संवाद अदायगी के बेताज बादशाह थे अजीत, दिलीप कुमार की इस फिल्म के बाद बने खलनायक
By अनिल शर्मा | Published: October 23, 2021 01:43 PM2021-10-23T13:43:38+5:302021-10-23T14:05:56+5:30
साल 1946 से 1956 तक अजीत फिल्म इंडस्ट्री मे अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते रहे। वहीं 1950 में निर्देशक के.अमरनाथ ने उन्हें सलाह दी कि वह अपना फिल्मी नाम छोटा कर लें...
मुंबईः बॉलीवुड में अजीत का नाम एक ऐसे अभिनेता के तौर पर याद किया जाता है, जिन्होंने अपनी विशिष्ट अदाकारी और संवाद अदायगी के जरिए सिनेप्रेमियों के दिलों में खास पहचान बनाई। गोलकुंडा में 27 जनवरी 1922 को जन्में हामिद अली खान उर्फ अजीत खान को बचपन से ही अभिनय करने का शौक था। उनके पिता बशीर अली खान हैदराबाद में निजाम की सेना में काम करते थे।
अजीत ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा आंध्र प्रदेश के वारांगल जिले से पूरी की। चालीस के दशक में उन्होंने नायक बनने के लिए फिल्म इंडस्ट्री का रुख किया और अपने अभिनय जीवन की शुरुआत वर्ष 1946 में प्रदर्शित फिल्म शाह-ए-मिस्र से की। साल 1946 से 1956 तक अजीत फिल्म इंडस्ट्री मे अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते रहे। वहीं 1950 में निर्देशक के.अमरनाथ ने उन्हें सलाह दी कि वह अपना फिल्मी नाम छोटा कर लें। इसके बाद उन्होंने अपना फिल्मी नाम हामिद अली खान की जगह पर अजीत रखा और के.अमरनाथ के निर्देशन में बनी फिल्म बेकसूर में बतौर नायक नजर आए।
साल 1957 मे बीर.आर.चोपड़ा की की फिल्म 'नया दौर' में अजीत ग्रामीण की भूमिका मे दिखाई दिए। इस फिल्म में उनकी भूमिका ग्रे शेडस वाली थी। यह फिल्म पूरी तरह अभिनेता दिलीप कुमार पर केंद्रित थी फिर भी वह दिलीप कुमार जैसे अभिनेता की उपस्थिति में अपने अभिनय की छाप दर्शको के बीच छोड़ऩे मे कामयाब रहे। नया दौर की सफलता के बाद अजीत ने यह निश्चय किया कि वह खलनायकी में ही अपने अभिनय का जलवा दिखाएंगे।
नया दौर में दिलीप कुमार और अजीत
खलनायक की भूमिकाओं से उनकी लोकप्रियता हर दिन बढ़ती गई लेकिन उनको सिगरेट की बुरी लत लग गई। अजीत घर पर हों या फिल्म के सेट पर, दिन में कई सिगरेट पी जाया करते थे जिसकी वजह से उन्हें अचनाक दिल का दौरा पड़ गया। इस कारण उन्हें अभिनय से 10 साल दूर रहना पड़ा। सेहत में थोड़ी सुधार हुई तो वह फिर काम पर लग गए। और फिर अपने प्रशंसकों को कई हिट फिल्में दीं।