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रहीस सिंह का ब्लॉग: भारत ही उबार सकता है मालदीव को

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: November 27, 2018 20:04 IST

सितंबर माह में हुए चुनाव में चीन समर्थक अब्दुल्ला यामीन की हार और भारत समर्थक माने जाने वाले इब्राहिम मोहम्मद सोलिह की जीत हुई. नई सरकार की ताजपोशी भारत के लिए इतनी अहम थी कि पीएम नरेंद्र मोदी एक बुलावे पर रातोंरात राष्ट्रपति पद के शपथ ग्रहण समारोह में माले पहुंच गए और वहां जाकर उन्होंने संदेश दिया कि ‘हमारी इच्छा स्थायी, लोकतांत्रिक, संपन्न और शांतिपूर्ण मालदीव देखने की है.’

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साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा रखने वाली सत्ताएं अपनी देशीय परिधि से बाहर निकलकर कुछ ऐसे खेल खेलती रहती हैं जिनका शिकार प्राय: छोटे देश अथवा क्षेत्र बनते हैं. ये खेल निरंतर चलते रहते हैं बस समय और परिस्थिति के अनुसार इनके नाम और रणनीतियां बदल जाती हैं. इस समय चीन हिंद महासागर से प्रशांत और अटलांटिक तक छोटे व गरीब देशों में ‘चेक डिप्लोमेसी’ के जरिए कुछ ऐसे ही खेल खेल रहा है.

हालांकि इस खेल के परिणाम अभी से सामने आने लगे हैं लेकिन संभव है आगे इनकी शक्ल और भी भयावह होगी. इसका उदाहरण हिंद महासागर के छोटे से द्वीपीय देश मालदीव में देखा जा सकता है जहां चीन ने इन्फ्रास्ट्ररल डेवलपमेंट के नाम पर बड़े-बड़े सपने दिखाए और अब मालदीव की सरकार को 3.2 अरब डॉलर का इनवॉइस थमा दिया. इस कर्ज की प्रकृति और आकार को देखने से तो मालदीव की स्थिति चीन के उपनिवेश जैसी बनती नजर आ रही है. 

सितंबर माह में हुए चुनाव में चीन समर्थक अब्दुल्ला यामीन की हार और भारत समर्थक माने जाने वाले इब्राहिम मोहम्मद सोलिह की जीत हुई. नई सरकार की ताजपोशी भारत के लिए इतनी अहम थी कि पीएम नरेंद्र मोदी एक बुलावे पर रातोंरात राष्ट्रपति पद के शपथ ग्रहण समारोह में माले पहुंच गए और वहां जाकर उन्होंने संदेश दिया कि ‘हमारी इच्छा स्थायी, लोकतांत्रिक, संपन्न और शांतिपूर्ण मालदीव देखने की है.’

महत्वपूर्ण बात यह रही कि नई सरकार ने आते ही चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौते को रद्द कर दिया और चीन के साथ इस समझौते को मालदीव की सबसे बड़ी गलती करार दिया. जाहिर सी बात है कि यह चीन को अखरता और अखरा भी. इन स्थितियों से संभवत: चीन इस निष्कर्ष पर अवश्य ही पहुंचा होगा कि यह भारत के प्रभाव का असर है. जाहिर है चीन बौखलाता.

शायद इसी बौखलाहट में चीन ने मालदीव पर अरबों डॉलर  का बम फोड़ दिया. कुल मिलाकर मालदीव को चीन ने एक ऐसी समस्या में उलझा दिया है, जो उसे एक तरफ चीन के खिलाफ संघर्ष की ओर ले जा सकती है और दूसरी तरफ औपनिवेशिक तंत्र में जकड़ने की ओर. अब भारत ही उसे इस स्थिति से उबारने में मदद कर सकता है. लेकिन भारत की अपनी आर्थिक सीमाएं हैं. देखना है कि भारत ने मालदीव में जो कूटनीतिक विजय हासिल की है उसे स्थायित्व कैसे प्रदान करेगा.

टॅग्स :मालदीव
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