुराणों का संक्षिप्त संस्करण शामिल है। उन्होंने एक किताब 'सरमा एंड हर चिल्ड्रन' भी लिखी, जिसमें कुत्तों के प्रति उनके प्रेम के साथ हिंदू धर्म में उनकी रुचि को भी दर्शाया गया है।

देबरॉय (69) ने नरेंद्रपुर के रामकृष्ण मिशन स्कूल, कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स और कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज से शिक्षा ग्रहण की थी। उन्होंने कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज, पुणे के गोखले इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स, दिल्ली के भारतीय विदेश व्यापार संस्थान में सेवाएं दी थीं।

वह कानूनी सुधारों पर वित्त मंत्रालय/यूएनडीपी परियोजना के निदेशक भी रहे। वह पांच जून 2019 तक नीति आयोग के सदस्य भी थे। उन्होंने कई पुस्तकों, शोधपत्रों और लोकप्रिय लेखों का लेखन/संपादन किया है और कई समाचार पत्रों के सलाहकार/योगदान संपादक भी रहे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को जाने माने अर्थशास्त्री बिबेक देबरॉय के निधन पर शोक जताया।

कहा कि अपने कार्यों के माध्यम से उन्होंने भारत के बौद्धिक परिदृश्य पर एक अमिट छाप छोड़ी। प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘डॉ. बिबेक देबरॉय एक उच्च कोटि के विद्वान थे, जो अर्थशास्त्र, इतिहास, संस्कृति, राजनीति, आध्यात्मिकता जैसे अन्य विषयों पर महारत रखते थे। अपने कार्यों के माध्यम से, उन्होंने भारत के बौद्धिक परिदृश्य पर एक अमिट छाप छोड़ी।’’

मोदी ने कहा कि देबरॉय ने सार्वजनिक नीति में अपने योगदान से परे, हमारे प्राचीन ग्रंथों पर भी काम किया और युवाओं के लिए उन्हें सुलभ बनाया। उन्होंने कहा, ‘‘मैं डॉ. देबरॉय को कई वर्षों से जानता था। मैं अकादमिक क्षेत्र के लिए उनकी अंतर्दृष्टि और जुनून को याद रखूंगा। उनके निधन से दुखी हूं। उनके परिवार और दोस्तों के प्रति संवेदना।’’

प्रधानमंत्री मोदी ने नाम्बियार के निधन पर शोक व्यक्त किया

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारतीय इलेक्ट्रॉनिक कंपनी ‘बीपीएल समूह’ के संस्थापक टी. पी. गोपालन नाम्बियार के निधन पर बृहस्पतिवार को शोक व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि अग्रणी नवप्रवर्तक और उद्योगपति भारत को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के प्रबल समर्थक थे। नाम्बियार (94) का बृहस्पतिवार सुबह बेंगलुरु स्थित उनके आवास पर निधन हो गया।

उनके परिवार के सूत्रों ने यह जानकारी दी। मोदी ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘टीपीजी नाम्बियार जी एक अग्रणी नवप्रवर्तक और उद्योगपति थे, जो भारत को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के प्रबल समर्थक थे। उनके निधन से दुख हुआ। उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति संवेदना।’’

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