पवन के. वर्मा का ब्लॉग: कूटनीति में भावावेश के लिए स्थान नहीं

By पवन के वर्मा | Published: June 17, 2019 12:50 PM2019-06-17T12:50:24+5:302019-06-17T12:50:24+5:30

भारत के खिलाफ आतंकवादी हमलों में पाकिस्तान की मिलीभगत, विशेष रूप से पुलवामा हमले को देखते हुए हमारा कठोर दृष्टिकोण अपनाना सही है.

Pawan Verma's Blog: No Place for Emotion in Diplomacy | पवन के. वर्मा का ब्लॉग: कूटनीति में भावावेश के लिए स्थान नहीं

पवन के. वर्मा का ब्लॉग: कूटनीति में भावावेश के लिए स्थान नहीं

क्या भारत को पाकिस्तान से बात करनी चाहिए? परंपरागत दृष्टिकोण यह है कि तब तक नहीं करनी चाहिए जब तक भारत के खिलाफ पाकिस्तान आतंकवाद को प्रायोजित करना जारी रखता है. ऐसा लगता है कि अभी तक हम इसी नीति का पालन कर रहे हैं. पाकिस्तान को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित नहीं किया गया.

वार्ता प्रारंभ करने के लिए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के आग्रह को हमने कोई भाव नहीं दिया. मोदी ने बिश्केक की अपनी यात्र के लिए पाकिस्तान द्वारा अपने क्षेत्र में नो-फ्लाई जोन में छूट देने की पेशकश को स्वीकार नहीं किया. और शंघाई सहयोग शिखर सम्मेलन (एससीओ) में दोनों नेताओं के बीच औपचारिक या अनौपचरिक कोई बैठक नहीं हुई. 

भारत के खिलाफ आतंकवादी हमलों में पाकिस्तान की मिलीभगत, विशेष रूप से पुलवामा हमले को देखते हुए हमारा कठोर दृष्टिकोण अपनाना सही है. पाकिस्तान को यह दृढ़ संदेश मिलना चाहिए कि बातचीत और आतंकवाद साथ-साथ नहीं चल सकते. पाकिस्तान को उम्मीद रही होगी कि जैसा अतीत में कई बार हो चुका है, भारत माफ करने और भूल जाने का विकल्प चुन लेगा और सामान्य स्थिति की बहाली की दिशा में आगे बढ़ेगा. इस तरह के नरम दृष्टिकोण ने पाकिस्तान को पर्दे के पीछे से हमला करवाने और सामने बातचीत का दिखावा करने का दोहरा मापदंड अपनाए रखने के लिए ही प्रेरित किया है. हमें उसके इस पाखंड पर चोट करने की जरूरत है और एक सुसंगत कठोरता अपनाकर ही हम ऐसा कर सकते हैं. 

लेकिन क्या दो पड़ोसी देशों के नेताओं को अपनी दुश्मनी का तमाशा बनाना चाहिए? बिश्केक में एससीओ शिखर सम्मेलन में इमरान खान और नरेंद्र मोदी ने एक-दूसरे के प्रति औपचारिक शिष्टाचार का भी निर्वाह नहीं किया, जबकि पुतिन और शी जिनपिंग सहित अन्य देशों के दर्जनों नेताओं की निगाहें उन पर लगी हुई थीं. औपचारिक या अनौपचारिक किसी भी तरह की वार्ता नहीं करने की हमारी नीति हो सकती है, लेकिन क्या इसके लिए बुनियादी शिष्टाचार भूलना चाहिए? 

महत्वपूर्ण यह है कि सोची समझी नीतियों के आधार पर राज्य चलाया जाना चाहिए, भावावेश में आकर नहीं. बातचीत करने या नहीं करने का निर्णय रणनीतिक होता है जो सभी तरह के परिणामों को ध्यान में रखकर लिया जाता है. इस सारी कवायद में, नीति निर्माण का एकमात्र उद्देश्य राष्ट्रीय हित होता है. यदि बातचीत करने से राष्ट्रीय हित सधता है तो हमें बातचीत करनी चाहिए और यदि नहीं सधता तो नहीं करनी चाहिए. लेकिन इस संबंध में कोई फैसला बिना भावावेश में आए लेना चाहिए. 

Web Title: Pawan Verma's Blog: No Place for Emotion in Diplomacy

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