सत्यमेव जयते Movie Review: दशभक्ति के नाम पर भद्दा मजाक, आधा स्टार
By जनार्दन पाण्डेय | Published: August 15, 2018 02:00 AM2018-08-15T02:00:06+5:302018-08-15T07:09:34+5:30
फिल्म के क्लाइमेक्स दृश्य में सभी मुख्य किरदार सड़क पर बैठकर रो रहे होते हैं। लगता है जैसे फिल्म के नाम पर किए गए इस कचरे पर शर्मिंदा हों।
सत्यमेव जयते 1/2*
रेटिंगः आधा स्टार
लेखक-निर्देशकः मिलाप मिलन झावेरी
कलाकारःजॉन अब्राहम, मनोज वाजपेयी, आएशा शर्मा
निर्माताः टी-सिरीज, एमे इंटरटेनमेंट
फिल्म एक कला है, इसमें कलाकार काम करते हैं, फिल्में क्रिएटिव विधा हैं, इस तरह की सभी धारणाओं का सत्यमेव जयते खिलखिलाकर मजाक उड़ाती है। यह 2:21 घंटे पर्दे चलने वाला एक टॉर्चर है, जिसे विशुद्ध रूप से बिजनेस के लिए बनाया गया है। फिल्म व्यवसाय के चतुर लोगों ने इसे 15 अगस्त पर रिलीज किया है।
सत्यमेव जयते, 1980 के दशक में इजाद की गई उस मैथडलॉजी पर बनाई गई जिसमें कोई एक निर्धारित कहानी नहीं होती। सेट पर ही बोलते वक्त डायलॉग लिख लिए जाते हैं। मौके-मौके से कर्मशियल फिल्मों के एलिमेंट, जैसे- एक आइटम सांग, एक हीरो, एक विलेन, एक खूबसूरत लड़की, शोर करने वाला बैकग्राउंड म्यूजिक, मारधाड़ से भरपूर दृश्यों को खांचों में भर दीजिए, जो माल तैयार हो जाए उसे मार्केट में बेच दीजिए।
फिल्म का एक और पक्ष है। खोखली देशभक्ति। फिल्म नोटबंदी, छप्पन इंच का सीना, करप्शन और महिला शक्तिकरण जैसे मुद्दों को फिल्म में उठाया जाता है। लेकिन इतने छिछले तरीके से कि लगता है जैसे निर्देशक इन मुद्दों का मजाक बना रहे हों।
फिल्म में महाराष्ट्र पुलिस की ओर से अपने सिपाहियों को दिलाई जाने वाली शपथ को तीन बार दिखाया गया है। फिल्म के किरदार अलग-अलग मौकों पर पुलिस की पूरी शपथ की लाइनें पढ़ते हैं। इसके बनिस्पत जब-जब फिल्म में हीरो किसी पुलिस वालों को जिंदा जलाता है, तब-तब शिव तांडव बजता है।
फिल्म के दौरान अधिकांश दर्शक अगला दृश्य क्या होगा, बल्कि अगला डायलॉग क्या होगा, एकदम सही-सही बता सकते हैं। जैसे एक दृश्य में हीरो पुलिस वाले को मारकर अस्पताल के एक कमरे से दूसरे कमरे में छज्जे से जाता है। लेकिन तभी गिर जाता है। ऊधर उसका पीछा करता पुलिसवाला आता है। लेकिन सबको पता होता है जैसे ही वह खिड़की से बाहर झाकेगा। हीरो दूसरे कमरे में जा चुका होगा। फिल्म में ऐसे दृश्यों की भरमार है, जैसे दृश्य आपने मिथुन चक्रवर्ती की 'बदला' वाली फिल्मों में बहुतायत में देखी होगी।
फिल्म में तकनीकी गलतियां भी हैं। फिल्म में मनोज वाजपेयी के एंट्री सीन में उनकी एक बेटी है ऐसा दिखाया जाता है। जो कि मनोज से बहुत प्यार करती है। दूसरे सीन में वह फोन पर पापा से बात करती है। लेकिन इसके बाद डायरेक्टर उसे भूल जाते हैं। फिल्म में ऐसे दृश्य आते हैं जब परिवार के सभी सदस्य मौजूद होते हैं, लेकिन बेटी नजर नहीं आती। एक दृश्य में जॉन अब्राहम को सोने जाते वक्त गले में घाव के बड़े निशान थे, लेकिन जब वे सोकर उठते हैं तो निशान गायब हो जाते हैं। एक दृश्य में वह माचिस की तिली जलाने के बाद लंबा संवाद बोलते हैं, लेकिन तिली नहीं बुझती। फिल्म की खूबसूरत हीरोइन, हीरो की बाहों में ऐसे गिरी चली आती है जैसे इतनी बड़ी मुंबई में उसे कोई लड़का मिलता ही ना हो। उसे हीरो से कोई गहरा प्यार भी नहीं है। यूं ही वह हीरो के बाहों में आ गिरती है। मिलन झावेरी की कहानी-निर्देशन का अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं।
कहानी बदले की है। एक बेटा (वीर- जॉन अब्राहम) अपने पिता की मौत का बदला महाराष्ट्र पुलिस के भ्रष्ट अफसरों को मारकर लेता है। वह सत्यमेव जयते के अंग्रेजी अल्फाबेट्स की तर्ज पर अपने अगले निशाने चुनता है। और ऐसा जाहिर करता है कि वह ऐसा देशहित में कर रहा है। टीवी के माध्यम से देशभर से उसे सपोर्ट मिलता है। वह दावा करता है कि वह देश का बड़ा काम कर रहा है। दूसरा बेटा (सिवाच- मनोज वाजपेयी) महाराष्ट्र पुलिस का सबसे काबिल अफसर है। वह अपराधी को पकड़ना चाहता है। दोनों भाइयों में चूहे-बिल्ली का खेल चलता है। आखिर में सिवाच को पता चलता है कि उसका भाई ही हत्यारा है। शिखा (आएसा शर्मा) एक पशु डॉक्टर हैं, जिनका यूं ही वीर पर दिल आ गया है। वह वीर से शादी करना चाहती हैं।
अभिनय का जिक्र ना ही करे तो बेहतर होगा। मनोज वाजपेयी ने लगता है पैसे के लिए पार्ट टाइम जॉब किया हो। अय्यारी के साथ-साथ। क्योंकि उनके अंदाज, लुक बिल्कुल अय्यारी वाले हैं। जॉन अब्राहम ने कई मौकों पर शर्ट उतारे हैं, बस तभी वे देखने में ठीक लगते हैं। इसके अलावा ट्रैक्टर या ट्रक के टायर को बीच से तोड़ देने वाले दृश्यों में वे साउथ इंडियन फिल्मों के हीरो मालूम होते हैं। आएशा शर्मा ने इस फिल्म से डब्यू किया है। उन्हें अगर फिल्मों का रुख करना है और टिकने का इरादा है तो अभिनय के बेसिक्स कम से कम सीख लेने चाहिए।
फिल्म की एकमात्र उपलब्धि इसके गाने हैं। क्योंकि वही अंधों में काना राजा हैं। फिल्म में एक मौलिक और दो रिक्रिएट किए गए गाने चलते हैं। यह तीनों ही कर्णप्रिय हैं।
फिल्म के पहले दृश्य में जॉन अब्राहम एक पुलिस वाले को चिता में बांधकर जिंदा जला देते हैं। उसे जलाते वक्त वह जिस अंदाज में और जैसा डायलॉग बोलते हैं, दृश्य की पूरी बर्बरता तहस-नहस हो जाती है। फिल्म के क्लाइमेक्स दृश्य में सभी मुख्य किरदार सड़क पर बैठकर रो रहे होते हैं। लगता है जैसे फिल्म के नाम पर किए गए इस कचरे पर शर्मिंदा हों।
Final Comment: फिल्म देखने के लिए दो चीजों की आवश्यकता होती है। समय और धन। ऐसे में अगर आपके पास एक रत्ति भर का काम हो तो सत्यमेव जयते देखने ज्यादा उसे तरजीह दें। पैसे तभी खर्च करें, जब आप ऐसे अवसर ढूंढ़ रहे हों कि कहां इन पैसों को खर्च कर दिया जाए, कोई जगह दिख नहीं रही, तभी वह पैसे सत्यमेव जयते पर लगाएं।