वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: ईरान में चीन की चुनौती से सतर्क रहे भारत

By वेद प्रताप वैदिक | Published: April 1, 2021 09:13 AM2021-04-01T09:13:53+5:302021-04-01T09:15:47+5:30

चीन की कोशिश ये भी होगी कि अफगान-समस्या के हल में पाकिस्तान और ईरान की भूमिका बढ़ जाए जबकि भारत की भूमिका गौण हो जाए.

Vedpratap Vedic blog: India should cautious of China challenge in Iran | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: ईरान में चीन की चुनौती से सतर्क रहे भारत

चीन से भारत को सतर्क रहने की जरूरत (फाइल फोटो)

ईरान के साथ चीन ने बहुत बड़ा सौदा कर लिया है. 400 बिलियन डॉलर चीन खर्च करेगा ईरान में. किसलिए? सामरिक सहयोग के लिए. इसमें आर्थिक, फौजी और राजनीतिक- ये तीनों सहयोग शामिल हैं. 

भारत वहां चाबहार का बंदरगाह बनाने और उससे जाहिदान तक रेल-लाइन डालने की कोशिश कर रहा है. इस पर वह मुश्किल से 2 बिलियन डॉलर खर्च करने की सोच रहा है. 

भारत ने अफगानिस्तान में जरंज-दिलाराम सड़क तैयार तो करवा दी है पर अभी भी उसके पास मध्य एशिया के पांचों राष्ट्रों तक जाने के लिए थल-मार्ग की सुविधा नहीं है. 

अफगानिस्तान तक अपना माल पहुंचाने के लिए उसे फारस की खाड़ी का चक्कर काटना पड़ता है, क्योंकि पाकिस्तान उसे अपनी जमीन में से रास्ता नहीं देता है.

चीन ने इस पच्चीस वर्षीय योजना के जरिए पूरे पश्चिम एशिया में अपनी जड़ें जमानी शुरू कर दी हैं. चीनी विदेश मंत्री आजकल ईरान के बाद अब सऊदी अरब, तुर्की, यूएई, ओमान और बहरीन की यात्रा कर रहे हैं. 

यह यात्रा उस वक्त हो रही है, जबकि अमेरिका का बाइडेन-प्रशासन ईरान के प्रति ट्रम्प की नीति को उलटने के संकेत दे रहा है. ट्रम्प ने 2018 में ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते को रद्द करके उस पर कई प्रतिबंध लगा दिए थे. 

अब चीन के साथ हुए इस सामरिक समझौते का दबाव अमेरिका पर जरूर पड़ेगा. चीन, रूस और यूरोपीय राष्ट्रों ने अमेरिका से अपील की है कि वह ओबामा-काल में हुए इस बहुराष्ट्रीय समझौते को पुनर्जीवित करे. 

साल 2016 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की तेहरान-यात्रा के दौरान वर्तमान समझौते की बात उठी थी. उस समय तक चीन ईरानी तेल का सबसे बड़ा खरीददार था. 

अब चीन उससे इतना तेल खरीदेगा कि अमेरिकी प्रतिबंध लगभग निर्थक हो जाएंगे. लेकिन इस चीन-ईरान समझौते के सबसे अधिक परिणाम भारत को ङोलने पड़ेंगे. हो सकता है कि अब उसे मध्य एशिया तक का थल मार्ग मिलना कठिन हो जाए. 

इसके अलावा चीन चाहेगा कि अफगान-समस्या के हल में पाकिस्तान और ईरान की भूमिका बढ़ जाए और भारत की भूमिका गौण हो जाए. भारत और अमेरिका की बढ़ती हुई निकटता चीन की आंख की किरकिरी बन गई है. 

‘खाड़ी सहयोग परिषद’ के साथ चीन का मुक्त व्यापार समझौता हो गया तो मध्य एशिया और अरब राष्ट्रों के साथ मिलकर चीन अमेरिका के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है. 

भारतीय विदेश नीति निर्माताओं के लिए भारत के दूरगामी राष्ट्रहितों के बारे में सोचने का यह सही समय है.  भारत के पास ‘प्राचीन आर्यावर्त’ (म्यांमार से ईरान व मध्य एशिया) को जोड़ने के लिए कोई जन-दक्षेस-जैसी योजना क्यों नहीं है?

Web Title: Vedpratap Vedic blog: India should cautious of China challenge in Iran

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