आईबीसी के तहत अब कंपनियों के साथ व्यक्तिगत गारंटी देने वालों को भी करना होगा कार्यवाही का सामना

By भाषा | Updated: May 21, 2021 23:38 IST2021-05-21T23:38:03+5:302021-05-21T23:38:03+5:30

Under the IBC, now those who provide personal guarantees with companies will also have to face action | आईबीसी के तहत अब कंपनियों के साथ व्यक्तिगत गारंटी देने वालों को भी करना होगा कार्यवाही का सामना

आईबीसी के तहत अब कंपनियों के साथ व्यक्तिगत गारंटी देने वालों को भी करना होगा कार्यवाही का सामना

नयी दिल्ली, 21 मई उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) मामले में कर्ज को लेकर व्यक्तिगत गारंटी देने वालों के लिये महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। उसने कहा कि आईबीसी के तहत कंपनियों के साथ उन्हें कर्ज के लिये व्यक्तिगत गारंटी देने वाले के खिलाफ भी ऋण शोधन कार्यवाही होगी।

विशेषज्ञों का कहना है कि न्यायालय के इस फैसले से आईबीसी के तहत अब अधिक मामलों के समाधान हो सकेंगे तथा वसूली राशि बढ़ेगी।

शीर्ष अदालत ने इस फैसले के साथ केंद्र के 15 नवंबर, 2019 की अधिसूचना को बरकरार रखा जिसमें कंपनी कर्जदारों को व्यक्तिगत गारंटी देने वालों को आईबीसी के दायरे में लाया गया था। यह फैसला काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि अब कई बड़े उद्योगपतियों को अपनी कर्ज में डूबी कंपनियों के साथ ऋण शोधन कार्यवाही का सामना करना पड़ेगा।

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की पीठ ने कहा कि आईबीसी के तहत समाधान योजना की मंजूरी से बैंकों के प्रति व्यक्तिगत गारंटी देने वालों की देनदारी खत्म नहीं हो जाती।

न्यायमूर्ति भट ने फैसले के निष्कर्ष को पढ़ते हुए कहा, ‘‘फैसले में हमने अधिसूचना को सही करार दिया है।’’

याचिकाकर्ताओं ने आईबीसी और अन्य प्रावधानों के तहत जारी 15 नवंबर 2019 की अधिसूचना को चुनौती दी थी, जो कॉरपोरेट देनदारों को व्यक्तिगत गारंटी देने वालों से संबंधित हैं।

अधिसूचना की वैधता को बरकरार रखते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी कंपनी के लिए दिवालिया समाधान योजना शुरू होने से व्यक्तियों द्वारा वित्तीय संस्थानों के बकाया भुगतान के प्रति दी गई कॉरपोरेट गारंटी खत्म नहीं होती।

न्यायमूर्ति भट ने फैसले में लिखा, ‘‘यह स्वीकार किया जाता है कि एक समाधान योजना (आईबीसी के तहत एक बीमार कंपनी के पुनरुद्धार के लिए) की मंजूरी से कोई निजी गारंटर (एक कॉरपोरेट कर्जदार का) गारंटी अनुबंध के तहत अपनी देनदारियों से स्वत: मुक्त नहीं हो जाता।’’

पीठ ने कहा कि उक्त अधिसूचना ‘‘कानूनी और वैध’’ है और कॉरपोरेट कर्जदार से संबंधित समाधान योजना की मंजूरी का कॉरपोरेट ऋणों के व्यक्तिगत गारंटरों की देनदारियों से संबंध नहीं है।

यह फैसला करीब 75 याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान आया, जिनमें से कुछ स्थानांतरण याचिकाएं भी थीं। इन याचिकाओं को विभिन्न कंपनियों और उन लोगों द्वारा दाखिल किया गया था, जिन्होंने कंपनियों को दिए गए कर्ज के बदले में बैंकों या वित्तीय संस्थानों को अपनी व्यक्तिगत गारंटी दी थी।

विशेषज्ञों का कहना है कि न्यायालय के इस फैसले से आईबीसी के तहत अब अधिक मामलों के समाधान हो सकेंगे तथा वसूली राशि बढ़ेगी।

ग्रांट थोर्नटन भारत एलएलपी के भागीदारी और फोरेंसिक प्रमुख समीर परांजपे ने कहा, ‘‘यह निर्णय संभवत: आईबीसी ढांचे में अंतिम महत्वपूर्ण गायब टुकड़ों में से एक है। यह ऋणदाताओं की स्थिति को मजबूत बनाता है क्योंकि यह उन्हें प्रवर्तकों द्वारा दी गई व्यक्तिगत गारंटी के उपयोग की अनुमति देता है। इससे कम समयसीमा में ज्यादा-से-ज्यादा मामलों के निपटान का मार्ग प्रशस्त होगा।’’

उन्होंने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि इससे प्रवर्तक अधिक जवाबदेह होंगे और वे व्यक्तिगत गारंटी देने को लेकर सतर्क रहेंगे।

सिरिल अमरचंद मंगलदास में भागीदार एल विश्वनाथन ने इसे ऐतिहासिक फैसला बताया और कहा, ‘‘हमने देखा है कि कॉरपोरेट कर्जदारों की समाधान प्रक्रिया के परिणामस्वरूप ऋणदाताओं के लिए कर्ज की पूरी राशि की वसूली नहीं हुई है। इस निर्णय से ऋणदाता अब व्यक्तिगत गारंटी देने वालों के खिलाफ कदम उठा सकते हैं जिसके परिणामस्वरूप उनके लिए अधिक वसूली हो सकती है।

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