फैज अहमद फैज पर बोले जावेद अख्तर, कहा- हिंदू विरोधी बताना इतना अजीब और हास्यास्पद है कि...

By ऐश्वर्य अवस्थी | Published: January 2, 2020 03:34 PM2020-01-02T15:34:07+5:302020-01-02T15:34:07+5:30

जावेद अख्तर हर एक सामाजिक और राजनीतिक मुद्दे पर अपनी राय रखते रहते हैं। जावेद अपनी बात रखने के लिए जानी जाती हैं।

javed akhtar on faiz ahmed faiz says calling him anti hindu | फैज अहमद फैज पर बोले जावेद अख्तर, कहा- हिंदू विरोधी बताना इतना अजीब और हास्यास्पद है कि...

फैज अहमद फैज पर बोले जावेद अख्तर, कहा- हिंदू विरोधी बताना इतना अजीब और हास्यास्पद है कि...

Highlightsफैज अहमद फैज को लेकर जावेद अख्तर ने दिया बयानजावेद अख्तर बोले कि उन्हें हिंदू विरोधी कहना बहुत ही बेतुका है

मशहूर शायर फैज अहमद फैज की कविता हम देखेंगे लाजिम है कि हम भी देखेंगे को लेकर विवाद बढ़ने के बाद आईआईटी कानपुर ने एक समिति गठित कर दी है। ये समिति ये तय करेगी कि फैज की नज्म हिंदू विरोधी या फिर नहीं। अब इस मामले पर जावेद अख्तर ने अपनी प्रतिक्रिया दी है।

जावेद अख्तर हर एक सामाजिक और राजनीतिक मुद्दे पर अपनी राय रखते रहते हैं। जावेद अपनी बात रखने के लिए जानी जाती हैं। जावेद ने इस बारे में कहा है कि इस बारे में गंभीरता से कुछ कहा भी नहीं जा सकता है।

एनआई के अनुसार जावेद ने कहा है कि फैज अहमद फैज को हिंदू विरोधी बताना इतना अजीब और हास्यास्पद है कि इसके बारे में गंभीरता से कुछ कहा भी नहीं जा सकता है। उन्होंने अपनी आधी जिंदगी पाकिस्तान के बाहर बिताई, उन्हें पाकिस्तान विरोधी भी कहा गया था। 'हम देखेंगे' उन्होंने जिया-उल-हक की सांप्रदायिक और कट्टर सरकार के खिलाफ लिखा था।

जानें पूरा मामला

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी कानपुर (IIT Kanpur) ने एक समिति गठित की है, जो यह तय करेगी कि क्या फैज अहमद फैज की कविता 'हम देखेंगे, लाजिम है कि हम भी देखेंगे' हिंदू विरोधी है या नहीं। आईआईटी कानपुर के फैकल्टी सदस्यों की शिकायत के बाद ये समिति गठित की गई है। फैकल्टी सदस्यों का दावा है कि नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ हुए विरोध-प्रदर्शनों के दौरान यह 'हिंदू विरोधी' गीत गाया गया था।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, समिति इस बात की जांच करेगी कि क्या छात्रों ने धारा-144 का उल्लंघ किया और सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट की। अपने क्रांतिकारी विचारों के लिए प्रसिद्ध रहे फैज अहमद फैज ने 1979 में यह नज्म लिखी थी। फैज ने यह कविता सैन्य तानाशाह जिया-उल-हक के संदर्भ में लिखी थी और पाकिस्तान में सैन्य शासन के विरोध में लिखी थी। तानाशाही का विरोध करने वाले फैज कई सालों तक जेल में भी रहे।


पढ़िए पूरी कविता, जानें विवाद

हम देखेंगे
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे
वो दिन कि जिसका वादा है
जो लोह-ए-अज़ल में लिखा है
जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गरां 
रुई की तरह उड़ जाएँगे
हम महक़ूमों के पाँव तले
ये धरती धड़-धड़ धड़केगी
और अहल-ए-हक़म के सर ऊपर
जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी
जब अर्ज-ए-ख़ुदा के काबे से
सब बुत उठवाए जाएँगे
हम अहल-ए-सफ़ा, मरदूद-ए-हरम 
मसनद पे बिठाए जाएँगे
सब ताज उछाले जाएँगे
सब तख़्त गिराए जाएँगे

बस नाम रहेगा अल्लाह का
जो ग़ायब भी है हाज़िर भी
जो मंज़र भी है नाज़िर भी
उट्ठेगा अन-अल-हक़ का नारा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो
और राज़ करेगी खुल्क-ए-ख़ुदा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो

नज्म की कुछ पंक्तियों ने विवाद खड़ा कर दिया है। आईआईटी के उपनिदेशक मनिंद्र अग्रवाल के अनुसार, ‘वीडियो में छात्रों को फैज की नज्म गाते हुए देखा जा रहा है, जिसे हिंदू विरोधी भी माना जा सकता है।’

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Web Title: javed akhtar on faiz ahmed faiz says calling him anti hindu

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