गुलजार ने कहा, लता जी ने मेरे लिखे अल्फाज को जिंदगी बख्शी

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: February 6, 2022 10:25 PM2022-02-06T22:25:34+5:302022-02-06T22:35:34+5:30

गुलजार ने कहा कि बीते दौर में जब टेलीविजन बहुत बाद में आया तो उससे पहले केवल रेडियो हुआ करता था और हर कोई उनकी आवाज सुनकर नींद से जगा करता था।

Gulzar said, Lata ji gave life to the alphabets written by me | गुलजार ने कहा, लता जी ने मेरे लिखे अल्फाज को जिंदगी बख्शी

गुलजार ने कहा, लता जी ने मेरे लिखे अल्फाज को जिंदगी बख्शी

Highlightsगुलजार कहते हैं कि लता जी हिंदी सिनेमा के बदलते हुए चेहरे की गवाह रहींशादी हो या फिर कोई त्योहार, लता मंगेशकर के गीत हमारे कानों में आज भी गूंजते हैंलता जी के लिए मैं अपनी भावनाओं को चंद अल्फाज में नहीं समेट सकता

मुंबई: हिंदी सिनेमा के जानेमाने गीतकार गुलज़ार लता मंगेशकर के देहांत से बड़े ही आहत हैं। गुलजार ने लता जी को याद करते हुए कहा कि मेरी खुशकिस्मती रही कि मेरे लिखे कई गीतों को उन्होंने आवाज दी। उन्हीं की आवाज की बदौलत मैंने कई फिल्म पुरस्कार जीते, जिसमें एक गीत 'यारा सीली सीली बिरहा की रात का जलना' भी शामिल था।

एक निजी चैनल से बात करते हुए गुलज़ार ने कहा कि अगर सही मानये में देखा जाए तो मेरे लिखे अल्फाज को लता जी ने जिंदगी बख्शी है। अपने गीतों के जरिये वो हर भारतीय के रोजाना जिंदगी का हिस्सा बनी हुई हैं। उनकी जैसी आवाज शायद सदियों पैदा होती हैं।

गुलजार ने कहा, “उनके लिए मैं अपनी भावनाओं को चंद अल्फाज में नहीं समेट सकता हूं क्योंकि मैं उनके बारे में जितना भी बात करूंगा, वह कम ही होगा। मुझे अब तक इस बात का भरोसा नहीं हो रहा है कि वो हमारे बीच से चली गई। मेरे शायद कुछ अच्छे कर्म रहे होंगे कि मैं उसकी सोहबत में काम कर सका। वह एक चमत्कार जैसा है और इस तरह के चमत्कार बहुत कम होते हैं।"

गुलजार कहते हैं कि वह हिंदी सिनेमा के बदलते हुए चेहरे की गवाह रहीं। सिनेमा ही नहीं देश में बहुत कुछ बदलते हुए उन्होंने अपनी आंखों से देखा था। मुझे याद है कि टेलीविजन तो बहुत बाद में आया था, पहले केवल रेडियो हुआ करता था और उसकी आवाज सुनकर हर कोई जग जाता था।

गुलजार ने कहा कि मैं भी लताजी की आवाज सुनकर जगा करता था। उनके गीत हमारे जीवन का, संस्कृति का हिस्सा हुआ करते थे। होली हो, दिवाली हो या फिर ईद हो। शादी और सभी त्योहारों पर आज भी लता मंगेशकर के गीत हमारे कानों में गूंजते हैं।

अपने करियर के आखिरी पड़ाव पर उन्हें उस तरह के गाने पसंद नहीं थे, जो आम फैशन में लिखे जा रहे थे। एक बार उन्होंने मुझसे कहा ‘तुम कुछ अच्छी फिल्म क्यों नहीं बनाते हो, जिसमे कोई कोई अच्छा सा गीत लिखो’। उन्होंने गायकी में जो ऊंचा मुकाम हासिल किया है, बहुत ही कम लोगों को वो ऊंचाई मिली, लेकिन उसके बाद भी वो सभी को बड़े गौर से सुनती थीं। 

साल 1963 में विमल रॉय साहब की फिल्म 'बंदिनी' में मैंने पहली दफे गीत लिखा था 'मोरा गोरा अंग लई ले'। इस गीत को लता जी ने जिस अंदाज से गाया था, लगता ही नहीं कि नूतन उनकी आवाज पर केवल अपने होंठ हिला रही हैं। उसके बाद हमने 'खामोशी,' 'किनारा', 'मासूम', 'लिबास', 'दिल से', और 'रुदाली' जैसी न जाने कितनी फिल्मों में साथ काम किया। उनके साथ काम करते हुए हमें कुल पांच राष्ट्रीय पुरस्कार मिले।

एक बार मैंने लता जी के साथ मजाक में कहा था कि फिल्म 'किनारा' की लाइन ‘मेरी आवाज ही पहचान है’ आप पर एकदम फिट बैठती है। कभी किसी ने सोचा भी न होगा कि ये पंक्तियां एक दिन सचमुच लता जी के लिए सच साबित हो जाएंगी। 

Web Title: Gulzar said, Lata ji gave life to the alphabets written by me

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