बर्थडे स्पेशल: फिल्मों के साथ-साथ राजनीति में भी दमदार थे सुनील दत्त, अपनी ही सरकार के खिलाफ खोल दिया था मोर्चा
By पल्लवी कुमारी | Published: June 6, 2018 06:53 AM2018-06-06T06:53:19+5:302018-06-06T06:53:19+5:30
Happy birthday Sunil Dutt: सुनील दत्त ने अपना पहला चुनाव 1984 में मशहूर वकील राम जेठमलानी के खिलाफ लड़ा था। उन्होंने जब अपने चुनाव प्रचार की शुरुआत की तो पहले मस्जिद में जाकर नमाज़ पढ़ी, फिर मंदिर गए और फिर चर्च में जाकर प्रार्थना की।
नई दिल्ली, 6 जून: सुनील दत्त ने अपने छह दशकों लंबे फिल्मी करियर में 50 से ज्यादा फिल्मों में अभिनय किया। सुनील दत्त आज ही के दिन 6 जून 1929 को झेलम में पैदा हुए थे जो अब पाकिस्तान में है। उन्हें दुनिया को अलविदा कहे अब 13 बरस हो गए हैं लेकिन सुजाता, मदर इंडिया, रेशमा और शेरा, मिलन, नागिन, जानी दुश्मन, पड़ोसन, जैसी फिल्मों के लिए वो हमेशा याद किए जाते रहेंगे।
सामाजिक जीवन में सुनील दत्त का व्यक्तित्व एक अलग ही रूप में था। एक फिल्मी सितारे से कहीं बड़ी थी सुनील दत्त की शख्शियत। फिल्मी दुनिया से राजनीति और समाज सेवा के क्षेत्र में आए अभिनेता सुनील दत्त हमेशा अपने आदर्शों पर कायम रहें के लिए जाने जाते थे। इसमें कोई शक नहीं है की सुनील दत्त एक मंझे हुए मशहूर कलकार के रूप में जाने जाते हैं लेकिन उनकी राजनीतिक शक्शियत को नजर अंदाज करना गलत होगा। फिल्म जगत की चकाचैंध और ग्लैमर भरी शख्स में कुछ ऐसा था जो इसे भीड़ से अलग रखता था।
आइये जानते हैं उन दो घटनाओं के बारे में जिसने सुनील दत्त की शख्सियत को बनाने में अहम भूमिका निभाई थी। एक थी नर्गिस से शादी और दूसरी थी भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय पाकिस्तान में भड़के दंगे में याकूब नाम के एक मुसलमान का उनके परिवार की हिफाजत करना।
सुनील दत्त ताउम्र हिंदू-मुस्लिम भाईचारे के पैरोकार बने रहे। धर्मनिरपेक्षता, शांति और सद्भाव जैसे जीवन मूल्यों के प्रति जीवन भर समर्पित रहने वाले सुनील दत्त राजीव गांधी के कहने पर राजनीति में आए थे। उन्हें लगा कि राजनीति के माध्यम से वह अपना संदेश लोगों तक पहुंचा सकते हैं। इन सिद्धांतों के प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने अपनी राजनीति का खूब इस्तेमाल भी किया।
इस देश में अभिनेता से राजनेता बने किसी दूसरे शख्स में यह खासियत शायद ही हो। उनका मानना था कि धर्मनिरपेक्षता का मतलब अच्छा इंसान बनने से है जो सभी मजहबों की इज्जत करता हो। सुनील दत्त ने अपना पहला चुनाव 1984 में मशहूर वकील राम जेठमलानी के खिलाफ लड़ा था। उन्होंने जब अपने चुनाव प्रचार की शुरुआत की तो पहले मस्जिद में जाकर नमाज़ पढ़ी, फिर मंदिर गए और फिर चर्च में जाकर प्रार्थना की।
राम जेठमलानी सुनील दत्त का उस दौरान खूब मजाक उड़ाया करते थे और कहते थे कि सुनील दत्त का कोई मुकाबला नहीं है मुझसे। मैंने एचआर गोखले और रामराव अदिक जैसे राजनीति के महारथियों को धूल चटाई है। जब चुनाव के नतीजे आए तो राम जेठमलानी की अपमानजनक हार हुई।
सुनील दत्त ने 1991 में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद जब मुंबई में दंगे भड़के, तो जो फैसला लिया उसने सबको हिला कर रख दिया था। उस दौरान सुनील दत्त ने अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था और उन्होंने संसद से इस्तीफा दे दिया था। उनका कहना था कि कांग्रेस ने हालात को सही से नहीं संभाला है और एक सांसद की हैसियत से वो कुछ नहीं कर पा रहे हैं, इसलिए वह इस्तीफा दे रहे हैं। इससे पहले भी 1985 में उन्होंने झुग्गीवासियों के मुद्दों पर सरकार के गंभीर नहीं होने की वजह से अपनी ही कांग्रेस की सरकार का विरोध कर दिया था।
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