टाटा सन्स पर सार्वजनिक लिस्टिंग से बचने का आरोप?, आरबीआई को कानूनी नोटिस!, जानिए क्या है पूरा माजरा

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: December 4, 2024 02:49 PM2024-12-04T14:49:17+5:302024-12-04T14:50:28+5:30

ये नियम ऐसे निकायों पर लागू होते हैं जो देश की आर्थिक संरचना को प्रभावित करने की स्थिति में हैं।

Tata Sons IPO controversy rages legal notice alleges conflict of interest avoiding public listing Legal notice to RBI  know what matter | टाटा सन्स पर सार्वजनिक लिस्टिंग से बचने का आरोप?, आरबीआई को कानूनी नोटिस!, जानिए क्या है पूरा माजरा

सांकेतिक फोटो

Highlightsनोटिस में आरबीआई के भीतर हितों के टकराव की संभावित स्थिति को भी उजागर किया गया है।सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध होने के अपने दायित्व से बचने की कोशिश कर रहा है। देश की आर्थिक संरचना को प्रभावित करने की स्थिति में हैं।

मुंबईः शेयर बाजार में हलचल तेज है। ऐसे समय में जब शेयर बाजार के निवेशक टाटा संस के आरंभिक सार्वजनिक प्रस्ताव (आईपीओ) का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं, एक नया विवाद खड़ा हो गया है जहां यह आरोप लगाया जा रहा है कि टाटा संस अनिवार्य सार्वजनिक लिस्टिंग नियमों से बचने का प्रयास कर रहा है। एशियननेटन्यूज.कॉम की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है। आरबीआई को भेजे गए कानूनी नोटिस ने टाटा सन्स और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए हैं। 24 नवंबर को सुरेश तुलसीराम पाटिलखेडे द्वारा आरबीआई को भेजे गए नोटिस में दावा किया गया है कि टाटा सन्स नियामक निगरानी और अनिवार्य सार्वजनिक लिस्टिंग आवश्यकताओं से बचने का प्रयास कर रहा है। नोटिस में आरबीआई के भीतर हितों के टकराव की संभावित स्थिति को भी उजागर किया गया है।

नोटिस में आरोप लगाया गया है कि टाटा सन्स, जिसे आरबीआई के स्केल-बेस्ड रेगुलेशन (SBR) ढांचे के तहत कोर इन्वेस्टमेंट कंपनी (CIC) और प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (NBFC-UL) के रूप में वर्गीकृत किया गया है, 2025 तक सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध होने के अपने दायित्व से बचने की कोशिश कर रहा है।

नोटिस के अनुसार, 28 मार्च 2024 को टाटा सन्स ने CIC की स्थिति से डीरजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन किया था, जबकि नियम स्पष्ट रूप से इस श्रेणी में आने वाली संस्थाओं पर कड़ी निगरानी और सार्वजनिक लिस्टिंग को अनिवार्य करते हैं। नोटिस में कहा गया, "यह ध्यान देने योग्य है कि आवेदन की तारीख तक भी टाटा सन्स एनबीएफसी के रूप में काम कर रहे थे और सार्वजनिक धन का लाभ उठा रहा थे।"

शिकायतकर्ता का कहना है कि टाटा सन्स की वित्तीय गतिविधियां, जिनमें ₹4,00,000 करोड़ से अधिक की देनदारियां शामिल हैं, इसकी सहायक कंपनियों और देश की आर्थिक स्थिरता के लिए जोखिम पैदा करती हैं। शिकायतकर्ता के वकील मोहित रेड्डी पाशम ने कहा, "आरबीआई ने यह सुनिश्चित करने के लिए नियम बनाए थे कि देश की अर्थव्यवस्था को DHFL और IL&FS जैसी घटनाओं के बाद और कोई झटका न लगे। ये नियम ऐसे निकायों पर लागू होते हैं जो देश की आर्थिक संरचना को प्रभावित करने की स्थिति में हैं।

टाटा सन्स ने इन नियमों को समझते हुए इस क्षेत्र में प्रवेश किया था। अब यह देखना चौंकाने वाला है कि वे कानून प्रवर्तन एजेंसियों से बचने का प्रयास कर रहे हैं। नियम स्पष्ट हैं कि इन संस्थाओं को सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध होना चाहिए।" नोटिस का एक प्रमुख हिस्सा टाटा सन्स के निदेशक और टाटा ट्रस्ट्स के उपाध्यक्ष श्री वीनू श्रीनिवासन द्वारा आरबीआई बोर्ड के सदस्य के रूप में निभाई गई कथित भूमिका पर केंद्रित है। नोटिस में दावा किया गया है कि श्रीनिवासन की यह दोहरी भूमिका आरबीआई के निर्णय लेने की स्वतंत्रता को प्रभावित करती है।

टाटा सन्स के डीरजिस्ट्रेशन आवेदन पर विचार करने में नैतिक सवाल उठाती है। नोटिस में कहा गया, "श्री वीनू श्रीनिवासन, जो टाटा ट्रस्ट्स के उपाध्यक्ष और टाटा सन्स के निदेशक हैं, को 2022-2026 की अवधि के लिए आरबीआई के निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया है।"

नोटिस में आगे कहा गया, "यह स्पष्ट है कि टाटा सन्स अब आरबीआई के भीतर अपने अनुचित प्रभाव का उपयोग कर रहा है, विशेष रूप से श्री वीनू श्रीनिवासन के माध्यम से, ताकि अपने आवेदन के पक्ष में निर्णय प्राप्त किया जा सके।" वकील रेड्डी ने कहा, "श्री वेणु श्रीनिवासन का आरबीआई बोर्ड में होना आरबीआई की स्वतंत्रता को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा करता है।

प्रथम दृष्टया, यह हितों के टकराव जैसा प्रतीत होता है। जब आरबीआई के पास डीरजिस्ट्रेशन आवेदन को स्वीकार करने का कोई अधिकार नहीं है, तो ऐसे आवेदन को स्वीकार करना और उस पर इतने लंबे समय तक विचार करना निश्चित रूप से सवाल खड़े करता है।" नोटिस में चेतावनी दी गई है कि टाटा सन्स को CIC के रूप में डीरजिस्टर करने की अनुमति देना, जैसे नियामक संस्थानों में जनता के विश्वास को कमजोर कर सकता है और अन्य संस्थाओं के लिए निगरानी से बचने की मिसाल कायम कर सकता है।

शिकायतकर्ता ने आरबीआई से टाटा सन्स के आवेदन को अस्वीकार करने और SBR ढांचे के अनुपालन का निर्देश देने का आग्रह किया है। रेड्डी ने कहा, "आरबीआई जैसी संस्था को अत्यधिक पारदर्शिता प्रदर्शित करनी चाहिए और राष्ट्र का विश्वास अर्जित करना चाहिए। इसलिए, यह जरूरी है कि आरबीआई इस आवेदन को अस्वीकार करे और स्पष्ट संदेश दे कि कानून सब पर समान रूप से लागू होता है, चाहे वह कोई भी हो।"

इन आरोपों ने वित्तीय विश्लेषकों के बीच चर्चा छेड़ दी है, जिसमें टाटा सन्स और आरबीआई से अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग की जा रही है। हितधारक आरबीआई की प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहे हैं, क्योंकि इसका निर्णय नियामक परिदृश्य और वित्तीय प्रशासन में सार्वजनिक विश्वास पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।

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