विजय दर्डा का ब्लॉगः अमेरिका में तेजी से बढ़ रहा भारतीयों का जलवा
By विजय दर्डा | Updated: September 30, 2019 05:12 IST2019-09-30T05:12:29+5:302019-09-30T05:12:29+5:30
अमेरिका इस बात को अच्छी तरह से जानता है कि इस वक्त भारत उसकी जरूरत है. चीन के खिलाफ खड़े होने की ताकत केवल भारत में है. इसके साथ ही अफगानिस्तान में भारत की बड़ी भूमिका से कोई इनकार नहीं कर सकता.

विजय दर्डा का ब्लॉगः अमेरिका में तेजी से बढ़ रहा भारतीयों का जलवा
ह्यूस्टन में अमेरिकी-भारतीय समुदाय के कार्यक्रम में जब नरेंद्र मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का इंतजार कर रहे थे तब कई भारतीयों को यह बात नागवार गुजर रही थी कि हमारे प्रधानमंत्री को इंतजार कराया जा रहा है. सामान्य सोच यही थी कि ट्रम्प को पहले या एक साथ पहुंचना चाहिए था, पर कूटनीतिक तौर पर कहानी कुछ अलग ही थी. अमेरिका की धरती पर इस आयोजन के मेजबान वहां बसने वाले भारतीय थे. नरेंद्र मोदी भारतीय प्रधानमंत्री होने के नाते मेजबान की भूमिका में आ गए और जब ट्रम्प आए तो उन्होंने मेजबान की तरह उन्हें बोलने के लिए आमंत्रित किया और शुद्ध अंग्रेजी में उनकी तारीफ करते हुए अमेरिकी चुनाव में राष्ट्रपति पद के लिए फिर से उन्हें उम्मीदवार के रूप में लॉन्च कर दिया. इसको लेकर कांग्रेस ने आपत्ति भी दर्ज कराई कि यह ट्रेडीशन ठीक नहीं है. वैसे मोदीजी परंपरागत लकीरों की परवाह करते भी नहीं हैं. वे नई लकीर खींचते हैं.
ट्रम्प ने अपने भाषण के प्रारंभ में ही एक बड़े मार्के की बात की. उन्होंने कहा कि अमेरिका और भारत का संविधान एक ही तरह के तीन शब्दों ‘वी द पीपुल’ से शुरू होता है. दुनिया के लिए यह एक बड़ा संदेश कहा जा सकता है. बहरहाल दोनों देशों के एक ऐतिहासिक किस्से का जिक्र यहां जरूरी है. सन 1492 में कोलंबस यूरोप से भारत जाने का समुद्री रास्ता ढूंढने निकले लेकिन पहुंच गए अमेरिका के पास एक आइलैंड पर. उन्हें लगा कि वे भारत पहुंच गए हैं. पास के कुछ दूसरे आइलैंड पर उन्हें हल्के लाल रंग की चमड़ी वाले आदिवासी मिले. कोलंबस ने उन्हें रेड इंडियन कहा. बाद में दूसरे खोजी यात्री अमेरिगो वेस्पूची ने यूरोप को बताया कि यह भारत नहीं है. उसके बाद अमेरिगो के नाम पर उस इलाके का नाम अमेरिका रखा गया. फिर लंबे अरसे तक वहां यूरोप का शासन रहा. 1776 में अमेरिका ने खुद को यूनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका के रूप में आजाद घोषित किया. उसके बाद उसकी तरक्की की कहानी को दुनिया जानती है.
आज उसी अमेरिका में भारतीय समुदाय अपना जलवा दिखा रहा है. करीब पचास लाख भारतीय अमेरिका में रह रहे हैं और अमेरिका की उन्नति में उनका निश्चय ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है. आज बड़ी-बड़ी अमेरिकी कंपनियों के सीईओ और एमडी भारतीय या भारतीय मूल के लोग हैं. एक आकलन है कि अमेरिका में जितने एथनिक ग्रुप रह रहे हैं, उनमें भारतीय सबसे आगे हैं. वहां चीन के युवा भी बड़ी संख्या में पढ़ने पहुंचते हैं लेकिन भारतीयों को जल्दी नौकरी मिल जाती है. वहां की राजनीति में भी भारत की पैठ बनती जा रही है. एक बड़ा तबका ऐसा है जो भारत और अमेरिका की नजदीकी चाहता है.
भारतीय लोगों के प्रभाव और उनकी संख्या के कारण राजनीतिक दल भी भारतीयों का समर्थन चाहते हैं. ट्रम्प भी चाहते थे कि वे ह्यूस्टन के कार्यक्रम में पहुंचें. नरेंद्र मोदी के लिए यह कूटनीतिक जीत थी. यह पहला मौका था जब अमेरिका का कोई राष्ट्रपति किसी समुदाय के कार्यक्रम में पहुंचा. नरेंद्र मोदी ने उन्हें लॉन्च करते हुए अंग्रेजी में उनकी तारीफों के पुल बांधे तो हिंदी में भाषण देते हुए यह स्पष्ट भी कर दिया कि जम्मू-कश्मीर के मसले पर किसी की नहीं सुनी जाएगी. पाकिस्तान को करारा संदेश भी दे दिया. इतना ही नहीं मुट्ठी बांधकर डोनाल्ड ट्रम्प को स्टेडियम का चक्कर लगवाना भी एक कूटनीति ही थी. इसे दोस्ती का इजहार कह सकते हैं. वास्तव में मोदी ने पाकिस्तान को अमेरिका की धरती पर चारों खाने चित्त कर दिया! इमरान खान भी उस वक्त अमेरिका में ही थे. उनके लिए यह सबसे बड़ा सदमा रहा होगा.
वैसे मोदीजी के भाषण की लोग तारीफ कर रहे हैं तो कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि विभिन्न भारतीय भाषाओं में यह कहना कि ‘भारत में सबकुछ ठीक है’, क्या उचित था? मैं इसे पूरी तरह उचित मानता हूं. मैं मानता हूं कि हमारे यहां बहुत सी समस्याएं हैं जिनसे हमें निपटना है. हमें अपनी आर्थिक स्थिति को संभालना है, सामाजिक परिस्थितियों को बेहतर करना है. जम्मू-कश्मीर में हालात सामान्य करने हैं. और भी कई चुनौतियां हैं, लेकिन उन्हें हमें खुद दुरुस्त करना है. इन चुनौतियों से किसी दूसरे देश का कोई लेना-देना नहीं है. दूसरों के सामने तो हमें एकजुट होकर कहना ही होगा कि ‘भारत में सबकुछ ठीक है’. नरेंद्र मोदी ने जो कहा वो बिल्कुल ठीक कहा. आतंकवाद के खिलाफ उनकी हुंकार भी जरूरी थी. मोदी की यह भारी जीत है कि ट्रम्प को भी इस्लामिक आतंकवाद का जिक्र करना पड़ा.
अमेरिका इस बात को अच्छी तरह से जानता है कि इस वक्त भारत उसकी जरूरत है. चीन के खिलाफ खड़े होने की ताकत केवल भारत में है. इसके साथ ही अफगानिस्तान में भारत की बड़ी भूमिका से कोई इनकार नहीं कर सकता. हां, यह भी सच है कि वर्षो तक अमेरिका की नीति पाकिस्तान को गोद में बिठाए रखने की रही है, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं. भारत मजबूत हो रहा है और भारतीय समुदाय की अमेरिका में तकनीक से लेकर व्यापार और राजनीति तक में अच्छी खासी पैठ है. ऐसी स्थिति में भारत की पूछ-परख और बढ़नी ही है!