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बैंकों का लेखा-जोखा ठीक करने के लिए बैड बैंक की जरूरत: सीआईआई

By भाषा | Updated: December 20, 2020 19:51 IST

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नयी दिल्ली, 20 दिसंबर उद्योग मंडल सीआईआई ने सरकारी बैंकों के लेखा-जोखा में अवरुद्ध कर्जों की भारी समस्या के निराकरण के लिए ‘बैड बैंक’बनाने के प्रस्ताव पर विचार करने का सरकार को सुझाव दिया है।

बैड बैंक ऐसे वित्तीय संस्थान होते हैंजो दूसरे वित्तीय संस्थाओं और बैंकों के वसूली में उलझे कर्जों को खरीद कर उसका प्रबंध करते है। सीआईआई ने वित्त मंत्रालय के समक्ष प्रस्तुत अपने एक बजट पूर्व ज्ञापन में कहा है कि देश में एक नहीं अनेक बैड बैंक की जरूरत है।

कोविड19 महामरी और उसकी रोकथाम के लिए सार्वजिनक पाबंदियों को लागू किए जाने के बाद एनपीए की समस्या बढ़ी है।

सीआईआई की सिफारिश है कि सरकार को ऐसे नियम कानून बनाने चाहिए निजके आधार पर विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) और वैकल्पिक निवेश कोष (एआईएफ) बैंकों के एनपीए (अवरुद्ध ऋण) खाते खरीद सकें।

सीआईआई के अध्यक्ष उदय कोटक ने कहा कि ‘कोविड के बाद के दौर में इस समस्य (फंसे हुए कर्जों) के निस्तारण का बाजार में तय कीमतों पर आधारित समाधान तंत्र खोजना जरूरी है।’

फिलहाल बैंक अपने अटके कर्जों को विवेकपूर्ण बैंक-कार्य के लिए भारतीय रिजर्व बैंक के तय नियमों के अनुसार सम्पत्ति पुनर्गठन कंपनियों को बेच सकते हैं।

कर्जदाता इकाइयों को नए दिवाला कानून के तहत नीलामी की प्रक्रिया में भी डाला जा सकता है।उसमें कंपनी का बंध दूसरे निवेशकों के हाथ में चला जाता है।

आर्थिक समीक्षा 2017 में सार्वजिनक क्षेत्र परिसम्पत्ति पुनर्वास एजेंसी (पारा) नाम से बैड बैंक बनाने की सिफारिश की गयी थी। बैंकों का एनपीए बढ़ने से उनकी कर्ज देने की क्षमता घटती है जिसका असर बाजार पर पड़ता है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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