हिंदी दिवस विशेष: बॉलीवुड में हिंदी भाषा की दयनीय है स्थिति, कम हो रही है हिंदी साहित्य की जमीन

By भाषा | Published: September 14, 2019 12:35 PM2019-09-14T12:35:51+5:302019-09-14T12:35:51+5:30

Hindi Diwas Special: Hindi language in Bollywood movies | हिंदी दिवस विशेष: बॉलीवुड में हिंदी भाषा की दयनीय है स्थिति, कम हो रही है हिंदी साहित्य की जमीन

हिंदी दिवस विशेष: बॉलीवुड में हिंदी भाषा की दयनीय है स्थिति, कम हो रही है हिंदी साहित्य की जमीन

हिंदी सिनेमा और धारावाहिकों में हिंदी साहित्य की कम होती जमीन पर फिल्मकारों और लेखकों का मानना है कि इसके पीछे भारतीय साहित्यकारों को पर्दे पर उतारने में गर्व की अनुभूति नहीं होने या हिंदी रचनाओं को नहीं पढ़ने जैसे कारण हो सकते हैं। विभिन्न स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म जहां मनोरंजन उद्योग में विविधता पूर्ण सामग्री दर्शकों को परोस रहे हैं और ‘सेक्रेड गेम्स’, ‘मिडनाइट्स चिल्ड्रन’ और ‘द जोया फैक्टर’ जैसे अंग्रेजी उपन्यासों पर आधारित सीरीज आ रही हैं, वहीं हिंदी और अन्य भाषाओं का साहित्य नदारद लगता है।

इस बारे में लेखकों और निर्देशकों को लगता है कि यह भाषा साहित्य के प्रति पूर्वाग्रह की वजह से हो सकता है और अधिकतर मामलों में लेखक तथा निर्माताओं की अनदेखी भी प्रमुख वजह हो सकती है। दूरदर्शन के लिए ‘चाणक्य’ को पर्दे पर उतारने वाले तथा ‘पिंजर’ और ‘मोहल्ला अस्सी’ जैसे प्रसिद्ध हिंदी उपन्यासों पर फिल्म बनाने वाले जानेमाने फिल्मकार चंद्रप्रकाश द्विवेदी के अनुसार भारतीय लेखकों को पश्चिमी साहित्यकारों जैसी लोकप्रियता नहीं मिलती। उन्होंने पीटीआई से बातचीत में कहा, ‘‘हमारा साहित्य इतना प्रचुर है लेकिन भारतीय लेखकों की कृतियों को पर्दे पर उतारने में लोग गौरव का अनुभव नहीं करते।

''जब लोग हिंदी दिवस मनाते हैं तो मुझे लगता है कि हमने हार मान ली है, इसका मतलब हुआ कि हिंदी मर रही है।’’ द्विवेदी के अनुसार, ‘‘जब भी विलियम शेक्सपीयर की किसी रचना पर कोई फिल्म आती है तो सब इस बारे में लिखते हैं, मीडिया इसके बारे में लिखता है। लेकिन किसी हिंदी या अन्य भारतीय भाषा के लेखक की कृति पर आधारित फिल्म की समीक्षा करते समय उन्हें इन लेखकों के बारे में जानकारी ही नहीं होती।’’ उन्होंने कहा, ‘‘पूर्वाग्रह स्पष्ट दिखाई देता है। हमने कभी अपने भारतीय लेखकों को जनमानस तक पहुंचाने की कोशिश नहीं की।''

''कितने लोग एम टी वासुदेव या काशीनाथ सिंह को जानते हैं? शेक्सपीयर के बारे में सब जानते हैं। भारतीय साहित्य की अनदेखी हुई है।’’ अरसे पहले साहित्य और सिनेमा का गठजोड़ खूब दिखाई देता था। ‘तीसरी कसम’, ‘सारा आकाश’, ‘नीम का पेड़’ और ‘शतरंज के खिलाड़ी’ जैसी हिंदी साहित्य की अनेक कहानियों को फिल्मों का रूप दिया गया। जानेमाने हिंदी लेखक और कवि उदय प्रकाश के अनुसार सत्यजीत रे और बिमल रॉय जैसे निर्देशकों ने साहित्य से फिल्म के सृजन को तरजीह दी और उनकी ये फिल्में प्रसिद्ध हो गयीं।

उन्होंने पीटीआई से कहा, ‘‘उन दिनों सिनेमा में गुमनाम हो गये साहित्य को जगह दी जाती थी। लेकिन व्यावसायीकरण के कारण अब लोग केवल बॉक्स ऑफिस के आंकड़ों को देखते हैं। जब बॉलीबुड में ‘बाहुबली’ और ‘गार्जियन्स ऑफ गैलेक्सी’ जैसी फिल्में आती हैं तो और भी लोग केवल पैसा कमाने के मकसद से ऐसी फिल्म बनाने की होड़ में शामिल हो जाते हैं।’’ प्रकाश के मुताबिक ऐसा नहीं है कि सिनेमा में साहित्य की पूरी तरह अनदेखी की गयी है लेकिन ऐसी फिल्में व्यावसायिक दृष्टि से लाभकारी नजर नहीं आतीं।

उन्होंने कहा, ‘‘अनूप सिंह ने ‘किस्सा’ बनाई जो लोककथा पर आधारित थी। पिछले साल एक मराठी फिल्म मेरी लघुकथा ‘द वॉल्स ऑफ दिल्ली’ पर बनी थी। यह निर्देशकों पर भी निर्भर करता है कि वे साहित्य और सिनेमा के बीच सेतु बनाएं। एक समय आएगा जब एक बफर जोन बनेगा यानी फिल्मकार साहित्य की ओर लौटेंगे।’’

समीक्षकों की तारीफ पाने वाली हाल ही में आई फिल्म ‘आर्टिकल-15’ के सह-लेखक गौरव सोलंकी का मानना है कि भारतीय फिल्मकारों का भारतीय साहित्य से वास्ता कम ही रहा है और इसलिए अंग्रेजी उपन्यासों का रूपांतरण अधिक होता है। उन्होंने कहा, ‘‘हिंदी के बजाय अंग्रेजी साहित्य पर अधिक ध्यान इसलिए है क्योंकि फिल्मकार भारतीय भाषाओं की किताबें नहीं पढ़ते। अंग्रेजी साहित्य से फिल्म बनाने का मोह नया है। जबकि समांतर सिनेमा में भारतीय साहित्य को आधार बनाया जाता था।’’ सोलंकी के मुताबिक, ‘‘आज समांतर सिनेमा नहीं बचा।

अब मुख्यधारा का या यथार्थवादी सिनेमा है जिसका तानाबाना भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य पर केंद्रित होता है। हमें कहानियां चाहिए होती हैं और हमारे पास लेखक नहीं होते तो किताबों के रूपांतरण से एक कहानी मिल जाती है।’’ उन्होंने कहा कि कुछ स्टूडियो ने हिंदी प्रकाशकों के लिए दरवाजे खोले हैं। सोलंकी के साथ द्विवेदी ने भी हिंदी साहित्य के लिहाज से सिनेमा में अच्छे भविष्य की उम्मीद जताई।

जानेमाने अभिनेता पंकज त्रिपाठी की हिंदी साहित्य में विशेष रुचि रही है और अपने साक्षात्कारों में वह अकसर जिक्र करते हैं कि किस तरह साहित्य ने उनके अंदर के अदाकार को आकार दिया। उन्होंने कहा, ‘‘मैं साहित्य से प्यार करता हूं। मैं रूसी लेखक मैक्सिम गोर्की और चेखोव को पसंद करता हूं तो हिंदी उपन्यासकार फणीश्वरनाथ रेणु और केदारनाथ सिंह जैसे हिंदी लेखकों को भी पसंद करता हूं। इससे मुझे काम करने तथा मेरे पात्रों को साकार करने में मदद मिली है।’’ 

Web Title: Hindi Diwas Special: Hindi language in Bollywood movies

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