#Bollywoodflashback: जब 'प्यासा' के लिए गुरुदत्त कोठे पर दे आए थे नोटों की गड्डी
By ऐश्वर्य अवस्थी | Published: June 21, 2018 09:03 AM2018-06-21T09:03:45+5:302018-06-21T09:27:53+5:30
Bollywood Veteran Actor Guru Dutt: 1957 में आई प्यासा में एक संघषर्शील कवि को खूबसूरती के साथ पेश किया गया था। फिल्म में लीड रोल में थे गुरुदत्त, वहीदा रहमान और माला सिन्हा।
जानें वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला...ये लाइनें सुनते ही हर एक किसी के दिल में एक ही ख्याल आता है और वो है फिल्म प्यासा। 1957 में आई प्यासा में एक संघषर्शील कवि को खूबसूरती के साथ पेश किया गया था। फिल्म में लीड रोल में थे गुरुदत्त , वहीदा रहमान और माला सिन्हा। गुरुदत्त के निर्देशन में बनी ये फिल्म आज भी सिनेजगह के इतिहास के पन्नों में दर्ज है।आइए आज हम आपको बतातें इस फिल्म के पर्द के पीछे की कहानी-
फिल्म की कहानी का आधार
निर्देशक अबरार अल्वी फिल्म प्यासा की कहानी लिख रहे थे तो उनको फिल्म में एक संघर्षरत कवि की कहानी पर आधारित लिखना था जो देश की आजादी के बाद अपने काम को लोगों के बीच पॉपुलर बनाना चाहता है। जो खुद को पॉपुलर करने के लिए एक वेश्या से मिलता है जो उसकी कविताओं को प्रकाशित करने में उसकी मदद करती है। कहा तो ये भी जाता है कि असल में ये अबरार के जीवन की असली कहानी थी, जो उनके कॉलेज के दिनों की थी।
कहानी से गुरुदत्त हुए थे प्रभावित
सत्या सरन की लिखी किताब टेन ईयर्स विद गुरुदत्त जो कि अबरार अल्वी से बातचीत पर आधारित किताब है। इस किताब में बताया गया है कि जब गुरुदत्त को फिल्म की कहानी शुरु से सुनाई गई कि किस तरह से लीड रोल का हीरो कॉलेज के दिनों में दोस्तों की जिद के आगे उन्होंने एक बड़ी उम्र की महिला की ओर इशारा किया। उसका नाम गुलाबो था। इस तरह दोनों की बातचीत शुरू हुई और दोस्ती में बदल गई लेकिन बाद फिल्मों में व्यस्त रहने के कारण अबरार गुलाबो से नहीं मिल पाते थे जब कई साल बाद वह गुलाबो से मिलने गए तो देखा कि वह टीबी से पीड़ित थी। कुछ समय बाद जब अबरार दोबारा गुलाबो से मिलने गए तब वह दुनिया से रुखसत हो चुकी थी। तो गुरुदत्त साहब इसको सुनकर पूरी तरह से प्रभावित हो गए थे। वह फिल्म के निर्देशन के लिए तैयार हो गए।
इस अभिनेता को लेना चाहते थे
फिल्म की कहानी सुनकर गुरुदत्त खासा प्रभावित हुए थे और इसको किसी भी हालत में जल्द से जल्द बनाने चाहते थे। लीड रोल के लिए उनको दिलीप कुमार का नाम याद आया । लेकिन कहा जाता है उस समय दिलीप कुमार किसी दूसरी फिल्म में व्यस्त थे और किन्हीं कारणों वश गुरुदत्त साहब ने खुद इस फिल्म को करने का निश्चय़ किया। उनका वो फैसला कितना सही था ये आज सभी के सामने है।
जब गुरुदत्त गए थे कोठा
गुरुदत्त अपने किरदार को सजीव करना चाहते थे लेकिन वो कभी खुद कोठे पर नहीं गए थे, लेकिन सभी के समझाने के बाद उन्होंने फैसला लिया कि वह खुद वहां जाएंगे और चीजों को समझेंगे। उस समय उनके साथ लेखक अबरार अल्वी भी साथ गए। जब गुरु दत्त वहां पहुंचे तो एक ऐसा नजारा देखा जिसने उनको अंदर तक हिला दिया था। दरअसल उन्होंने एक लड़की को नाचते देखा, वो उस समय कम से कम सात महीनों की गर्भवती थी, फिर भी लोग उसे नचाए जा रहे थे। इसको देखकर वह खासा परेशान हो गए व भावुक थे। वह अबरार से बोले, 'चलो यहां से'। लेकिन वहां से जाते जाते उन्होंने नोटों की एक मोटी गड्डी जिसमें कम से कम हजार रुपए रहे होंगे उस लड़की के लिए छोड़ दिए। ये कीमत उस समय लाख की कही जा सकती है। इस घटना के बाद गुरुदत्त ने कहा कि मुझे साहिर के गाने के लिए चकले का सीन मिल गया और वह गाना था, ‘जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहां है।’
गीता दत्त चाहती थीं बदलाव
गुरुदत्त की पत्नी गीता दत्त फिल्म प्यासा में तमाम तरह के बदलाव करना चाहती थीं पर अंत तक गुरुदत्त ने फिल्म की कहानी में किसी भी तरह के बदलाव पर सहमति नहीं भरी और फिर फिल्म प्यासा वैसी ही बनी जैसा गुरुदत्त चाहते थे, लेकिन उन्होंने फिल्म में अभिनेता के चयन पर पत्नी गीता की बात का जरुर माना था। गीता चाहती थीं कि फिल्म में अभिनेता रोल गुरुदत्त खुद करें।