रणबीर कपूर का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू- कॉलेज में मैंने भी दोस्तों के चक्कर में पड़कर ड्रग्स लिया है
By असीम चक्रवर्ती | Published: August 24, 2018 12:43 PM2018-08-24T12:43:31+5:302018-08-24T12:43:31+5:30
यदि आप नियमित तौर पर कोकीन सेवन करते हैं, तब आपके शरीर का सारा एक्शन फास्ट हो जाता है। और आपकी सारी नर्व कांपने लगती हैं।
वह इन दिनों पूरे जोश में हैं। यह स्वभाविक बात है। असल में संजू की सफलता से इन दिनों वह बेहद खुश हैं। ऐसे में उनसे मिलना एक दुष्कर कार्य होता है। जाहिर है इस बातचीत के लिए वह बड़ी मुश्किल से समय देते हैं। लेकिन एक बार बातचीत शुरू होती है,तो वह बातों की रौ में बहुत कुछ बयां कर जाते हैं-
आप तो ‘पीके-2’ करनेवाले थे, फिर संजू कैसे कर लिए?
-असल में मैं राजकुमार हिरानी का बहुत बड़ा फैन हूं। पीके की अतिथि भूमिका करने के दौरान मैं बार-बार यह कहकर उनका दिमाग चाटता रहता था कि वह मुझे लेकर पीके-2 बनाएं। ऐसे में एक दिन राजू सर ने मुझे मैसेज किया कि वह मुझे अपनी अगली फिल्म में कास्ट करना चाहते हैं। मैंने भी बहुत उत्साहित होकर उनसे पूछा इज इट पीके-2? उनका जवाब था-दत्त। असल में तब तक संजय दत्त के बायोपिक का नाम दत्त ही रखा गया था। मुझे याद है, तब उस मैसेज को पढ़कर मैं बहुत टूट गया था। संजय दत्त की बायोपिक में काम करने के लिए मैं किसी भी तरह से तैयार नहीं था। पर मैं हिरानी पर मुग्ध था जाता कहां।
आपने तो शुरू-शुरू में यह रोल करने से साफ मना कर दिया था ?
-सच कहूं तो मैं शुरू में बिल्कुल समझ नहीं पा रहा था। जो व्यक्ति पूरे दम में अब भी लगातर सक्रिय है, उस पर अभी कोई बायोपिक तैयार करना कैसे संभव है। इसलिए मैंने राजू सर को तुरंत अपना ख्याल बता दिया था। लेकिन राजू सर ने भी जैसे एक जिद पकड़ ली थी। मुझसे कहा-एक बार स्क्रिप्ट तो पढ़ लो। इसके बाद पूरी स्क्रिप्ट पढ़ने के तुरंत बाद मैंने एक मिनट भी देर किए बिना उन्हें मैसेज कर दिया- मैं तैयार हूं। असल में स्क्रिप्ट पढ़ने के बाद मुझे यह बात समझ में आई कि यह सिर्फ संजू सर की बायोपिक नहीं है बल्कि पिता-पुत्र के संबंधों की कहानी भी बयां करती है। जो मेरी भी कहानी हो सकती है,आपकी भी।
यानी आपको यह कहानी अपने जिंदगी के बहुत करीब लगती है ?
-आप काफी हद तक यह बात कह सकते हैं। मैंने पहले ही आपसे कहा है। पिता-पुत्र की कहानी होने की वजह से मैं संजू करने के लिए राजी हो गया था। यदि यह कहानी मेरी है, तो यह आपकी भी है। असल में हमारे देश में ज्यादातर पिता-पुत्र का संबंध बहुत जटिल होता है। इसकी तुलना में मां-बेटे का रिश्ता बहुत सहज होता है। दूसरी ओर पिता-पुत्र के रिश्ते में एक छिपा हुआ टेंशन होता है। इसे मैंने खुद भी महसूस किया है। संजू सर ने फेस किया था। मेरा पूरा यकीन है कि आपने भी फेस किया होगा। बेटा बड़ा होने पर जब भी किसी विषय पर अपना विचार रखता है, पिता को लगता है कि बेटा शायद उससे ज्यादा समझदार हो गया है। दूसरी ओर बेटे का लक्ष्य रहता है,पिता का अनुसरण करना और उनसे आगे बढ़ जाना। पिता भी शायद ऐसा चाहता है। लेकिन चेहरे से व्यक्त नहीं करता है। ऐसे में बेटे को यह गलतफहमी हो जाती है कि पिता उसकी सफलता से खुश नहीं है। मुझे पता नहीं, मैं इस बात को ठीक से समझा पा रहा हूं या नहीं। लेकिन जिन्हें इशारा कर मैं यह बात कह रहा हूं, वह निश्चित तौर पर मेरी बात समझ रहे हैं। इसलिए मां बेटे बहुत अच्छे दोस्त होते हैं। लेकिन पिता-पुत्र दोस्त नहीं हो पाते हैं क्योंकि उस रिश्ते में बहुत सारी परतें होती हैं। फिर मैं जिस तरह से अपने पिता से डरता हूं,उन्हें टालकर चलने की कोशिश करता हूं। संजू सर भी वैसे थे। फिर जिस रिश्तें में डर होता है, उसमें दोस्ती कहां से होगी।
संजू सर के लुक में आने के लिए आपको काफी मेहनत करनी पड़ी है ?
-और कुछ मत पूछिए आज भी उन दिनों को याद करने पर लगता है कि मैं सचमुच कुछ ज्यादा मेहनत कर पाया हूं या यह सिर्फ एक कल्पना है। दस बजे सेट पर पहुंचने से पहले मुझे सुबह पांच बजे वहां पहुंच कर मेक-अप के लिए बैठ जाना पड़ता था। फिर संजू सर के शुरुआती दिनों के साथ रिलेट करने के लिए भी मुझे मेक-अप पर खास ध्यान देना पड़ा था। क्योंकि यह फेज संजू सर के जीवन का बहुत महत्वपूर्ण अंश है। इसलिए इसकी प्रस्तुति में मैंने कोई कमी नहीं बरती है। इसलिए उन दिनों ड्रग एडिक्ट पर केंद्रित कई अंग्रेजी फिल्में मैंने देखी थी। काफी रिसर्च वर्क किया है। रिहैब सेंटर में जाकर बहुत सारा वक्त बिताया है। इसके अलावा मुझे यह कहने में जरा भी संकोच नहीं हो रहा है कि कॉलेज जीवन में मैंने खुद भी दोस्तों के चक्कर में पड़कर ड्रग्स लिया है। लेकिन शुक्र मानिए, मुझे जल्द यह बात समझ में आ गई थी कि यदि मैंने ज्यादा दिनों तक ड्रग का सेवन किया,तो मैं बहुत जल्द अपने करियर का सत्यानाश कर लूंगा। इसलिए इसके चक्कर से मैं बहुत जल्द निकल आया। संजू में मैंने यही कोशिश की है कि ऐसे दृश्यों को पूरी वास्तविकता के साथ पेश करूं। खास तौर से मैंने ड्रग्स लेनेवाले दृश्यों के बहुत करीब जाने की कोशिश की थी। यदि आप नियमित तौर पर कोकीन सेवन करते हैं, तब आपके शरीर का सारा एक्शन फास्ट हो जाता है। और आपकी सारी नर्व कांपने लगती हैं। इसलिए ऐसे सारे दृश्यों को पेश करने से पहले मैं 10-12 कॉफी पी लेता था। इससे भी इस तरह का रिएक्शन आता था। सर घुमने लगता था, हाथ-पांव कांपने लगते थे। मैं खुश हूं कि इस फिल्म को देखने के बाद काफी युवाओं ने इस बुराई को समझा है। इससे पांच मिनट का मजा मिलता है,पर पूरे जीवन का सत्यानाश हो जाता है।
सुना है आपके लुक को राजू ने कई बार खारिज किया था ?
-सच, तब मैं बहुत अपसेट हो जाता था जब आठ घंटे के फोटो शूट के बाद भी राजू सर मेरे लुक को एक झटके में खारिज कर देते थे। एक हफ्ते तक संजय सर का डॉयलॉग प्रैक्टिस करने के बाद भी मुझे ऐसा लगता था कि मैं जैसे अपनी मिमिक्री कर रहा हूं। देखिए बहुत सारे अभिनेता ही अपने फिल्म करियर में कई चुनौतियों से रू-ब-रू होते हैं। संजू भी मेरे जीवन का अब तक का सबसे बड़ा चैलेंज था। मुझे इस बात का डर था कि कहीं यह पूरा विषय मिमिक्री न बन जाए। फिर इस फिल्म की पूरी गंभीरता ही खत्म हो जाएगी। दर्शक भी मुझे छोड़कर कोई बात नहीं करते थे। इसलिए संजू सर की तरह बात करने के बावजूद मैंने उसके अंदर एक टच रखा था। और एक विषय को मैं लेकर चिंतित था, वह है संजू सर का फिजिक। क्योंकि मेरा शारीरिक गठन बहुत पतला दुबला है। इसलिए इसके लिए हैदराबाद के एक ट्रेनर कुणाल से मैंने प्रशिक्षण लिया था। बाहुबली में इस कुणाल ने राणा डुग्गबट्टी को ट्रेंड किया था। सबसे बड़ी बात यह है कि इस फिल्म के लिए संजू सर ने मुझे बहुत सपोर्ट किया है। जब भी कोई मुश्किल आई मैंने उन्हें झट फोन किया। वैसे तो मैं बराबर उनका बड़ा फैन था। पर इस फिल्म को करने के बाद उनके प्रति मेरे भीतर एक श्रद्धा ने जन्म लिया है। जेल के अपने अनुभवों को उन्होंने मुझसे जिस तरह से शेयर किया है, उनकी उन बातों को सोचकर मेरी आंखें छलछला आती हैं।
आपने कहा है कि आप हिरानी के अंदर अपने दादा जी की छाया पाते हैं ?
-बिल्कुल,बहुत सारे ऐसे निर्देशक हैं, जो अपना काम किसी के साथ शेयर नहीं करना चाहते हैं। अपनी फिल्म को पूरी करने के बाद कलात्मक रुचि रखनेवाले लोगों को भी दिखाना पसंद नहीं करते हैं। और एक तरह के निर्देशक राजकुमार हिरानी की तरह होते हैं। जिनके काम करने का तरीका काफी हद तक मेरे दादा जी जैसा है। अपनी दादी-कृष्णाराज कपरू के मुंह से सुन रखा है,मध्य रात्रि को वह अचानक दादी को नींद से जगा देते थे। उसके बाद उन्हें लेकर आरके स्टूडियो चले जाते थे। साथ में घर के वॉचमैन और दूसरे जिन भी सहयोगियों को पाते थे,उन्हें भी अपने साथ ले लेते थे। वहां जाकर दादा जी कोई नया प्लॉट या कोई नया दृश्य कैसे शूट करेंगे,इस बारे में उनसे चर्चा करते थे। बीच-बीच में उन दृश्यों को खुद भी एक्टिंग करके दिखाते थे। इसके बाद सबकी राय लेते थे। राजू सर भी कुछ वैसे हैं। संजू उन्होंने कई बार हमें दिखाई है। एडिटिंग टेबल पर हमारी राय ली है। और उस राय को पूरा महत्व दिया है। इन फैक्ट संजू की स्क्रिप्ट मैंने अपनी मां को सुनाया था। क्लाइमेक्स में मां ने एक चेंज की सलाह दी थी। और राजू सर ने मां की सलाह के मुताबिक उस क्लाइमेक्स में परिवर्तन किया।