बैंक और ऋणदाताओं को कुछ बीमारू कंपनियों की बिक्री से 2.01 लाख करोड़ रुपये की कमाई हुई है। यह बीमारू कंपनियों द्वारा बैंकों से लिए गए कर्ज के कुल बकाया का तकरीबन 40 प्रतिशत है।
पूरी तरह से दिवालिया हो चुकी 317 कंपनियों को भारतीय दिवाला और दिवालियापन बोर्ड (आईबीबीआई) ने 31 दिसंबर 2021 को नए खरीददारों को बेच दिया था। आईबीबीआई दिवालिया हो चुकी कंपनियों के लिए नियामक के तौर पर काम करता है।
इसके अलावा 1126 मामलों की ऋणशोधन के लिए सिफारिश की गई है। रोचक ये है कि 317 मामलों के निपटारे के लिए ऋणदाताओं द्वारा तय वसूली मू्ल्य 2.01 लाख करोड़ है। यह 5.11 लाख करोड़ रुपये के कुल दावों का 39.37 प्रतिशत है।
आईबीसी कोड के अस्तित्व में आने के बाद बदले हालात
जाहिर है कि ऋणदाताओं, बैंकों और सरकार का काफी बकाया दो लाख करोड़ रुपये से वसूल हो गया। जनवरी 2017 में आईबीसी कोड के अस्तित्व में आने के बाद से बैंक और ऋणदाता दिवालिया कंपनियों को ऋणशोधक के पास ले जाती है, जो एक तय प्रक्रिया के जरिए उनकी दोबारा बिक्री करता है।
कंपनियों को गैर निष्पादिक संपत्तियों (एनपीए) में तब्दील करने के जिम्मेदार मालिक को अपनी परिसंपत्ति गंवानी पड़ती है। यह जानकारी कॉरपोरेट मामलों के मंत्री ने संसद में दी। कंपनियों की सूची से तीन लाख से ज्यादा 'कागजी' कंपनियां पहले ही गायब हो चुकी हैं।
दशकों से डूबी हुई कई बड़ी और मशहूर इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियों को बैंकों द्वारा आईबीसी के अधीन लाया गया। इससे वह ऋण में दी गई राशि का कम से कम 40 प्रतिशत वसूलने में कामयाब रहीं।
उल्लेखनीय है कि 3.82 शेल कंपनियों को पहचान के बाद 2020 तक तीन साल में कंपनियों की सूची से हटा दिया गया। 2020-21 के दौरान कोई कंपनी सूची से नहीं हटाई गई है। इनमें से 331 कथित शेल कंपनियों, 221 कंपनियों को तो स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध होने के साथ-साथ वहां कारोबार करते भी देखा गया है।